
बाजार में बिकवाली जारी
दलाल स्ट्रीट की पिच पर शानदार दो बॉल खेलने के बाद 2025 के टेस्ट मैंच में सेंसेक्स की विराट पारी पर 6 रिस्क फैक्टर सवाल खड़ा कर रहे हैं. सेंसेक्स ने पहले दिन अच्छे रन रेट यानी तेजी के साथ क्लोजिंग की थी, जबकी दूसरे दिन तो बाजार ने समझ लीजिए सिक्सर लगा दिया था. 2 जनवरी के दिन बाजार बंद होने के वक्त सेंसेक्स 1,436 अंक चढ़कर 79,943 पर चला गया तो वहीं निफ्टी 1.88% यानी 445 अंक की तेजी के साथ 24,188 पर जा पहुंची, लेकिन आज बाजार में नेगेटिव कारोबार देखने को मिल रहा है. कुछ एक्सपर्ट पूरे साल निगेटिव कारोबार की बात भी कर रहे हैं.
तिमाही के आंकड़ों पर दिख सकता है असर
यदि दिसंबर महीने के तिमाही रिजल्ट पॉजिटिव आते हैं तो स्टॉक में तेजी जारी रह सकती है, लेकिन मंदी की वजह से एक्सपर्ट कमजोरी तिमाही नतीजों का अनुमान लगा रहे हैं. एचडीएफसी सिक्योरिटीज के एमडी और सीईओ धीरज रेली ने ईटीमार्केट्स को बताया कि अक्टूबर और नवंबर के हाई फ्रीक्वेंसी डेटा के अनुसार, हमें लगता है कि Q3 के आंकड़े निवेशकों को सकारात्मक रूप से आश्चर्यचकित नहीं कर सकते हैं. इनकम में सुधार की उम्मीदें अब Q4 तक स्थगित हो गई हैं.
जीएसटी कलेक्शन से मिली निराशा
दिसंबर में जीएसटी कलेक्शन में भी महीने-दर-महीने 2.97% की गिरावट आई है, जो मंदी के जारी रहने का संकेत है. विश्लेषकों का कहना है कि प्रमुख क्षेत्रों में धीमी मांग रिकवरी या मार्जिन चुनौतियों का बाजार प्रदर्शन पर असर पड़ सकता है और इसके परिणामस्वरूप इनकम में कमी आ सकती है, जिससे निवेशकों का उत्साह कम हो सकता है. टाटा म्यूचुअल फंड के सीआईओ इक्विटीज राहुल सिंह कहते हैं कि घरेलू मोर्चे पर भारत की जीडीपी और इनकम वृद्धि ने वित्त वर्ष-25 में निराश किया है, इसलिए दोनों में सुधार पर बारीकी से नजर रखी जाएगी. सरकारी खर्च में कोई और मंदी या लिक्विडिटी में कसावट वित्त वर्ष-26 की इनकम पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है.
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‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ प्ले करेगा रोल
डोनाल्ड ट्रम्प की “मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” नीतियों का असर इस साल देखने को मिल सकता है. 20 जनवरी को पदभार ग्रहण करने के बाद वैश्विक व्यापार पर इसका गहरा प्रभाव पड़ सकता है. इन नीतियों में टैरिफ लगाना, टैक्स में कटौती करना, इमिग्रेशन को प्रतिबंधित करना, तेल और गैस एक्सट्रैक्शन को बढ़ावा देना और पर्यावरण नियमों को वापस लेना शामिल है. अगर ट्रम्प टैक्स कटौती को संतुलित करने के लिए लागत में कटौती के माध्यम से अमेरिकी अर्थव्यवस्था और राजकोषीय स्थिति को पुनर्जीवित करने में सफल होते हैं, तो इससे डॉलर मजबूत हो सकता है और भारत सहित उभरते बाजारों से विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) का निरंतर बहिर्वाह हो सकता है.
भू-राजनीतिक तनाव बढ़ा सकते हैं टेंशन
इतना ही नहीं, चल रहे रूस-यूक्रेन संघर्ष, इज़राइल और हमास के बीच बार-बार होने वाली झड़पें और मध्य पूर्व में इसकी भूमिका जैसे मुद्दों पर ट्रम्प प्रशासन का दृष्टिकोण भी निर्णायक प्रभाव डाल सकता है. ये भू-राजनीतिक तनाव कच्चे तेल की कीमतों को बढ़ा सकते हैं, जो संभावित रूप से भारत के लिए एक बड़ा झटका हो सकता है, जिसका असर सीधार भारतीय शेयर बाजार परदेखने को मिल सकता है. टैक्स कटौती साइकल 2024 की पिछली 3 बैठकों में लगातार तीन बार ब्याज दरों में कटौती करने के बाद, यूएस फेडरल रिजर्व ने संकेत दिया है कि यह 2025 में धीमी गति से आगे बढ़ेगा.
स्मॉलकैप और मिडकैप में उछाल?
अगर इनकम वृद्धि उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती या भावना में बदलाव होता है, तो हाई मार्केट वैल्यूएशन में सुधार हो सकता है. बजाज फिनसर्व एएमसी के सीआईओ निमेश चंदन कहते हैं कि हम मिडकैप और स्मॉलकैप सेक्टर में उतार-चढ़ाव को लेकर चिंतित हैं. पिछले 1-2 वर्षों में अधिकांश घरेलू निवेश मिडकैप और स्मॉलकैप में हुआ है. इस क्षेत्र में कोई भी सुधार नए निवेशकों को निराश कर सकता है.
चीनी अर्थव्यवस्था बनेगी विलेन?
चीनी अर्थव्यवस्था में संभावित सुधार से कमोडिटी और इनपुट की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे भारत की इनकम वृद्धि बाधित हो सकती है. विश्लेषकों का कहना है कि इससे अन्य उभरते बाजारों की तुलना में भारत का मूल्यांकन प्रीमियम भी कम हो सकता है, जो वर्तमान में लगभग 70% है.