
नई दिल्ली: वृंदावन के प्रसिद्ध बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। इस मामले में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच उत्तर प्रदेश सरकार के उस अध्यादेश पर सुनवाई कर रही है, जिसमें मंदिर का प्रबंधन एक सरकारी ट्रस्ट को सौंपने की बात कही गई है। याचिकाकर्ताओं ने इस अध्यादेश को चुनौती देते हुए कहा है कि बांके बिहारी मंदिर एक निजी धार्मिक संस्था है और सरकार इस पर अपना नियंत्रण करना चाहती है।
निजी मंदिर की दलील पर कोर्ट का कड़ा रुख
याचिकाकर्ताओं की ओर से पैरवी कर रहे सीनियर एडवोकेट श्याम दीवान ने मंदिर को एक निजी संस्था बताया। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने तीखे सवाल किए। उन्होंने कहा, “आप किसी धार्मिक स्थल को निजी कैसे कह सकते हैं? जहाँ इतने सारे श्रद्धालु आते हैं, वह निजी नहीं हो सकता। प्रबंधन निजी हो सकता है, लेकिन कोई देवता निजी कैसे हो सकता है?”
श्याम दीवान ने दलील दी कि राज्य सरकार मंदिर की ज़मीन ख़रीदने के लिए मंदिर के ही पैसे का इस्तेमाल करना चाहती है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “मंदिर का पैसा आपकी जेब में क्यों जाए? वे इसका इस्तेमाल विकास के लिए क्यों नहीं कर सकते?” कोर्ट ने कहा कि सरकार का इरादा धन हड़पने का नहीं लगता, बल्कि वे इसे मंदिर के विकास पर ही ख़र्च कर रहे हैं।
अध्यादेश की संवैधानिकता पर सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार पर भी सवाल उठाए। कोर्ट ने पूछा कि अध्यादेश लाने की इतनी जल्दी क्यों थी और जब राज्य सरकार विकास कार्य करना चाहती थी, तो उसे क़ानून के अनुसार ऐसा करने से किसने रोका? जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि राज्य सरकार को गुपचुप तरीक़े से आदेश नहीं लेना चाहिए था, बल्कि सभी पक्षों को सुनवाई का मौक़ा देना चाहिए था।
मध्यस्थता और विकास का प्रस्ताव
सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर के प्रबंधन ट्रस्ट और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच मध्यस्थता के लिए एक समिति बनाने का प्रस्ताव रखा। कोर्ट ने कहा कि समिति में हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज और ज़िलाधिकारी के साथ-साथ गोस्वामी समाज के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे।
कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे निश्चिंत रहें, स्थान की पौराणिकता और धरोहरों को सुरक्षित रखा जाएगा। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि शिरडी, तिरुपति और अमृतसर जैसे धार्मिक स्थल अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस हैं और वे चाहते हैं कि बांके बिहारी मंदिर में भी ऐसा ही विकास हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि मंदिर के धन का उपयोग तीर्थयात्रियों के लिए किया जाना चाहिए, न कि किसी निजी व्यक्ति की जेब में जाना चाहिए।