Why lord Shiva and Shanidev idols together: क्यों एक मंदिर में नहीं रखी जाती शनिदेव और भोलेनाथ की मूर्ति साथ? जानें इसके पीछे का रहस्य

Why lord Shiva and Shanidev idols together: क्यों एक मंदिर में नहीं रखी जाती शनिदेव और भोलेनाथ की मूर्ति साथ? जानें इसके पीछे का रहस्य

भगवान शिव और शनिदेव का संबंधImage Credit source: AI

lord Shiva and Shanidev Puja Rules: हिंदू धर्म में हर देवी-देवता की पूजा का अपना विशेष महत्व और नियम है. इन नियमों का पालन करना अनिवार्य माना जाता है. आपने अक्सर देखा होगा कि अधिकांश मंदिरों में भगवान शिव (भोलेनाथ) और न्याय के देवता शनिदेव की मूर्तियां एक साथ स्थापित नहीं की जाती हैं. जबकि, शनिदेव को भगवान शिव का परम भक्त माना जाता है. तो आखिर क्या कारण है कि दो परम पूज्यों को एक ही वेदी पर स्थान नहीं दिया जाता? धर्म शास्त्रों और पौराणिक कथाओं में इसके कई कारण बताए गए हैं. आइए, जानते हैं.

भगवान शिव और शनिदेव का संबंध

भगवान शंकर को संहार और कल्याण के देवता कहा गया है. वे सहज, करुणामय और क्षमाशील हैं. वहीं, शनि देव कर्मफलदाता हैं . जो हर व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार फल देते हैं. जहां भोलेनाथ भक्ति से शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं, वहीं शनिदेव न्यायप्रिय हैं और केवल कर्म के अनुसार ही कृपा बरसाते हैं. इसीलिए दोनों देवताओं के स्वभाव में बड़ा अंतर माना गया है.

धार्मिक कारण

ऊर्जाओं का संतुलन: शिव की ऊर्जा शांत और करुणामयी है, जबकि शनि की ऊर्जा गंभीर और दंडात्मक मानी जाती है.

पूजा विधि का अंतर: भगवान शिव की पूजा जल, बेलपत्र और भस्म से की जाती है, जबकि शनिदेव की पूजा तिल, तेल, काले वस्त्र और लोहा चढ़ाकर की जाती है. इन दोनों की पूजन विधि में बड़ा भेद है, इसलिए दोनों की स्थापना एकसाथ नहीं की जाती है.

श्रद्धा का अलग केंद्र: मान्यता के अनुसार, जहां भगवान शिव की कृपा सहज और जल्दी प्राप्त होती है, वहीं माना जाता है कि शनिदेव कर्मों के अनुरूप फल देते हैं. भक्तों की भावना और साधना का उद्देश्य दोनों के प्रति भिन्न होता है.

ज्योतिषीय दृष्टि से विरोधाभास

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, भगवान शिव का प्रतिनिधित्व चंद्र करता है जबकि शनिदेव का संबंध शनि ग्रह से है. चंद्र और शनि दोनों ग्रह एक-दूसरे के विरोधी प्रभाव रखते हैं.जहां चंद्र शीतलता, भावनाओं और करुणा का प्रतीक है, वहीं शनि कठोर अनुशासन, न्याय और तपस्या का प्रतीक हैं. इसी कारण कहा गया है कि यदि दोनों की मूर्तियां एक ही स्थान पर स्थापित की जाएं, तो ऊर्जा संतुलन बिगड़ सकता है और पूजा के पूर्ण फल प्राप्त नहीं होते.

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और सामान्य जानकारियों पर आधारित है. टीवी9 भारतवर्ष इसकी पुष्टि नहीं करता है.

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