
रूस ने कैंसर की एक ऐसी वैक्सीन बनाने का दावा किया है, जो इस जानलेवा बीमारी का एक बार में ही इलाज कर सकती है। इस ख़बर से पश्चिमी देशों की दवा कंपनियों में बेचैनी का माहौल है। कुछ लोगों का मानना है कि अगर रूस मुफ़्त में यह वैक्सीन देता है, तो इससे अमेरिकी और यूरोपीय कंपनियों का अरबों डॉलर का बाज़ार ख़त्म हो सकता है।
कैंसर की दवाओं का बड़ा बाज़ार
वैश्विक स्तर पर कैंसर की दवाओं का कारोबार बहुत बड़ा है। 2022 में यह बाज़ार 203 अरब डॉलर का था, जिसके 2028 तक 400 अरब डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है। इस बाज़ार का 60-65% हिस्सा अमेरिकी और यूरोपीय कंपनियों के नियंत्रण में है। अकेले अमेरिकी कंपनी मर्क (Merck) की कैंसर दवा Keytruda की बिक्री 2023 में 25 अरब डॉलर से अधिक रही, जो कंपनी की कुल आय का 40% है।
पश्चिमी कंपनियों को क्या है परेशानी?
दावे के अनुसार, अगर कैंसर का एक स्थायी इलाज मिल जाता है, तो इससे इन कंपनियों का मौजूदा बाज़ार ख़तरे में पड़ सकता है। उनका व्यापार मॉडल लंबे समय तक चलने वाले और महंगे इलाज पर टिका है। उदाहरण के लिए, Keytruda की एक खुराक की क़ीमत लगभग ₹8-9 लाख तक हो सकती है। अगर एक सस्ती या मुफ़्त वैक्सीन बाज़ार में आ जाए, तो कीमोथेरेपी और इम्यूनोथेरेपी जैसे महंगे इलाजों की ज़रूरत कम हो जाएगी।
हालाँकि, इस दावे का खंडन भी किया जाता है। तर्क यह है कि दवा कंपनियाँ हर साल रिसर्च और डेवलपमेंट पर अरबों डॉलर ख़र्च करती हैं। 2023 में यह ख़र्च $250 अरब से ज़्यादा था। अगर वे जानबूझकर स्थायी इलाज को रोक रही होतीं, तो रिसर्च पर इतना पैसा क्यों लगातीं?
विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक रूसी वैक्सीन से जुड़ा वैज्ञानिक डेटा सार्वजनिक नहीं होता, तब तक इस बारे में किसी नतीजे पर पहुँचना जल्दबाज़ी होगी। फिलहाल, ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं मिला है जो यह साबित करे कि पश्चिमी कंपनियाँ जानबूझकर कैंसर का इलाज रोक रही हैं।