एक छोटे से गांव की एक महिला की कहानी है, जो अपने ही परिवार के उन लोगों के अत्याचारों के साए में जी रही थी, जिन पर वह विश्वास करती थी। रोज़मर्रा की जिंदगी में वह खामोशी से अपने कष्ट सहती रही, छिपकर डरती थी कि आज भी उसका वही दर्द उससे सहारा नहीं छीन लेगा।
वह अक्सर पड़ोसी के घर जा छिप जाती थी, क्योंकि उसे पता था कि जब वे आएंगे, कुछ भी हो सकता है। और फिर वह दिन आ गया, जब पति, ससुर और देवर ने उसे जबरदस्ती अपने घर से खींचा, जैसे कोई वस्तु हो। वे उसे फटकारते हुए, उससे नासमझी की हदें पार करते हुए जंगल की तरफ ले गए।

वीडियो में साफ दिख रहा था वो भयावह दृश्य, जिसमें उसे फंदा सी लगी हुई साड़ी से जयादा मजबूर किया जा रहा था कि वह कुछ झुके, उसका मन डरे, और वह चुप रहे। उसकी पीड़ा, उसके दर्द के स्वर अभी भी ज़ुबां पर थे, लेकिन कहीं कोई सुनने वाला नहीं था, बस कैमरे में कैद यह नृशंसता इंटरनेट पर फैल गई।
गांव के लोग और सोशल मीडिया पर लोग इस भयावह घटना के खिलाफ आवाज़ उठाने लगे। पुलिस ने इस बात को गंभीरता से लिया और त्वरित कार्रवाई के आदेश जारी कर आरोपी पति, ससुर और देवर की तलाश में जुट गई। लेकिन अपराधियों ने खुद को छुपा लिया, डर के साये में जंगल की तरह गुम हो गए।
यह कहानी केवल एक पीड़िता की नहीं, बल्कि उन तमाम महिलाओं की भी है जो अपने घरों में दबा दिए जाते हैं, जिनकी आवाज़ दब जाती है। यह एक ऐसे समाज की कहानी है जहाँ सुरक्षा के नाम पर ही सबसे बड़ी चोट पहुंचाई जाती है।
कहानी का संदेश:
घर वह जगह होनी चाहिए जहाँ हर कोई सुरक्षित महसूस करे, न कि डर के साये में पड़ा महफ़ूज़। पीड़ा की इस चुप्पी को तोड़ना हम सबकी जिम्मेदारी है। हम सबको मिलकर एक ऐसा समाज बनाना होगा जहाँ किसी के गले में फंदा ना हो, जहाँ सभी की आवाज़ सुनी जाए और न्याय मिले।