जब! 28 km पैदल चलकर रात 3 बजे शादी करने पहुंचा दूल्हा, यह देख रो पड़ी दुल्हन, मजबूरी ऐसी थी कि काम ना आ सकीं 4 SUV· “ >.

जब! 28 km पैदल चलकर रात 3 बजे शादी करने पहुंचा दूल्हा, यह देख रो पड़ी दुल्हन, मजबूरी ऐसी थी कि काम ना आ सकीं 4 SUV· “ >.
When! The bridegroom walked 28 km to get married at 3 o’clock in the night, seeing this the bride wept, the compulsion was such that 4 SUVs could not work

ब्रह्मपुर(Brahmapur). गाजे-बाजे-डीजे और घोड़ी के बगैर भला कोई बारात होती है? लेकिन मजबूरी कुछ भी करा सकती है। कहीं दुल्हन नाराज न हो जाए, शादी न टूट जाए…इस चिंता में रायगड़ा जिले में न केवल बाराती, बल्कि दूल्हा भी शादी के लिए 28 किमी पैदल चला। बिना ढोल-बाजों और लाइटिंग से परे यह बारात ऐसी दिख रही थी, मानों लोग किसी तीर्थयात्रा पर पैदल निकले हों। पूरे ओडिशा में ड्राइवरों की हड़ताल के कारण दूल्हे और उसकी बारात को व्हीकल्स ही नहीं मिले। ओडिशा में ड्राइवरों के एकता महामंच ने हड़ताल रखी थी। इसके चलते कहीं भी व्हीकल्स नहीं चल रहे थे। जब कहीं से भी व्हीकल्स का इंतजाम नहीं हुआ, तब बारातियों को गुरुवार की रात(16 मार्च) पार्थीगुड़ा गांव से पैदल ही बारात ले जाने का फैसला किया। आखिरकार वे रात 3 बजे दुल्हन के घर पहुंचे।

दूल्हे नरेश प्रस्का(22 साल) ने अपनी बारात के लिए चार एसयूवी का इंतजाम किया था, लेकिन ड्राइवरों के हड़ताल पर चले जाने से उनकी योजना पर पानी फिर गया।
दूल्हे ने कहा-“हमने टूव्हीलर्स पर शादी के लिए आवश्यक सामग्री भेजी और आठ महिलाओं सहित परिवार के लगभग 30 सदस्यों, रिश्तेदारों और दोस्तों ने पैदल चलने का फैसला किया। यह एक लंबी यात्रा थी, लेकिन एक यादगार अनुभव भी था।”

रायगड़ा के कल्याणसिंहपुर ब्लॉक के सुनखंडी ग्राम पंचायत के अंतर्गत पार्थीगुड़ा गांव आता है। दूल्हा जब पैदल ही बारात लेकर पहुंचा, तो दुल्हन के परिजन खुशी से झूम उठे और नम आंखों से उनका स्वागत किया। चूंकि शादी का कार्यक्रम शुक्रवार(17 मार्च) की सुबह के दौरान हुआ था, इसलिए शादी की रस्में देर से शुरू हुईं और दोपहर तक पूरी हो गईं।

शादी की रस्में पूरी होने के बाद खाने का आयोजन किया गया। आमतौर पर रिसेप्शन रात में होता है, लेकिन यह डिनर न होकर लंच बन गया। नरेश की शादी दिबालापाडू गांव में तय हुई थी। दूल्हे के करीबी दोस्त सुंदर प्रस्का ने कहा कि दूल्हे दूल्हा अब तभी दुल्हन को लेकर घर लौटेगा, जब हड़ताल खत्म होने पर उन्हें गाड़ी मिल सके।

दुल्हन के चाचा ने कहा-“हम आदिवासी हैं और लंबी यात्राओं से परिचित हैं। हम रात में भी सड़कों से परिचित हैं और शादियों के लिए पैदल चलना आम बात है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों से अब व्हीकल्स का ही उपयोग किया जा रहा है।”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *