
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठवें वेतन आयोग के गठन को मंजूरी दे दी है। इससे केंद्र सरकार के एक करोड़ से अधिक कर्मचारियों और पेंशनर्स को फायदा होगा। माना जा रहा है कि इस आयोग की सिफारिशें अगले साल 1 जनवरी से लागू की जा सकती हैं। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इससे अगले वित्त वर्ष में सरकार के फाइनेंस पर असर पड़ने की संभावना नहीं है। लेकिन जब सरकार बढ़ी हुई सैलरी जारी करेगी तो उससे महंगाई पर असर पड़ेगा और निजी खपत को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को 2025-26 से आगे भी फिस्कल कंसोलिडेशन के रास्ते पर बने रहना होगा। सरकार का लक्ष्य साल 2025-26 तक अपने राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 4.5% तक लाना है। चालू वित्त वर्ष के लिए बजट अनुमान 4.9% है।
ICRA की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि 8वें वेतन आयोग के गठन के फैसले से वित्त वर्ष 2026 में राजकोषीय मीट्रिक प्रभावित होने की संभावना नहीं है, लेकिन इसके संभावित प्रभाव को नए मध्यम अवधि के फिस्कल कंसोलिडेशन पाथ के साथ-साथ वित्त आयोग की सिफारिशों में शामिल किया जाना चाहिए। बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि सैलरी में बढ़ोतरी से केंद्र सरकार के राजकोषीय घाटे पर दबाव पड़ेगा। इसलिए, घाटे को जीडीपी के 3% तक कम करना और भी महत्वपूर्ण है। यदि घाटे को कम रखा जाता है, तो सरकार के लिए उच्च खर्च वहन करना आसान होगा।
इकॉनमी पर असर
इंडिया रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री डीके पंत ने कहा कि आठवें वेतन आयोग के निर्णय का सटीक प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि वेतन और पेंशन में कितनी बढ़ोतरी होती है। लेकिन यह महंगाई और सरकार की मजदूरी लागत को प्रभावित कर सकता है। साथ ही इससे निजी खपत को सपोर्ट मिल सकता है जबकि बचत को भी बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। सितंबर तिमाही में जीडीपी ग्रोथ में गिरावट के लिए खासकर शहरी क्षेत्रों में गिरावट को जिम्मेदार ठहराया गया। पंत ने कहा कि इससे राज्य सरकारों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और नगर निकायों के कर्मचारियों के वेतन ढांचे पर भी असर पड़ेगा। इससे पेंशन बिल भी बढ़ेगा। इसका इकॉनमी पर एक व्यापक असर देखने को मिलेगा।