
AIMIM चीफ और हैदराबाद सांसद असदुद्दीन ओवैसी
उत्तर प्रदेश में आई लव मोहम्मद पर विवाद हर दिन के साथ बढ़ता जा रहा है. इस विवाद के बीच सोशल मीडिया पर AIMIM चीफ और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी का एक वीडियो वायरल हो रहा है. इस वीडियो में ओवैसी आई लव मोहम्मद लिखा पोस्टर लेने से इनकार कर रहे हैं. दरअसल उस पोस्ट में एक और गुंबद ए खजरा का फोटो लगा है और दूसरी ओर ओवैसी का फोटो लगा है. इसके साथ ही उसमें आई लव मोहम्मद लिखा हुआ है. वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि एक समर्थक उन्हें ये पोस्टर भेंटकर सम्मानित कर रहा है.
समर्थक के पोस्टर देने के बाद ओवैसी हंसकर उसे कबूल करते हैं. तभी उनकी नजर उस पोस्टर में बने उनकी तस्वीर पर जाती है जो गुंबद ए खजरा के ठीक बगल में लगी होती है. ऐसे में पहले तो ओवैसी उसे ढकने को कहते हैं. इसके बाद पोस्टर देने वाला अपने हाथ से उनकी तस्वीर को ढक देता है. आवैसी इस पर अपने समर्थक से कहते हैं कि कहां गुंबद ए खजरा और कहां मैं. इसके बाद ओवैसी समर्थकों से कहते हैं कि ये पोस्टर अपने पास ही रखें. उन्होंने यह पोस्टर सम्मान लौटा दिया.
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा ओवैसी का ये वीडियो pic.twitter.com/r5YuIxAkN2
— thevishnu (@imvishnupandey) October 3, 2025
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ये गुंबद ए खजरा क्या है? जिसके बगल में बनी अपनी फोटो देख उसे ओवैसी ने सम्मान वापस कर दिया…
क्या है गुंबद ए खजरा?
गुंबद ए खजरा, जिसे हरा गुंबद भी कहा जाता है, सऊदी अरब के मदीना शहर में मस्जिद-ए-नबवी के दक्षिण-पूर्व कोने पर स्थित है. यह इस्लाम का एक अत्यंत पवित्र और ऐतिहासिक स्थल है. हरे रंग का ये गुंबद पैगंबर मुहम्मद और उनके दो साथियों खलीफा अबू बक्र और खलीफा उमर के मकबरे के ऊपर बना हैं. इसे हरा गुंबद के नाम से भी जाना जाता है. इसी हरे रंगे (खजरा) के कारण ही इस गुंबद को ‘गुंबद ए खजरा’ के नाम से जाना जाता है. हर साल दुनिया भर से लाखों मुसलमान इस गुंबद और मस्जिद का ज़ियारत करने आते हैं.
कब-कब बदलाा गुंबद का रंग
इस गुंबद का निर्माण सबसे पहले साल 1279 ईस्वी में मामलुक सुल्तान अल मंसूर कलावुन के दौर में लकड़ी से किया गया था. उस समय यह बिना रंग का था. समय के साथ इसमें कई बदलाव होते रहे. 15वीं शताब्दी के अंत तक इसे कई बार बनाया गया और रंग भी बदले गए, कभी सफेद, कभी नीला और कभी चांदी जैसे रंग से इसे सजाया गया. 1481 में मस्जिद में आग लगने के बाद सुल्तान कैतबे ने इसे फिर से बनवाया और लकड़ी की जगह ईंटों का प्रयोग किया. इसके बाद गुंबद को शीशे की प्लेट से ढक दिया गया ताकि यह और मज़बूत हो सके. आज जो गुंबद हम देखते हैं, उसका निर्माण 1818 में उस्मानी सुल्तान महमूद द्वितीय ने कराया था. इसके लगभग 20 साल बाद, 1837 में इसे हरे रंग से रंगा गया और तब से यह ‘गुंबद ए खज़रा’ यानी हरा गुंबद कहलाने लगा.
गुंबद को क्यों माना जाता है खास?
गुंबद की यह पहचान केवल उसके रंग की वजह से नहीं है, बल्कि इसलिए भी है क्योंकि यह पैगंबर मुहम्मद मकबरे के ठीक ऊपर स्थित है. यह स्थान हज़रत आयशा रज़ि. के कमरे का हिस्सा था, जहां पैगंबर का निधन हुआ था. इस गुंबद का इतिहास कई बार हुए पुनर्निर्माण, रंग बदलने और संरचनात्मक सुधारों से जुड़ा हुआ है. हालांकि इतिहास में कई मौकों पर धार्मिक ढांचों को हटाया गया, लेकिन गुम्बद ए खज़रा को कभी हटाया नहीं गया. संक्षेप में कहा जाए तो गुंबद ए खज़रा इस्लाम की आस्था और इतिहास का प्रतीक है. इसके निर्माण की यात्रा 13वीं शताब्दी से शुरू होकर 19वीं शताब्दी में अपने वर्तमान स्वरूप तक पहुंची. आज यह हरे रंग का गुंबद दुनिया भर के मुसलमानों के लिए श्रद्धा और आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.