क्या होता है COD चार्ज? जिससे ई-कॉमर्स कंपनियां कर रही हैं कमाई

क्या होता है COD चार्ज? जिससे ई-कॉमर्स कंपनियां कर रही हैं कमाई

कैश-ऑन-डिलीवरी

सरकार ने ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स द्वारा कैश-ऑन-डिलीवरी (COD) ऑर्डर पर एक्स्ट्रा चार्ज लगाने की जांच शुरू की है. इसे “डार्क पैटर्न” कहा गया है, जो कस्टमर्स को गुमराह करता है और उनका फायदा उठाता है. आइए आपको डिटेल में बताते हैं कि ये सीओडी चार्ज और डार्क पैटर्न क्या होता है और इसके जरिए ई-कॉमर्स कंपनियां कमाई कैसे करती हैं.

इस साल की शुरुआत में कस्टमर्स ने शिकायत की थी कि कुछ प्लेटफॉर्म्स COD ऑर्डर पर ‘कैश हैंडलिंग चार्ज’ लगा रहे हैं. जुलाई में Zepto के यूजर्स ने सोशल मीडिया पर इसकी शिकायत की थी कि चेकआउट के वक्त छिपे हुए चार्जेज लगाए जा रहे हैं. ये चार्जेज “ड्रिप प्राइसिंग” का हिस्सा हो सकते हैं, जो भारत में 13 डार्क पैटर्न्स में से एक है और गैरकानूनी माना जाता है.

क्या होता है COD चार्ज?

कैश-ऑन-डिलीवरी (COD) एक भुगतान विधि है जिसमें ग्राहक ऑर्डर डिलीवरी के समय नकद या डिजिटल पेमेंट करता है. ई-कॉमर्स कंपनियां इसे ग्राहकों को ऑनलाइन खरीदारी में भरोसा बढ़ाने और सुविधा प्रदान करने के लिए ऑफर करती हैं. वे डिलीवरी पार्टनर के साथ मिलकर COD लागू करती हैं, जहां कूरियर भुगतान एकत्र करता है. उदाहरण के तौर पर अगर आप किसी ऑनलाइन ई-कॉमर्स कंपनी से कुछ सामान ऑर्डर करते हैं तो वहां पर पैसा देने के दो-तीन ऑप्शन होते हैं एक तो क्रेडिट कार्ड से पेमेंट का होता एक यूपीआई से पेमेंट करने का विकल्प होता और एक कैश-ऑन-डिलीवरी का होता है. अगर आप सीओडी चुनते हैं और मान लीजिए 1500 रुपये का मोबाइल कवर ऑर्डर करते हैं तो डिलीवरी के समय आपको डिलीवरी पार्टनर को 1500 रुपये कैश में या नकद देने होंगे.

डार्क पैटर्न क्या हैं?

डार्क पैटर्न वो ट्रिक्स हैं, जो वेबसाइट्स या ऐप्स में यूज किए जाते हैं ताकि कस्टमर्स को बेवकूफ बनाया जाए. ये छिपे हुए डिजाइन या भ्रामक भाषा हो सकती है, जो यूजर्स को कुछ ऐसा करने के लिए मजबूर करती है, जो वो नहीं चाहते हैं.

  • डिलीवरी चार्ज को आखिरी स्टेप तक छिपाना.
  • सहमति बॉक्स पहले से चेक करना.
  • सिर्फ 1 प्रोडक्ट बचा है जैसे झूठे मैसेज दिखाना.

नवंबर 2023 में सरकार ने 13 ऐसे डार्क पैटर्न्स को ‘अनुचित व्यापार प्रथाओं’ के तहत बैन किया, जिसमें ड्रिप प्राइसिंग, झूठी जल्दबाजी, सब्सक्रिप्शन ट्रैप और छिपे हुए विज्ञापन शामिल हैं.

भारत में ये समस्या कितनी बड़ी है?

2024 की ASCI रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के टॉप 53 ऐप्स में से 52 में कम से कम एक डार्क पैटर्न पाया गया. ये छिपे हुए चार्जेज, बार-बार पॉप-अप, या भ्रामक डिजाइन हो सकते हैं. खासकर ई-कॉमर्स, फिनटेक और गेमिंग ऐप्स में ये आम है. कस्टमर्स को अक्सर बाद में पता चलता है कि उन्हें ठगा गया.

सरकार क्या कर रही है?

COD चार्जेज की जांच के साथ-साथ सरकार डिजिटल फ्रॉड पर नकेल कस रही है. 28 मई को मंत्रालय ने ई-कॉमर्स कंपनियों के साथ मीटिंग की और उन्हें अपने ऐप्स का ऑडिट करने को कहा. साथ ही, एक जॉइंट वर्किंग ग्रुप बनाने का प्लान है, जो इन समस्याओं पर नजर रखेगा. जांच में ये देखा जाएगा कि चार्जेज के बारे में कस्टमर्स को साफ-साफ बताया गया या नहीं.

आगे क्या होगा?

अगर कोई प्लेटफॉर्म डार्क पैटर्न इस्तेमाल करता पाया गया, तो उस पर जुर्माना, डिजाइन में बदलाव या सख्त नियम लागू हो सकते हैं. COD भारत में बहुत पॉपुलर पेमेंट तरीका है, खासकर छोटे शहरों में. इसलिए ये जांच बहुत अहम है. सरकार का ये कदम दिखाता है कि अब शुल्क और डिजाइन भी उतने ही सख्ती से चेक किए जाएंगे, जितना प्राइसिंग और विज्ञापन किए जाते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *