
वाल्मीकि जयंती की कहानी
Valmiki Jayanti: भारत के दर्शन और इतिहास में एक बहुत ही चर्चित नाम महर्षि वाल्मीकि का है. अश्वीन माह की पूर्णिमा तिथि पर महर्षि वाल्मीकि का जन्म हुआ. आज उनकी जयंती देश भर में मनाई जा रही है. महर्षि वाल्मीकि ने रामायण जैसा महाकाव्य रचा, लेकिन वाल्मीकि को महर्षि की पदवी कठोर तप के बाद मिली. महर्षि वाल्मीकि के जीवन को देखते हुए शायद ही कोई इस बात को मान सकता है कि ऐसा इंसान डाकू भी रहा होगा.
महर्षि वाल्मीकि का असली नाम रत्नाकर था. उनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. रत्नाकार लोगों से लूटपाट करता था. राह से गुजरते लोगों पर घात लगाकर हमला करता था. फिर कैसे रत्नाकार महर्षि वाल्मीकि बन गए. आइए इस कहानी के बारे में जानते हैं.
रत्नाकर की मुलाकात नारद मुनि से हुई
एक समय की बात है कि रत्नाकर नाम का एक डाकू लोगों पर हमला करके जबरन उनसे रुपये-पैसे और उनकी संपत्ति छीन लेता था. ऐसा वो कापी समय से करता चला आ रहा था. फिर एक दिन उसकी मुलाकात नारद मुनि से हुई. नारद मुनि से मुलाकात के बाद ही रत्नाकार का जीवन बदला. अचानक नारद मुनि रत्नाकर के सामने आए तो रत्नाकर ने उन्हें डराने की कोशिश की.
हालांकि, नारद मुनि जरा भी भयभीत नहीं हुए. नारद मुनि के इस स्वभाव को देखकर रत्नाकर थोड़ा हैरान हुआ. उसने देखा कि नारद मुनि के पास वाीणा के अलावा ऐसा कुछ नहीं है, जिसे वो छीन सकता हो. इसके बाद भी रत्नाकर ने नारद मुनि से कहा कि अगर उनको उनकी जान बचानी है, तो जो भी कीमती उनके पास हो वो सब उसे दे दें.
नारद मुनि ने किया सवाल
इस पर नारद मुनि ने रत्नाकर से कहा कि उनके पास एक अनमोल चीज तो है, लेकिन क्या वह उसे उनसे ले पाएगा. रत्नाकर फिर थोड़ा हैरान हुआ. फिर नारद मुनि ने एक प्रश्न किया कि रत्नाकर जो तुम लूटपाट करते हुए वो किसके लिए करते हो. इस पर रत्नाकर ने जवाब दिया कि वो ऐसा अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए करता है. नारद मुनि ने फिर रत्नाकर से सवाल किया.
नारद मुनि ने कहा कि जो भी कर्म तुम अपने परिवार के लिए कर रहे हो. उसका परिणाम आने पर तुम्हारा परिवार तुम्हारे साथ रहेगा. क्या इस डकैती के कर्म में तुम्हारा परिवार तुम्हारा सहभागी है. इसके बाद रत्नाकर के मन में जिज्ञासा हुई. उसने नारद मुनि को एक पेड़ से बांधा और अपने परिवार के पास इस सवाल को लेकर गया. तब उसके परिजनों यानी पत्नी और पिता दोनों ने साफ इनकार कर दिया.
रत्नाकर को हुआ अहसास
दोनों नेे रत्नाकर से कहा कि उसे अपने कर्मों का फल खुद ही भोगना होगा. वह इस काम में उसके सहभागी नहीं बनने वाले. परिवार के जवाब से हताश-निराश रत्नाकर नारद मुनि के पास वापस आया. फिर उसको अहसास हुआ कि वो व्यर्थ के कामों में अपना जीवन खराब कर रहा है. इसके बाद उसके भीतर खुद को बदलने की चाह जगी. फिर नारद मुनि ने उसे राम नाम की संपत्ति के बारे में बताया.
डाकू को महर्षि वाल्मीकि में बदला
यहीं से शुरू हुआ रत्नाकर का आध्यात्मिक सफर. इस सफर ने डाकू रत्नाकर को महर्षि वाल्मीकि में बदल दिया. उन्होंने कठोर तप करना शुरू कर दिया. ब्रह्मा जी उनके तप से प्रसन्न हुए और उनको भगवान राम के जीवन पर ग्रंथ लिखने का आदेश दिया. इसके बाद ही महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना की. माता सीता के वनवास के समय़ महर्षि वाल्मीकि ने ही उनको अपने आश्रम में शरद दी. लव और कुश का जन्म उनके ही आश्रम में हुआ. उन्होंने लव और कुश को शिक्षा दी और युद्ध कला सिखाई.
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Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और सामान्य जानकारियों पर आधारित है. टीवी9 भारतवर्ष इसकी पुष्टि नहीं करता है.