घोड़ों और खच्चरों के दम पर बना दुनिया का सबसे ऊंचा रेल पुल, चिनाब ब्रिज की अनसुनी कहानी

घोड़ों और खच्चरों के दम पर बना दुनिया का सबसे ऊंचा रेल पुल, चिनाब ब्रिज की अनसुनी कहानी
The world’s highest rail bridge built with the help of horses and mules, the unheard story of Chenab Bridge

Chenab Railway Bridge: हिमालय की ऊंची-नीची पहाड़ियों में कभी घोड़ों और खच्चरों की टापें गूंजती थीं. उस वक्त किसी ने सोचा भी नहीं था कि इन्हीं टेढ़े-मेढ़े रास्तों पर एक दिन दुनिया का सबसे ऊंचा रेल पुल खड़ा होगा. लेकिन भारतीय इंजीनियरों की जिद और हौसले ने इस सपने को हकीकत में बदल दिया.

कश्मीर से कन्याकुमारी तक रेल कनेक्शन के सपने को पूरा करने की दिशा में चिनाब ब्रिज एक ऐतिहासिक पड़ाव है. पर यह कहानी सिर्फ स्टील और कंक्रीट की नहीं है, बल्कि इंसानी हिम्मत और जज्बे की भी है. शुरुआत में पुल के निर्माण स्थल तक पहुंचना ही सबसे बड़ी चुनौती थी. वहां तक न सड़क थी, न पक्के रास्ते. सिर्फ संकरी, पहाड़ी पगडंडियां थीं. आज वहां 360 मीटर ऊंचा रेलवे पुल खड़ा है. पढ़ें चिनाब ब्रिज बनने की पूरी कहानी.

इस मुश्किल को दूर करने के लिए घोड़ों और खच्चरों का सहारा लिया गया. अफकॉन्स इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड नाम की कंपनी ने इस परियोजना को पूरा किया. उसके प्रवक्ता ने बताया – ‘शुरुआत में प्रोजेक्ट टीम के सदस्य खच्चरों और घोड़ों की मदद से साइट तक पहुंचते थे. धीरे-धीरे अस्थायी सड़कें बनाई गईं, जो बाद में स्थायी रास्तों में बदल दी गईं.’

इस कठिन इलाके को काबू में लाने में कड़ी मेहनत और धैर्य लगा. चिनाब नदी के उत्तर तट पर 11 किलोमीटर और दक्षिण तट पर 12 किलोमीटर लंबी सड़क काटी गई. इन्हीं रास्तों से भारी-भरकम मशीनें, स्टील और बाकी जरूरी सामान साइट तक पहुंचाया गया.

शुक्रवार को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पुल पर तिरंगा लहराते हुए पैदल मार्च किया, तो यह केवल एक पुल का उद्घाटन नहीं था, बल्कि देश की इंजीनियरिंग क्षमता का प्रतीक बन गया. चिनाब ब्रिज के साथ पीएम ने अंजी रेल ब्रिज, उधमपुर-श्रीनगर-बारामुला रेल लिंक (USBRL) और वंदे भारत ट्रेनों को भी हरी झंडी दिखाई.

हिमालय को साधना आसान नहीं था. दुनिया के सबसे ऊंचे क्रॉसबार केबल क्रेनों और भारी मशीनों के जरिए पुराने, कमजोर ढलानों को मजबूत किया गया ताकि विशाल आर्च की नींव डाली जा सके. 5 अप्रैल 2021 का दिन इस प्रोजेक्ट के लिए ऐतिहासिक रहा. चिनाब के दोनों किनारों से निकले कैंटिलीवर आर्च हवा में ऐसे मिले मानो दो हाथ एक-दूसरे को थाम रहे हों. वर्षों की गणना, साहस और तकनीकी विशेषज्ञता के बाद यह नजारा साकार हुआ.

भारत में रेलवे इतिहास में पहली बार इन्क्रिमेंटल लॉन्चिंग तकनीक को ट्रांजिशन कर्व और लॉन्गिट्यूडिनल ग्रेडिएंट पर एक ही जगह प्रयोग में लाया गया.

यह पुल सिर्फ इंजीनियरिंग नहीं, बल्कि वैज्ञानिक सटीकता का भी नमूना है. परियोजना स्थल पर ही नेशनल एक्रेडिटेशन बोर्ड फॉर टेस्टिंग एंड कैलिब्रेशन लेबोरेट्रीज (NABL) से प्रमाणित एक लैब स्थापित की गई, ताकि निर्माण की गुणवत्ता में कोई समझौता न हो.

आज यह पुल चिनाब नदी से 359 मीटर ऊंचा खड़ा है, यानी पेरिस के एफिल टॉवर से भी 35 मीटर ज्यादा ऊंचा. यह न केवल भारत, बल्कि दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे ब्रिज बन चुका है. यह सिर्फ स्टील की नहीं, बल्कि हिम्मत और उम्मीद की कहानी है, जिसने दुनिया को दिखा दिया कि अगर इरादा मजबूत हो तो पहाड़ भी झुकाए जा सकते हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *