
अमेरिका ने एच-1बी वीजा की फीस 1,00,000 डॉलर कर दी है.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से H-1B वीजा शुल्क बढ़ाकर प्रति कर्मचारी 100,000 अमेरिकी डॉलर करने के फैसले से भारत से ज्यादा अमेरिका को नुकसान होने की संभावना है. आर्थिक थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) ने रविवार को कहा कि भारतीय आईटी कंपनियां पहले से ही अमेरिका में 50-80 प्रतिशत स्थानीय कर्मचारियों को रोजगार दे रही हैं, जो कि कुल मिलाकर लगभग 1,00,000 अमेरिकी नागरिक हैं.
जीटीआरआई ने कहा, ‘इसलिए यह कदम अधिक नए रोजगार नहीं पैदा करेगा. इसके बजाय, यह ऑन-साइट भारतीयों को नियुक्त करना स्थानीय लोगों की तुलना में अधिक महंगा बना देगा.’ थिंक टैंक ने आगे कहा कि अमेरिका में पांच वर्षों के अनुभव वाले एक आईटी मैनेजर को 1,20,000 से 1,50,000 डॉलर तक वेतन मिलता है, जबकि एच-1बी वीजा पर आने वाले को इससे 40 प्रतिशत कम और भारत में काम करने वाले को 80 प्रतिशत कम वेतन मिलता है.
ये कदम उठाएंगी कंपनियां
जीटीआरआई के अजय श्रीवास्तव ने कहा, ‘इस भारी शुल्क का सामना करते हुए, कंपनियां ऑफशोरिंग को तेज करेंगी, यानी भारत से ही रिमोट वर्क बढ़ेगा. इसका मतलब है कम एच-1बी आवेदन, स्थानीय स्तर पर कम भर्ती, अमेरिकी ग्राहकों के लिए परियोजना लागत में वृद्धि और इनोवेशन की रफ्तार में कमी आएगी.’
भारत को बनानी चाहिए नई योजना
श्रीवास्तव ने आगे कहा कि भारत को इस फीस बढ़ोतरी का लाभ उठाने की योजना बनानी चाहिए और लौटने वाली प्रतिभा का उपयोग सॉफ्टवेयर, क्लाउड और साइबर सुरक्षा में घरेलू क्षमता निर्माण के लिए करना चाहिए, जिससे अमेरिका के इस संरक्षणवादी कदम को भारत के डिजिटल ‘स्वराज मिशन’ के लिए एक दीर्घकालिक बढ़ावा बनाया जा सके. उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रपति ट्रंप का 19 सितंबर को एच-1बी वीजा शुल्क बढ़ाने का निर्णय भारत से अधिक अमेरिका को नुकसान पहुंचा सकता है.’
1 लाख डॉलर की फीस
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को एक घोषणा पर हस्ताक्षर किए जिससे कंपनियों की ओर से भारत सहित अन्य देशों से कर्मचारियों को नियुक्त करने के लिए उपयोग किए जाने वाले वीजा पर शुल्क बढ़ा दिया गया. व्हाइट हाउस के एक अधिकारी ने शनिवार को स्पष्ट किया कि एच-1बी वीजा का 1,00,000 डॉलर का शुल्क केवल नए आवेदकों पर लागू होगा.
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