
मध्य प्रदेश के आदिवासी युवक अनोखी लाल की जिंदगी जैसे एक झूठे आरोप की भेंट चढ़ गई। 2013 में, 21 साल के अनोखी लाल को 9 वर्षीय लड़की से बलात्कार और हत्या के आरोप में केवल दो हफ्तों में फांसी की सजा सुना दी गई। वह भी सिर्फ एक बार नहीं, बल्कि तीन बार अलग-अलग अदालतों ने उन्हें मौत की सजा दी।
लेकिन मार्च 2024 में, लगभग 11 साल (4,033 दिन) जेल में बिताने और कानूनी प्रक्रिया के छह दौर झेलने के बाद, उसी ट्रायल कोर्ट ने उन्हें निर्दोष करार दिया, जिसने एक दशक पहले उन्हें मौत की सजा सुनाई थी।
मामला कैसे शुरू हुआ
जनवरी 2013 में मध्य प्रदेश के एक गांव में 9 साल की बच्ची लापता हुई। माता-पिता ने आखिरी बार उसे अनोखी लाल के साथ देखा था। गांव के एक अन्य व्यक्ति ने भी यह गवाही दी।
दो दिन बाद बच्ची की लाश मिली। पोस्टमॉर्टम में बलात्कार और हत्या की पुष्टि हुई। पुलिस ने सिर्फ 9 दिन में जांच पूरी की और मामला अदालत में पहुंचा।
उस दौर में 2012 के निर्भया कांड के बाद पूरे देश में गुस्सा और फास्ट ट्रैक न्याय की मांग थी, जिसका असर इस केस पर भी पड़ा।
सिर्फ दो हफ्तों में ट्रायल पूरा हुआ और अनोखी लाल को फांसी की सजा दे दी गई।
शुरुआत से ही खामियां
अनोखी लाल गरीब आदिवासी परिवार से थे और कभी स्कूल नहीं गए थे। राज्य ने उन्हें एक प्रॉ-बोनो वकील दिया, जो मुकदमे के दिन ही उनसे पहली बार मिले।
कोई प्रत्यक्ष गवाह नहीं था — सिर्फ डीएनए और परिस्थितिजन्य साक्ष्य। लेकिन बाद में पता चला कि इन साक्ष्यों की ठीक तरह से जांच नहीं हुई थी।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
2019 में सुप्रीम कोर्ट ने जांच और मुकदमे में “स्पष्ट खामियां” पाईं — बचाव पक्ष को तैयारी का समय ही नहीं मिला था। कोर्ट ने नए सिरे से ट्रायल का आदेश दिया।
लेकिन तीन साल बाद फिर से उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। इसी दौरान प्रोजेक्ट 39ए नाम की कानूनी सहायता संस्था जुड़ी और केस की गहराई से समीक्षा शुरू हुई।
सच्चाई का खुलासा
डीएनए रिपोर्ट की बारीकी से जांच करने पर पाया गया कि बच्ची के प्राइवेट पार्ट से मिला डीएनए अनोखी लाल का था ही नहीं, बल्कि किसी और पुरुष का था।
अन्य साक्ष्यों (कपड़े, बाल) को भी कोर्ट ने अविश्वसनीय मानते हुए खारिज कर दिया, क्योंकि उनकी हैंडलिंग में गंभीर लापरवाही थी।
आखिरकार, 11 साल बाद, अनोखी लाल निर्दोष साबित हुए और जेल से बाहर आए।
जेल से बाहर आने के बाद
जेल से लौटे अनोखी लाल ने पाया कि उनका शहर और लोग बदल चुके थे। वे कई रिश्तेदारों को पहचान नहीं पाए और अपनी मातृभाषा तक भूल गए थे।
उन्होंने कहा —
“पिछले 11 सालों का बदला मुझे कौन देगा? अगर मैंने आत्महत्या कर ली होती, तो सब यही मानते कि मैं दोषी था।”
पीड़िता के परिवार का दर्द
पीड़िता के पिता को भी अनोखी लाल की रिहाई की खबर किसी अजनबी ने दी। उनका मानना है कि गरीबी और वकील की कमी ने पूरे मामले को गलत दिशा में मोड़ दिया।
उन्होंने कहा —
“अगर मेरी बेटी जिंदा होती, तो अब 21 साल की होती। वह मेरी जान थी।”
न्याय की भारी कीमत
इन 11 सालों ने सिर्फ अनोखी लाल का ही नहीं, उनके पूरे परिवार का जीवन बदल दिया। आधी जमीन बिक गई, कानूनी खर्चों ने कर्ज बढ़ा दिया, और सालों तक मिलने-जुलने में भी पैसों की समस्या ने कठिनाई पैदा की।
अनोखी लाल की यह कहानी सिर्फ एक व्यक्ति के लिए न्याय में देरी का उदाहरण नहीं है, बल्कि यह दिखाती है कि तेज और अधूरी जांच, कानूनी सहायता की कमी, और सामाजिक दबाव किस तरह किसी की जिंदगी बर्बाद कर सकता है।