वक्फ संशोधन अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में महत्वपूर्ण सुनवाई हुई. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बी.आर. गवई और जस्टिस ए.जी. मसीह की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की.
सुनवाई के दौरान, CJI गवई ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि संसद द्वारा पारित किसी भी कानून में संवैधानिक होने की धारणा होती है. उन्होंने जोर देकर कहा कि जब तक कोई ठोस और स्पष्ट मामला सामने नहीं आता, तब तक अदालतें ऐसे कानूनों में हस्तक्षेप नहीं करतीं.
पहले की सुनवाई में, सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ अधिनियम से संबंधित तीन मुख्य मुद्दे तय किए थे. इनमें उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ का निर्माण, वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुसलमानों का नामांकन, और वक्फ के तहत सरकारी भूमि की पहचान शामिल थे. केंद्र सरकार ने पहले कोर्ट को आश्वासन दिया था कि इन मुद्दों पर मामले के सुलझने तक कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी.
“मामले को तीन मुद्दों तक सीमित रखें” – सॉलिसिटर जनरल
मंगलवार को सुनवाई शुरू होते ही, केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि केंद्र ने इन तीन निर्धारित मुद्दों पर अपना जवाब दाखिल कर दिया है. उन्होंने कोर्ट से अनुरोध किया कि याचिकाकर्ताओं द्वारा अब उठाए जा रहे “कई अन्य मुद्दों” के बजाय, सुनवाई को केवल इन तीन मुख्य बिंदुओं तक ही सीमित रखा जाए.
हालांकि, याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने इस पर आपत्ति जताई. सिंघवी ने तर्क दिया कि तत्कालीन CJI (संजीव खन्ना) ने पूरे मामले की सुनवाई करने और अंतरिम राहत पर विचार करने की बात कही थी, ऐसे में अब सुनवाई को कुछ मुद्दों तक सीमित नहीं किया जा सकता. उन्होंने “टुकड़ों में सुनवाई” का विरोध किया.
“वक्फ की संपत्ति छीनने के लिए बना कानून” – कपिल सिब्बल
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कोर्ट में वक्फ कानून की संवैधानिकता पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा कि यह कानून इस तरह से बनाया गया है कि बिना किसी उचित प्रक्रिया का पालन किए वक्फ की संपत्ति को छीना जा सके. उन्होंने एक उदाहरण देते हुए अपनी बात समझाई: “अगर मैं मरने वाला हूं और मैं वक्फ बनाना चाहता हूं, तो मुझे यह साबित करना होगा कि मैं मुसलमान हूं. यह असंवैधानिक है.”
इस पर CJI गवई ने अपनी पिछली टिप्पणी को दोहराते हुए कहा कि संसद द्वारा पारित कानून में संवैधानिक होने की धारणा निहित होती है. उन्होंने कहा कि अदालतें तब तक हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं जब तक कि कोई स्पष्ट मामला सामने न आ जाए, खासकर वर्तमान स्थिति में, और इससे अधिक कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है.
इस मामले में आगे क्या होता है, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सुप्रीम कोर्ट इन याचिकाओं पर किस तरह आगे बढ़ता है और क्या इन “तीन मुद्दों” के दायरे से बाहर के बिंदुओं पर भी सुनवाई होती है.