कहानी: “गई या नहीं, चालाक साज़िश और मौत के साये में छुपे राज”

एक वकील और उसकी साथी की ज़िंदगी एक अंधेरे मोड़ पर आकर थम गई। दोनों का रिश्ता दरअसल रिश्ता नहीं, उलझा हुआ खेल था जिसमें झूठ, दबाव और शक की प्यालियाँ भरी थीं। वह महिला, जो वकील के साथ रह रही थी, शादी के लिए लगातार कहती थी, लेकिन उसका पार्टनर शादी करने को तैयार नहीं था। साथ ही, पैसों की भी मांगें चल रही थीं और आपसी भरोसे में दरारें पड़ रही थीं।

शाम के वक्त, वकील ने महिला को अपनी गाड़ी में घुमाया। बाद में वह उसे एक सुनसान जगह लेकर गया जहां उसने भयावह कदम उठाया। उसने कार की चक्कियों से पहली बार महिला को दौड़ा दिया, यह सूनिश्चित करने के लिए कि वह कितनी गंभीर है। जब वह समझ गया कि महिला शायद जिंदा नहीं है, तो दोबारा से उसी कार की चपेट में उसे लाया। इस भयावह घटना के बाद उसने अपना सफारी वाहन गैराज में छोड़ दिया, और खुद एक दूसरी गाड़ी लेकर आराम करने होटल पहुंच गया।

महिला के परिजन जब इस कृत्य से अवगत हुए, तो उनमें गहरा संदेह हुआ, खासकर जब उन्होंने देखा कि वकील ने गाड़ी बदलकर लखनऊ लौटना पसंद किया। उसकी इस हरकत ने पुलिस की भी शंका को बढ़ा दिया और जांच का दायरा बढ़ गया।

कहानी: “गई या नहीं, चालाक साज़िश और मौत के साये में छुपे राज”

साथ ही, कुछ दूर दूसरी घटना घटी — एक फोटोग्राफर को रास्ते में लिफ्ट के बहाने फंसा लिया गया। बदमाशों ने उसे कार में बंधक बना कर घंटों तक घुमाया, मारपीट की और उसकी आंखों पर पट्टी बांध तेल उसके कैमरा, मोबाइल और पर्स लूट लिए। बदमाशों ने पीड़ित को बाद में एक सुनसान जगह पर छोड़ दिया और फरार हो गए। पीड़ित ने पुलिस को सूचना दी और अधिकारी आसपास के सीसीटीवी फुटेज की जांच में जुट गए।

यह दोनों घटनाएं उस शहर की काली तस्वीर को उजागर करती हैं, जहां चालाकी, जालसाजी और हालात की बेरहमी एक-दूसरे से मिलती हैं।

कहानी का संदेश:
यह कहानी हमें सचेत करती है कि किसी के भी साथ होने वाले गलत हरकतों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। जीवन की अहमियत हमेशा ऊंची होनी चाहिए और किसी भी रूप में अपराध के खिलाफ आवाज उठाना जरूरी है। इंसाफ की राह पर चलना हमारा कर्तव्य है, ताकि अंधकार में उम्मीद की रोशनी जग सके।

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