
महाभारत में कर्ण की वीरता की गाथा अलग से वर्णित है. कुंती पुत्र कर्ण की सच्चाई पांडवों से छिपाकर रखी गयी थी. कुंती ने अपनी तपस्या से ऋषि दुर्वासा को प्रसन्न किया था. और इससे प्रसन्न होकर दुर्वासा ने कुंती को एक मंत्र वरदान स्वरूप दे दिया था.
ऋषि दुर्वासा ने कहा था कि इस मन्त्र से जिस-जिस देवता का आवाहन करोगी, उसी-उसी के अनुग्रह से तुम्हें पुत्र मिलेगा. राजकुमारी कुंती ने भूलवश सूर्य देवता का आवाहन कर दिया. जिसके फलस्वरूप कुंती को कवच-कुंडल धारी सूर्य पुत्र कर्ण ही वरदान स्वरूप मिल गये.
लेकिन लोक-लाज के डर से कुंती ने पुत्र कर्ण को नदी में प्रवाहित कर दिया. लेकिन एक मां होने के नाते कुंती को अपने इस पुत्र का मोह हमेशा था. कुछ समय बाद कुन्ती का विवाह पाण्डु से हो गया और उनको उसी मंत्र के आवाहन से युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन और पाण्डु की दूसरी पत्नी माद्री को नकुल और सहदेव पुत्र रूप में मिले. लेकिन फिर भी कुंती ने किसी को भी कर्ण के बारे में नहीं कहा.
कर्ण ने महाभारत युद्ध में कौरवों की सेना में थे. लेकिन पांडवों को ये नहीं पता था कि कर्ण भी उनके भाई है. जब युधिष्ठिर को ये सच पता चला तो वो क्रोधित हो गये और ज्येष्ठ भ्राता की हत्या करने पर दुख जताया.
क्रोधित युधिष्ठिर ने समस्य नारी जाती को ही श्राप दे दिया कि कभी भी कोई नारी चाहकर भी कोई बात अपने ह्रदय में छिपाकर नहीं रख पाएगी. माना जाता है कि तभी से महिलाएं कोई बता छिपा नहीं पाती हैं.