
- आध्यात्मिक गुरु प्रेमानंद महाराज के अनुसार, भंडारे का भोजन केवल जरूरतमंदों और भिक्षुकों के लिए होना चाहिए।
- भंडारे का भोजन अगर गलत तरीके से कमाए गए धन से किया गया है, तो वह आत्मिक दृष्टि से दूषित होता है।
- मनुस्मृति और भागवत गीता के अनुसार, भोजन हमारे चित्त को प्रभावित करता है, इसलिए शुद्ध भोजन का सेवन करना आवश्यक है।
- भंडारा केवल नाम या राजनीतिक उद्देश्य से किया गया हो, तो वह ‘सात्विक दान’ नहीं माना जाता।
दान-पुण्य का लाभ पाने के लिए कुछ समर्थ लोग भंडारा करवाते हैं और कोशिश करते हैं कि जरूरतमंदों को एक समय का भोजन मिल जाए। लेकिन भंडारे का खाना इतना स्वादिष्ट होता है कि हर कोई भंडारा देखकर उसकी लाइन में लग जाता है। लेकिन क्या ऐसा करना सही है? क्या हर किसी के द्वारा भंडारे के भोजन को प्रसाद समझकर या कुछ और सोचकर ग्रहण करना सही है?भंडारे का भोजन करना सही या गलत?
शास्त्रों में गृहस्थ, संन्यासी, साधु-संत, इन सबके लिए अलग-अलग भोजन और आजीविका के नियम बने हुए हैं। जो गृहस्थ हैं, उन्हें केवल अपने कमाए धन से भोजन खरीदकर ग्रहण करना चाहिए। आध्यात्मिक गुरु प्रेमानंद महाराज कही कहना है कि भंडारे में किसी भी ऐसे गृहस्थ व्यक्ति को भोजन नहीं करना चाहिए, जो आर्थिक रूप से सक्षम हो। भंडारा केवल जरूरतमंदों और भिक्षुकों के लिए होता है। संत प्रेमानंद महाराज ने यह भी बताया कि भंडारा करने वाला हो सकता है कि गलत तरीके से कमाये गए धन से भंडारा कर रहा हो, ऐसे में उस भोजन को ग्रहण करके आप भी उस पाप के भागी बन सकते हैं।
भंडारा खाना कब पाप का कारण बन सकता है?
मनुस्मृति और भागवत गीता में बताया गया है कि जैसा भोजन हम करते हैं, वैसा ही हमारा चित्त बनता है। जब भोजन शुद्ध होता है (नैतिक, मानसिक और शारीरिक दृष्टि से), तभी उसका प्रभाव सकारात्मक होता है। लेकिन यदि वह अज्ञान, अहंकार, दिखावे या अपवित्र कमाई से किया गया हो तो वह ‘पाप का अंश’ बन सकता है। यदि किसी ने चोरी, भ्रष्टाचार या गलत तरीकों से कमाई की है और उससे भंडारा करवाता है, तो वह भोजन आत्मिक दृष्टि से दूषित होता है। ऐसा भोजन करने से खाने वाला भी उस कर्म का भागीदार बन जाता है। यह बात मनुस्मृति और गरुड़ पुराण में भी उल्लेखित है। वहीं, अगर भंडारा सिर्फ प्रसिद्धि, नाम या राजनीतिक उद्देश्य से किया गया हो, तो शास्त्रों के अनुसार वह “सात्विक दान” नहीं, बल्कि राजसिक या तामसिक दान होता है, जिसका फल अल्पकालिक और कभी-कभी नकारात्मक होता है।
शास्त्रों के अनुसार, भोजन सिर्फ पेट भरने का माध्यम नहीं, वह आत्मा के संस्कारों को पोषित करने वाला माध्यम है। इसलिए, स्वादिष्ट या मुफ्त के खाने के लालच में ना पड़ें और भंडारा करने से पहले अपने धन, उद्देश्य और भावना की शुद्धता की जाँच करें। अगर आप समर्थ हैं, तो भंडारा का भोजन आपके लिए नहीं है, बल्कि यह भूखे, जरूरतमंद, असहाय और साधु-संतों के लिए है। शास्त्रों के अनुसार, उन्हें किसी भी इस तरह का भोजन ग्रहण करने से दोष नहीं लगता।