मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर से आगे निकला सर्विस सेक्टर, नीति आयोग की चौंकाने वाली रिपोर्ट

जहां एक ओर देश के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में कोई बढ़ोतरी देखने को नहीं मिल रही है. वहीं दूसरी ओर सर्विस सेक्टर में जबरदस्त इजाफा देखने को मिल रहा है. नीति आयोग की रिपोर्ट India’s Services Sector: Insights from GVA Trends and State-level Dynamics (October 2025) से पता चलता है कि जीवीए में औद्योगिक सेक्टर की हिस्सेदारी स्थिर बनी हुई है, जो एक दशक से भी अधिक समय से 28-29 फीसदी के आसपास है. साथ ही रोजगार सृजन और संतुलित विकास के लिए आवश्यक औद्योगिक विस्तार प्रदान करने में विफल रही है. वित्त वर्ष 2023-24 में, इंडस्ट्रीयल सेक्टर का योगदान जीवीए में 28.8 फीसदी रहा. ताज्जुब की बात तो ये है कि 2011-12 से इसमें कोई बदलाव देखने को नहीं मिला है. वहीं दूसरी ओर सर्विस सेक्टर का जीवीए में 54.5 फीसदी का प्रमुख योगदान है.

मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में कोई बदलाव नहीं

इंडस्ट्रीयल सेक्टर के ठहराव का मुख्य कारण इसके मुख्य घटक, मैन्युफैक्चरिंग, का निराशाजनक प्रदर्शन है. 2011-12 और 2023-24 के बीच की पूरी अवधि के दौरान, GVA में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की हिस्सेदारी अपेक्षाकृत स्थिर रही, जो 17 प्रतिशत से 18.5 प्रतिशत के बीच मामूली उतार-चढ़ाव के साथ रही. रिपोर्ट के अनुसार, 2023-24 में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की हिस्सेदारी 17.5 प्रतिशत थी, जो 2011-12 के 17.4 फीसदी से बमुश्किल ही बढ़ी है. हालांकि, 2021-22 में यह 18.5 फीसदी के उच्च स्तर को छू गई, और फिर अगले वर्ष 16.9 फीसदी पर वापस आ गई.

कंस्ट्रक्शन सेक्टर की हिस्सेदारी में मामूली गिरावट

अपनी आनुपातिक हिस्सेदारी का विस्तार करने में असमर्थता ओवरऑल इंडस्ट्रीयल सेक्टर को सर्विस सेक्टर के मुकाबले बढ़त हासिल करने से रोकती है. अन्य प्रमुख औद्योगिक उप-क्षेत्रों में भी सीमित वृद्धि या गिरावट देखी गई. कंस्ट्रक्शन सेक्टर की हिस्सेदारी में मामूली गिरावट आई, जो 9.6 फीसदी (2011-12 में) से घटकर 8.9 फीसदी (2023-24) हो गई. बिजली, गैस, जल आपूर्ति और अन्य उपयोगिता सेवाओं की हिस्सेदारी लगभग स्थिर रही, जो केवल 2.3 फीसदी से बढ़कर 2.4 फीसदी हो गई. इस असंतुलित ग्रोथ पैटर्न—जहां उद्योग अपेक्षाओं से पीछे रहता है जबकि सर्विसेज उनसे आगे निकल जाती हैं—को ‘दोहरा विचलन’ कहा जाता है. यह समावेशी विकास के बारे में चिंताएं पैदा करता है, क्योंकि हाई प्रोडक्ट्रीविटी वाली, निर्यात-उन्मुख सेवाएं आमतौर पर अधिक कुशल, शहरी वर्कफोर्स पर निर्भर करती हैं.

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