फैमिली ऑफिसेज पर सेबी की नजर, अरबपतियों से मांगी जाएगी जरूरी जानकारी

फैमिली ऑफिसेज पर सेबी की नजर, अरबपतियों से मांगी जाएगी जरूरी जानकारी

सेबी का नया फैसला

भारत के बाजार नियामक, सेबी (SEBI), अब फैमिली ऑफिसों को अपनी निगरानी में लाने की सोच रहा है, क्योंकि देश के अरबपति स्टॉक मार्केट में बड़ी ताकत बनते जा रहे हैं. सेबी चाहता है कि फैमिली ऑफिस पहली बार अपनी कंपनी, संपत्ति और निवेश के रिटर्न की पूरी जानकारी दें. साथ ही, उनके निवेश के तरीकों को कंट्रोल करने के लिए एक अलग कैटेगरी बनाने की भी बात चल रही है.

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से यह दावा किया गया है. सेबी को यह समझना है कि बड़े-बड़े परिवार सार्वजनिक कंपनियों में कैसे निवेश करते हैं और इससे मार्केट में क्या रिस्क हो सकते हैं. इस साल की शुरुआत में सेबी ने कुछ बड़े फैमिली ऑफिसों के साथ मीटिंग की और बाकियों से लिखित में जानकारी मांगी है. मगर ये नियम किस तरीके से लागू होंगे. या फिर किन परिवारों पर इसका ज्यादा असर पड़ेगा इसके बारे में अभी साफ तौर पर कोई सूचना नहीं है.

पहले भारत में फैमिली ऑफिस बहुत कम थे, लेकिन अब ये स्टार्टअप्स, प्राइवेट इक्विटी और IPOs में बड़े निवेशक बन गए हैं. कई फैमिली ऑफिस ऑल्टरनेटिव इनवेस्टमेंट फंड्स या शैडो लेंडर्स जैसी रेगुलेटेड संस्थाओं के जरिए निवेश करते हैं. भारत में दुनिया के कुछ सबसे अमीर लोग रहते हैं. कई फैमिली ऑफिस, जैसे अजीम प्रेमजी की प्रेमजी इनवेस्ट, बजाज होल्डिंग्स, और शिव नादर व नारायण मूर्ति की इनवेस्टमेंट फर्म्स, IPOs में एंकर इनवेस्टर के तौर पर काम करते हैं. फैमिली ऑफिस एक परिवार की दौलत और लाइफस्टाइल को मैनेज करने वाली फर्म होती हैं.

क्यों कसने जा रही है नकेल?

सेबी चाहता है कि ये परिवार अपनी दौलत कैसे और कहां निवेश करते हैं, इसकी पूरी जानकारी दें ताकि हितों का टकराव, इनसाइडर ट्रेडिंग जैसे मुद्दों से बचा जा सके. श्रीनाथ श्रीधरन के मुताबिक, निफ्टी 1000 की हर कंपनी का फाउंडर भारत या विदेश में कम से कम एक निवेश इकाई रखता है, और कई बार तो इससे भी ज्यादा. यानी, कुल मिलाकर 3,000 से ज्यादा ऐसी संस्थाएं हैं, जिनमें रियल एस्टेट फर्म्स भी शामिल हैं, लेकिन इनमें से बहुत कम ही प्रोफेशनली मैनेज्ड हैं. सेबी ने बड़े फैमिली ऑफिसों से बातचीत में ये भी पूछा कि क्या उन्हें क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल बायर्स का दर्जा देना चाहिए. इससे उन्हें IPOs में खास हिस्सा मिल सकता है, जैसा कि म्यूचुअल फंड्स, इंश्योरेंस कंपनियों या विदेशी फंड्स को मिलता है. पहले सेबी ऐसी पहुंच को सीमित करना चाहता था, लेकिन अब वो इस पर विचार कर रहा है.

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