
प्रेमानंद जी महाराज भारतीय संतों में एक अग्रणी नाम हैं, जिनकी आध्यात्मिक शिक्षाओं ने न केवल उनके लाखों अनुयायियों, बल्कि प्रसिद्ध फिल्मी सितारों, नेताओं और खिलाड़ियों को भी प्रभावित किया है। हालांकि आज वे एक पूजनीय संत के रूप में जाने जाते हैं, लेकिन उनका जीवन कठिन संघर्षों और तपस्या से भरा रहा है। पिछले 20 सालों से वे किडनी की गंभीर बीमारी से भी जूझ रहे हैं।
बचपन और असली नाम
उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे प्रेमानंद जी महाराज का असली नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे है।
- पिता: श्री शम्भू पांडे
- माता: श्रीमती रमा देवी
उनके दादा, पिता और बड़े भाई सभी भगवान की भक्ति में लीन थे। घर के इस भक्ति वातावरण का प्रभाव बचपन में ही उनके मन पर पड़ा और पांचवीं कक्षा से ही उन्होंने भगवद गीता का अध्ययन शुरू कर दिया।
13 साल की उम्र में घर छोड़ने का निर्णय
केवल 13 वर्ष की उम्र में उन्होंने ब्रह्मचारी बनने का संकल्प लिया और घर छोड़कर संन्यासी जीवन अपना लिया। संन्यास ग्रहण करने के बाद उनका नाम आर्यन ब्रह्मचारी रखा गया। वे वाराणसी में बस गए, जहाँ उनकी दिनचर्या में प्रतिदिन तीन बार गंगा स्नान और तुलसी घाट पर भगवान शिव व माँ गंगा की पूजा शामिल थी।
कठिन तपस्या और भुखमरी के दिन
संन्यासी जीवन में वे दिन में केवल एक बार भोजन करते। भिक्षा मांगने के बजाय, 10-15 मिनट किसी स्थान पर बैठकर प्रतीक्षा करते — अगर भोजन मिल गया तो खा लेते, नहीं तो केवल गंगाजल पीकर दिन गुजारते। कई दिन उन्होंने पूरी तरह भूखे रहकर बिताए।
वृंदावन आने की प्रेरणा
वाराणसी में प्रवास के दौरान एक अजनबी संत ने उन्हें रासलीला कार्यक्रम देखने का निमंत्रण दिया। पहले तो वे नहीं जाना चाहते थे, लेकिन संत के आग्रह पर चले गए। पहली बार रासलीला देखकर वे अत्यंत मंत्रमुग्ध हो गए और और अधिक रासलीला देखने की इच्छा हुई।
संत ने उन्हें बताया कि वृंदावन में रासलीला का विशेष महत्व है। यही सुनकर प्रेमानंद जी ने वृंदावन जाने का निर्णय लिया और यहीं से उनके जीवन का नया अध्याय शुरू हुआ।