Indian warships engineer arrested by ATS: देश के भीतर ही दुश्मन’ ऐसा ही कुछ मामला महाराष्ट्र एटीएस के हाथ लगा है जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। एक साधारण दिखने वाला 27 वर्षीय युवक, जिसकी ड्यूटी देश के रक्षा संस्थानों की मरम्मत और तकनीकी सहायता थी, वही व्यक्ति अब देश की सबसे गोपनीय सैन्य जानकारी पाकिस्तान को बेचता पकड़ा गया है।
सवाल सिर्फ कानून का नहीं, भरोसे और राष्ट्रीय सुरक्षा का है। क्या भारत की सैन्य प्रणाली में दुश्मन इतनी आसानी से सेंध लगा सकता है? और यह भी कि कहीं ‘प्यार के नाम पर जासूसी’ एक सुनियोजित रणनीति तो नहीं बन चुकी है?’
नौसेना के जहाजों से लेकर पनडुब्बियों तक
रविंद्र मुरलीधर वर्मा, एक नाम जो अब भारत की रक्षा एजेंसियों के लिए खतरे का प्रतीक बन चुका है। यह कोई उच्च श्रेणी का जासूस नहीं था, न ही सेना का अधिकारी। वो एक “जूनियर डिफेंस कांट्रैक्टर” था, जो करासनी डिफेंस टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड के साथ कार्यरत था। इसी कंपनी को भारतीय नौसेना के जहाजों, पनडुब्बियों और तट रक्षक संस्थानों की मरम्मत और तकनीकी देखभाल की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इलेक्ट्रिकल डिपार्टमेंट में होने के कारण वर्मा को उन संवेदनशील क्षेत्रों तक पहुंच हासिल थी, जहां आम नागरिकों की एंट्री सख्ती से प्रतिबंधित होती है। लेकिन इसी पहुंच का दुरुपयोग कर उसने दुश्मन देश को भारत की युद्ध तैयारी और नौसेना की संरचना की बेहद गोपनीय जानकारियां पहुंचाईं।
एक ‘पायल शर्मा’ की फ्रेंड रिक्वेस्ट और देशद्रोह की शुरुआत
जांच में जो खुलासे हुए, वो और भी चौंकाने वाले हैं। रविंद्र मुरलीधर को 2024 में ‘पायल शर्मा’ और ‘इशप्रीत’ नाम की दो महिलाओं की फ्रेंड रिक्वेस्ट फेसबुक पर मिली। इन दोनों ने खुद को नौसेना से जुड़ी रिसर्चर बताया। कुछ ही हफ्तों में चैटिंग भावनात्मक संबंध में बदल गई। वर्मा को यह यकीन दिलाया गया कि वह देश की सेवा में ही मदद कर रहा है, या फिर प्रेम और भावनात्मक जुड़ाव में उसे मानसिक रूप से इस कदर जकड़ लिया गया कि उसे यह भी समझ नहीं आया कि वो देश के खिलाफ काम कर रहा है। लेकिन असली झटका तब लगा जब यह साबित हुआ कि ये दोनों महिलाएं असल में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI के एजेंट थे, जो फेक प्रोफाइल के ज़रिए भारतीय रक्षा ठिकानों की जासूसी के लिए डिजिटल हनीट्रैप चला रहे थे।
डायग्राम, स्केच और ऑडियो मैसेज
आप सोच सकते हैं कि नौसेना के भीतर मोबाइल ले जाना प्रतिबंधित है। लेकिन वर्मा ने तो नियमों को तोड़ने की हदें ही पार कर दीं। वह जहाजों को देखता, जानकारी याद करता, फिर बाहर आकर ऑडियो रिकॉर्ड करता या डायग्राम बनाकर भेजता। कई बार उसने नौसेना डायरी के पन्नों के फोटो भी पाकिस्तान भेजे। जांच में 11 मार्च 2025 की एक रिकॉर्डिंग सामने आई है, जिसमें वह कह रहा है “मैं आज सारे शिप देखकर आया हूं। सब कुछ डायरियों में लिखा है और आपको भेज दिया है।” उसने अगले ही दिन 14 युद्धपोतों की जानकारी वाली डायरी की फोटो भी भेजी। इन 14 में से 5 युद्धपोतों की जानकारी पूरी तरह गोपनीय मानी जा रही है। इसका मतलब है कि अगर यह जानकारी पाकिस्तान की सैन्य योजनाओं में चली गई, तो इसका इस्तेमाल भारत की नौसेना के खिलाफ हमले या रणनीतिक तैयारी में किया जा सकता था।
मां का दावा – बेटे को ब्लैकमेल किया गया
रविंद्र मुरलीधर की मां ने मीडिया से कहा कि उनका बेटा “एक महिला के जाल में फंस गया था और उसे ब्लैकमेल किया गया था।” लेकिन क्या देशद्रोह को माफ़ किया जा सकता है सिर्फ इसलिए कि उसने प्रेम या डर में आकर देश की सुरक्षा से खिलवाड़ किया? कई सुरक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि यह सिर्फ एक इमोशनल फॉल नहीं, बल्कि एक सोच-समझकर रची गई ISI की रणनीति थी, जो भारत के भीतर उन लोगों को टारगेट कर रही है जिनकी पहुंच संवेदनशील ठिकानों तक है लेकिन जिनके मन में राष्ट्रभक्ति और सतर्कता की उतनी परिपक्वता नहीं है।
क्या अकेला वर्मा है या एक पूरी रैकेट का हिस्सा?
एटीएस की जांच अब यहीं तक सीमित नहीं है। एजेंसियों को शक है कि रविंद्र मुरलीधर वर्मा सिर्फ एक मोहरा है और इसके पीछे एक पूरा नेटवर्क काम कर रहा है। क्या पाकिस्तान ने भारत में रक्षा क्षेत्र में सेंध लगाने के लिए डिजिटल हनी ट्रैप के ज़रिए स्लीपर सेल्स को एक्टिवेट कर दिया है? क्या अब भी देश की संवेदनशील सुरक्षा प्रणालियां निजी ठेकेदारों के भरोसे हैं, जिनका बैकग्राउंड जांच शायद पर्याप्त नहीं होती? क्या रक्षा मंत्रालय को अब हर कांट्रैक्टर और कर्मचारी की जांच और डिजिटल गतिविधियों पर नज़र नहीं रखनी चाहिए?
जब ‘विश्वास’ बना सबसे बड़ा खतरा
रविंद्र वर्मा का मामला दिखाता है कि अब जासूसी सिर्फ बॉर्डर पर नहीं, फेसबुक फ्रेंड लिस्ट से शुरू हो रही है। आधुनिक जासूसी अब बम या बंदूक से नहीं, चैट और ऑडियो मैसेज से हो रही है। और जब दुश्मन इतना शातिर हो कि देश के भीतर से ही लोगों को देशविरोधी बनाने लगे, तो खतरा कहीं ज्यादा गंभीर हो जाता है। सरकार और रक्षा मंत्रालय को इस मामले को ‘एक युवक की गलती’ मानकर छोड़ देना एक ऐतिहासिक भूल होगी। यह एक चेतावनी है – कि अगला हमला टैंक या मिसाइल से नहीं, एक फ्रेंड रिक्वेस्ट से भी हो सकता है। देश को अब साइबर और इमोशनल जासूसी के नए युग के लिए तैयार रहना होगा। क्योंकि दुश्मन अब कश्मीर से नहीं, किसी की इनबॉक्स से हमला कर रहा है।