
श्याम बेनेगल की निशांत में स्मिता पाटिल, नसीरुद्दीन शाह और शबाना आजमी
दिग्गज निर्देशक श्याम बेनेगल की फिल्म निशांत की रिलीज के पचास साल पूरे हो गए. इसकी कहानी आज भी उतनी ही प्रासंगिक है. दुनिया के कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में अवॉर्ड बटोरने वाली निशांत साल 1975 के अक्टूबर माह में रिलीज हुई थी. यह श्याम बेनेगल के करियर की शुरुआती दूसरी फिल्म थी. इससे एक साल पहले उन्होंने अंकुर बनाई थी. जिसमें शबाना आजमी और अनंत नाग ने रोल निभाया था. खास बात ये कि अंकुर और निशांत दोनों ही फिल्मों ने राष्ट्रीय पुरस्कार जीता था. इससे श्याम बेनेगल का फिल्म करियर आगे बढ़ा.
निशांत तब आई थी, जब देश में राष्ट्रीय आपातकाल चल रहा था. नागरिक अधिकार खत्म कर दिए गए थे. फिल्म की कहानी वैसे तो आजादी से पहले की है लेकिन यह सन् पचहत्तर के राजनीतिक-सामाजिक और मौजूदा हालात से जुदा नहीं. फिल्म के अंत में सत्ता के खिलाफ जनता का वैसा ही आक्रोश दिखता है, जैसा कि पचहत्तर के आंदोलनों में दिखा और जैसा कि हाल के समय में भी देखने को मिला है.
सत्ता के हाथ में पुलिस, कानून और प्रशासन
निशांत कई और मायने में एक माइलस्टोन फिल्म थी. बाद के दौर में समांतर सिनेमा के दिग्गज कहलाने वाले कई कलाकारों ने इस फिल्म में एकसाथ काम किया था. नसीरुद्दीन शाह और स्मिता पाटिल दोनों की यह पहली फिल्म थी. उनके करियर के लिए यह अहम फिल्म साबित हुई. उनके साथ इसमें अमरीश पुरी ने भी जागीरदार अन्ना का दमदार किरदार निभाया था. विलासितापूर्ण जीवन जीने वाले जागीरदार किरदार को अमरीश पुरी ने जीवंत बना दिया था. वहीं कुलभूषण खरबंदा पुलिस पटेल की भूमिका में थे तो सत्यदेव दुबे मंदिर के पुजारी बने थे.
श्याम बेनेगल प्रारंभ से ही पर्दे पर संपूर्ण परिवेश को जीवंत बना देने के लिए विख्यात फिल्मकार रहे हैं. उनकी बाद की फिल्में अधिक परिपक्व जरूर नजर आती हैं लेकिन अंकुर और निशांत ने जिस तरह से कला सिनेमा की दुनिया में दस्तक दे दी, श्याम बेनेगल इसके सबसे बड़े पैरोकार के रूप में उभरे. उन्होंने अपने फॉर्मेट से आगे कभी समझौता नहीं किया. जुबैदा और मुजीब तक उनकी खास शैली बनी रही.
निशांत की कहानी में सत्ता का दमन चक्र
निशांत की कहानी में दिखाया गया है जिसके पास सत्ता होती है, सारी व्यवस्थाएं आखिर कैसे उसके चंगुल में जकड़ी रहती हैं. फिल्म में गिरीश कर्नाड स्कूल के मास्टर बने हैं. सादगीपूर्ण ईमानदारी से जीवन जीने के लिए जागीरदार अन्ना के गांव में आते हैं. लेकिन जागीरदार के दो भाई (मोहन अगाशे और अनंत नाग) बेलगाम हैं. उसे मानो किसी भी तरह का अपराध करने की छूट है. एक दिन उनकी नापाक नजर मास्टर की पत्नी पर जाती है और वे उसका अपहरण करके ले आते हैं, कैद में रखते हैं और उसका शारीरिक शोषण करते हैं.
इसके बाद मास्टर का संघर्ष शुरू होता है. मासूम बेटे की जिम्मेदारी, स्कूल में अध्यापन करते हुए, पत्नी की तलाश में मास्टर बने गिरीश कर्नाड निचले स्तर से लेकर जिला अधिकारी तक जागीरदार के खिलाफ शिकायत करते हैं और मदद की गुहार लगाते हैं लेकिन सफलता नहीं मिलती. कहीं से भी उनको न्याय नहीं मिलता.
पहली बार शबाना आजमी और स्मिता पाटिल की टक्कर
मास्टर की पत्नी का किरदार शबाना आजमी ने निभाया है. उसे यहां जागीरदार के तीसरे भाई बने नसीरुद्दीन शाह की पत्नी स्मिता पाटिल का भी सामना होता है. फिल्म में अनेक बाद स्मिता और शबाना एक फ्रेम में दिखती हैं. फिल्म में नसीरुद्दीन शाह का किरदार वैसे तो थोड़ा संवेदनशील मिजाज का है लेकिन जनाक्रोश के प्रहार से वह भी नहीं बच पाता है. उधर कहीं से भी न्याय नहीं मिलने पर गिरीश कर्नाड उस मंदिर में जाते हैं, जहां का पुजारी भी गांव के जागीरदार के दमन के आगे खामोश रहने पर मजबूर हैं.
पुजारी को तकलीफ इस बात की है कि गांव में मंदिर को लेकर लोगों में आस्था तो है लेकिन जागीरदार के दोनों आवारा भाई इस पवित्र जगह से भी दुश्मन हैं. चोरी, पाप से मंदिर को दागदार होने में रोक नहीं पाते. क्रूर सत्ता के आगे घुटते रहते हैं.
मास्टर को मंदिर के पुजारी का पूरा सहयोग मिलता है. एक दिन एक विशेष अनुष्ठान के बहाने गांव के तमाम लोग जागीरदार की हवेली पर इकट्ठा हो जाते हैं और मौका पाकर धावा बोल देते हैं. जागीरदार मारा जाता है, उसके दोनों भाई मारे जाते हैं. हवेली पर गांव वालों का कब्जा हो जाता है. सन् 1975 में फिल्माए गए इस सीन को गौर से देखिए तो हाल के समय में नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका आदि मुल्कों में सत्ता के खिलाफ उमड़े जनाक्रोश से जरा भी अलग प्रतीत नहीं होंगे. जबकि इस फिल्म की कहानी सन् 1940 से लेकर 1950 के बीच की है.
फिल्म के कथानक का आधार ग्रामीण तेलंगाना का है. पचास के दशक में यहां जमींदारों द्वारा होने वाले महिलाओं के यौन शोषण का विषय बनाया गया है. फिल्म में दिखाया गया है कि जैसे जमींदार गांव में आतंक मचाते हैं, लोगों की जमीनों पर कब्जा करते हैं, उनके घर की युवतियों, महिलाओं को जबरन उठाकर ले जाते हैं, बाहरी लोगों को लूटा जाता है, कानून और शासन के तंत्र को भी अपनी जेब में रखता है. यहां तक कि पुलिस के पास कोई शक्ति नहीं होती. जमींदार के जु्ल्म के आगे खेतिहर मजदूर शोषण-दमन सहने को लाचार हैं.
श्याम बेनेगल को मिली अंतरराष्ट्रीय ख्याति
निशांत फिल्म में काम करने वाले कभी कलाकारों को इससे आगे अपना-अपना करियर का बनाने का मार्ग प्रशस्त हुआ. अमरीश पुरी बाद में तमाम कमर्शियल फिल्मों में प्रख्यात विलेन कहलाए. उनकी दमदार आवाज और अभिनय को हिंदी सिनेमा की एक उपलब्धि के तौर पर गिना जाता है. नसीरुद्दीन शाह, स्मिता पाटिल, शबाना आजमी, मोहन अगाशे, सत्यदेव दुबे, गिरीश कर्नाड आदि कलाकारों ने ऊंचाइयां हासिल की. श्याम बेनेगल की फिल्म इनके लिए अहम प्लेटफॉर्म साबित हुई.
इस फिल्म की कहानी प्रसिद्ध लेखक विजय तेंदुलकर ने लिखी थी. सत्यदेव दुबे ने पुजारी का रोल निभाने के साथ-साथ इसमें संवाद भी लिखे. निशांत फिल्म से श्याम बेनेगल को अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली. निशांत को हिंदी की सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला साथ ही कान, लंदन, मेलबर्न, शिकागो आदि अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में भी सम्मानित किया गया. निशांत की सफलता और प्रशंसा ने कला सिनेमा को आगे बढ़ाया, समांतर आंदोलन को बल मिला. कई और कलाकार और निर्देशक सामाजिक विषयों पर फिल्में बनाने के लिए आगे आएं.
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