लापरवाही या कामचोरी! UP की स्कूलों से ‘डिजिटली लापता’ हुए 10,569 बच्चे, RTE का सपना कैसे होगा पूरा?

लापरवाही या कामचोरी! UP की स्कूलों से 'डिजिटली लापता' हुए 10,569 बच्चे, RTE का सपना कैसे होगा पूरा?

उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग में एक गंभीर लापरवाही सामने आई है

उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग में एक गंभीर लापरवाही सामने आई है, जहां लखनऊ के 1,618 प्राइमरी स्कूलों में नामांकित करीब 1.75 लाख बच्चों में से 10,569 बच्चे यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (UDISE+) पोर्टल के ‘ड्रॉप बॉक्स’ में अटके हुए हैं. ये बच्चे बीच सत्र में पढ़ाई छोड़ चुके हैं या पास होकर अगली कक्षा में शिफ्ट हो गए हैं, लेकिन नए स्कूलों ने उनका डेटा पोर्टल पर डाला नहीं गया है. नतीजतन, ये ‘डिजिटल रूप से लापता’ हो गए हैं. विभागीय अधिकारी अब इन बच्चों को खोजने के लिए शिक्षकों पर भारी दबाव डाल रहे हैं, यहां तक कि वेतन रोकने की चेतावनी तक दे रहे हैं.

UDISE+ पोर्टल शिक्षा मंत्रालय का एक डिजिटल प्लेटफॉर्म है, जो छात्रों का नामांकन, ट्रांसफर, ड्रॉपआउट और प्रोग्रेशन ट्रैक करता है. हर बच्चे का डिजिटल डेटा, जैसे पिन नंबर, आधार, जन्मतिथि इसमें दर्ज होता है. जब कोई बच्चा नया स्कूल जॉइन करता है, तो नए स्कूल को ‘ड्रॉप बॉक्स’ से उनका विवरण आयात करना होता है, जिससे डेटा स्वचालित रूप से अपडेट हो जाता है. लेकिन 27 सितंबर को बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA) कार्यालय ने चिन्हित किया कि नगर और ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में 10,569 बच्चों का डेटा अभी भी ड्रॉप बॉक्स में पड़ा है. सबसे अधिक प्रभावित चिनहट ब्लॉक है, जहां 1,691 बच्चे अटके हैं.

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ये आंकड़े न केवल विभाग की डिजिटल साक्षरता की कमी उजागर करते हैं, बल्कि बच्चों की शिक्षा की निरंतरता पर भी सवाल खड़े करते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे डेटा गैप से सरकारी योजनाओं जैसे मिड-डे मील, छात्रवृत्ति या RTE (राइट टू एजुकेशन) जैसी योजनाएं प्रभावित होती हैं.

क्यों हो रहे हैं बच्चे ‘लापता’?

  1. पारिवारिक परिस्थितियां: करीब 15 प्रतिशत बच्चों ने आर्थिक तंगी या घरेलू जिम्मेदारियों के कारण पढ़ाई छोड़ दी.
  2. माइग्रेशन: कुछ बच्चे परिवार के साथ दूसरे जिले या प्रदेश चले गए, लेकिन उनका ट्रांसफर रिकॉर्ड अपडेट नहीं हुआ
  3. स्कूलों की लापरवाही: हाल ही में खुले स्कूलों ने UDISE+ पर बच्चों का डेटा आयात नहीं किया.
  4. निजी स्कूलों का रवैया: कई निजी संस्थान पिछली कक्षा के दाखिले की वजह से इन बच्चों को पोर्टल पर रजिस्टर नहीं कर रहे.
  5. आधार की कमी: कुछ बच्चों का आधार कार्ड नहीं बना, जिससे उनको ट्रैक करना मुश्किल हो रहा है.

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बीईओ और शिक्षक करेंगे बच्चों की तलाश

शासन के हालिया निर्देश देते हुए कहा है कि स्कूल जल्द से जल्द ड्रॉप बॉक्स को खाली कर दें. शासन के इस आदेश से अधिकारी हरकत में आ गए हैं. बीईओ (ब्लॉक एजुकेशन ऑफिसर) और शिक्षकों को बच्चों की तलाश का जिम्मा सौंपा गया है. प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षित स्नातक एसो. शिक्षक संघ के प्रांतीय अध्यक्ष विनय कुमार सिंह ने नाराजगी जताते हुए कहा कि ये बच्चे पास होकर टीसी (ट्रांसफर सर्टिफिकेट) ले चुके हैं और कई ने कक्षा 9वीं में प्रवेश ले लिया या पढ़ाई छोड़ दी. इनकी खोज की जिम्मेदारी विभाग की है, न कि शिक्षकों की. दबाव बनाने और वेतन रोकने की धमकी अनुचित है.

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बच्चों का डेटा जल्द हो जाएगा अपडेट : बीएसए

BSA लखनऊ राम प्रवेश ने बताया, ड्रॉप बॉक्स वाले बच्चों की जानकारी जुटाई जा रही है. इसके लिए बीईओ और शिक्षकों की टीमें लगाई गई हैं. जल्द ही सभी डेटा अपडेट कर लिया जाएगा. हालांकि, उन्होंने दबाव या चेतावनी की बात से इनकार किया. यह मुद्दा उत्तर प्रदेश में प्राइमरी शिक्षा की डिजिटलीकरण और चुनौतियों को उजागर करता है. विशेषज्ञ सुझाव दे रहे हैं कि विभाग को शिक्षकों के लिए बेहतर ट्रेनिंग और ऑनलाइन टूल्स की सुविधा उपलब्ध करानी चाहिए. अन्यथा, देशभर में चलाया जा रहा शिक्षा का अधिकार अभियान कमजोर पड़ जाएगा.

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