Navratri 2025: नौ देवी, नौ रहस्य… ब्रह्मा जी द्वारा बताए गए मां दुर्गा के गुप्त स्वरूप

Navratri 2025: नौ देवी, नौ रहस्य... ब्रह्मा जी द्वारा बताए गए मां दुर्गा के गुप्त स्वरूप

नवरात्रि के 9 देवी रूपImage Credit source: unsplash

नवरात्रि का पर्व शक्ति की उपासना और देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना का पावन समय है. साल में दो बार आने वाला यह महापर्व केवल पूजा-पाठ का ही नहीं, बल्कि साधना, आत्मशुद्धि और नए आरंभ का भी प्रतीक है. चैत्र और आश्विन नवरात्रि, दोनों ही ऋतु परिवर्तन और संधिकाल के समय पड़ते हैं, जिसे शास्त्रों में विशेष महत्व दिया गया है. भगवती दुर्गा को आदि शक्ति, जगन्माता और सर्वसिद्धिदात्री माना गया है. उन्होंने समय-समय पर विभिन्न रूपों में अवतार लेकर अधर्म का नाश और धर्म की रक्षा की. ब्रह्मा जी ने देवी दुर्गा के नौ गुप्त स्वरूपों का वर्णन किया है, जिन्हें नवदुर्गा कहा जाता है. इनकी उपासना से भक्त को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं

नवरात्रि और नए साल का संबंध

चैत्र नवरात्रि की शुरुआत के साथ ही हिंदू नव वर्ष, विक्रम संवत का आरंभ होता है. यह दिन न केवल एक नया साल लाता है, बल्कि राजा विक्रमादित्य जैसे आदर्श शासक के राज्याभिषेक का भी प्रतीक है, जिनकी महानता को सिंहासन बत्तीसी जैसी कहानियों में दिखाया गया है. इसी तरह, चैत्र नवरात्रि का समापन रामनवमी के रूप में होता है, जो भगवान राम के जन्मोत्सव का प्रतीक है. दूसरी नवरात्रि, आश्विन शुक्ल पक्ष में आती है, जिसके बाद विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, नक्षत्रों की गणना आश्विन नक्षत्र से ही शुरू होती है, इसलिए इसे ज्योतिषीय वर्ष का पहला महीना भी माना जाता है. इस तरह, दोनों नवरात्रि पर्वों का संबंध नए आरंभ और सकारात्मक ऊर्जा से है. इन दोनों के बीच छह महीने का अंतर होता है, जो वर्ष को दो भागों में बांटता है.

ऋतु संधिकाल और साधना का महत्व

नवरात्रि का समय ऋतु संधिकाल होता है, यानी जब एक मौसम खत्म होकर दूसरा शुरू होता है. यह समय उपासना और साधना के लिए बहुत खास माना जाता है. जैसे सुबह और शाम का समय पूजा-पाठ के लिए शुभ होता है, उसी तरह इन नौ दिनों को विशेष साधना के लिए चुना गया है. यह वह समय होता है जब आप व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से शक्ति की उपासना कर सकते हैं. नवरात्रि पर्व के साथ ही दुर्गा के अवतरण की कथा भी जुड़ी है. ऐसा माना जाता है कि वर्तमान युग संधिकाल, यानी एक युग के अंत और दूसरे के आरंभ का समय है, जहां समस्याओं को दूर करने के लिए सामूहिक शक्ति की आवश्यकता है.

मां दुर्गा: आदि शक्ति के अनेक रूप

देवी दुर्गा को आदि शक्ति और जगन्माता के रूप में पूजा जाता है. वह शक्ति संप्रदाय की प्रमुख देवी हैं, लेकिन वैष्णव और शैव संप्रदाय के लोग भी उनकी पूजा करते हैं. देवी लक्ष्मी, तारा, सरस्वती, उमा, गौरी, चंडिका, काली, और चामुंडा जैसे सभी अवतार इन्हीं आदि शक्ति के रूप हैं. दुर्गा सप्तशती के कवच में मां दुर्गा के जिन नौ रूपों का वर्णन किया गया है, उनके बारे में स्वयं ब्रह्मा जी ने बताया है. आइए इन नौ देवियों और उनसे जुड़े रहस्यों को जानते हैं.

शैलपुत्री: हिमालय की पुत्री.शैलराज हिमालय ने तपस्या करके उन्हें अपनी बेटी के रूप में पाने की प्रार्थना की. जब भगवती ने पुत्री के रूप में जन्म लिया, तो हिमालय और उनकी पत्नी दोनों बहुत प्रसन्न हुए, इसीलिए उन्हें शैलपुत्री कहा गया.

ब्रह्मचारिणी: ब्रह्मा का अर्थ तपस्या है और चारिणी का अर्थ आचरण करने वाली.यह देवी सच्चिदानंद (सत्य, चेतना, आनंद) की प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या करती हैं, इसलिए इन्हें ब्रह्मचारिणी कहा जाता है.

चंद्रघंटा: इनके माथे पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, जो निर्मलता और शांति का प्रतीक है. उनकी यह मुद्रा भक्तों के जीवन से भय को दूर करती है.

कूष्मांडा: कुत्सित (बुरी) बातों को दूर करने वाली.यह देवी अपने भक्तों के दुखों और कष्टों को दूर करती हैं.

स्कंदमाता: स्कंद यानी भगवान कार्तिकेय की माता.जब भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ, तो यह देवी उनके पालन-पोषण के लिए नियुक्त हुईं, इसीलिए इन्हें स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है.

कात्यायनी: महर्षि कात्यायन की पुत्री. ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया, जिससे वह कात्यायनी कहलाईं.

कालरात्रि: काल का अर्थ है मृत्यु और रात्रि का अर्थ है अंधकार.यह देवी सभी बुराइयों, नकारात्मक ऊर्जा, और मृत्यु के भय को खत्म करती हैं, इसीलिए इन्हें कालरात्रि कहा जाता है.

महागौरी: जब भगवान शिव ने मजाक में उन्हें “काली” कहकर पुकारा, तो उनका रंग काला हो गया. इसके बाद उन्होंने कठोर तपस्या की और फिर से गौर वर्ण प्राप्त किया, जिससे वह महागौरी कहलाईं.

सिद्धिदात्री: यह देवी सभी प्रकार की सिद्धियों (अलौकिक शक्तियां) को प्रदान करती हैं. इनकी पूजा से सभी कार्य सिद्ध होते हैं और व्यक्ति को हर क्षेत्र में सफलता मिलती है.

ये नौ रूप जीवन के हर पहलू को दर्शाते हैं और हमें सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं. नवरात्रि का पर्व इन्हीं नौ शक्तियों की आराधना का अवसर है, जो हमें भीतर की शक्ति को पहचानने और बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है.

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