
प्रयागराज. जुनून सच्चा हो तो मंजिल खुद रास्ता बना लेती है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एलुमनी शैलेंद्र सिंह गौर ने इसे साबित कर दिया है। शैलेंद्र सिंह गौर ने ऑटोमोबाइल की दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव का बीड़ा उठाया है। करीब दो दशक की कठिन तपस्या के बाद शैलेन्द्र ने सिक्स स्ट्रोक इंजन बना लिया है, जो मौजूदा तकनीक को पीछे छोड़ते हुए एक लीटर तेल पेट्रोल में 176 किमी का जबर्दस्त माइलेज देता है। भारत सरकार से उनकी इस तकनीक को दो पेटेंट मिल चुके हैं।
कानपुर नगर के मूल निवासी शैलेंद्र झूंसी में रहते हैं। उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से 1983 में बीएससी (पीसीएम) की डिग्री हासिल की। 2007 में गौर की नौकरी टाटा मोटर्स में लगी, लेकिन काम नहीं किया। उन्होंने एमएनएनआईटी के मैकेनिकल विभाग की प्रयोगशाला में छह महीने तक प्रो. अनुज जैन के साथ काम सीखा। इसके बाद आईआईटी-बीएचयू की प्रयोगशाला में भी काम सीखा।
शैलेंद्र ने अपने किराए के घर को ही प्रयोगशाला में तब्दील कर दिया। खेत, मकान और दुकान बेचकर उन्होंने रिसर्च के सपने को जिंदा रखा। गौर का दावा है कि सिक्स-स्ट्रोक इंजन मॉडल पारंपरिक इंजनों की तुलना में तीन गुना ज्यादा दक्ष है और करीब 70 प्रतिशत ऊर्जा का उपयोग करने में सक्षम है। उन्होंने दावा किया कि वह अपनी अनूठी बाइक का प्रदर्शन एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में कर चुके हैं, जिसमें एक लीटर में 120 किमी बाइक चलाकर दिखाई गई थी।
उन्होंने कहा कि यह सिक्स-स्ट्रोक इंजन किसी भी ईंधन वाले वाहन में फिट किया जा सकता है। चाहे वह बाइक हो, कार हो, बस हो, ट्रक हो या फिर पानी का जहाज। सिक्स स्ट्रोक इंजन सिर्फ माइलेज ही नहीं बढ़ाता है बल्कि प्रदूषण कम करने में भी सक्षम है।
सिक्स स्ट्रोक इंजन का परीक्षण और परिणाम
शैलेन्द्र सिंह गौर ने 100 सीसी की टीवीएस बाइक (2017 मॉडल) पर इस तकनीक का परीक्षण किया। परिणाम चौंकाने वाले रहे। बाइक 50 मिली पेट्रोल में 35 मिनट तक लगातार चालू रही और 176 किमी प्रति लीटर का माइलेज दिया। यही बाइक पहले 12.40 मिनट ही (चालू लेकिन खड़ी) चलती थी। नया इंजन पारंपरिक तकनीक की तुलना में कई गुना अधिक सक्षम है।
भारत सरकार से तकनीक को मिले दो पेटेंट
शैलेंद्र सिंह गौर को सिक्स स्ट्रोक इंजन तकनीक के लिए दो पेटेंट मिल चुके हैं, जबकि कुछ और प्रक्रियाधीन हैं। दावा है कि यह इंजन टिकाऊ, पर्यावरण के अनुकूल और कम प्रदूषणकारी है। कार्बन मोनोऑक्साइड और अन्य हानिकारक गैसें लगभग नगण्य मात्रा में निकलती हैं। गौर को जरूरत है कि सरकार, निवेशक या ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री घराने आगे आएं, ताकि इस तकनीक को प्रोडक्शन लेवल तक पहुंचाया जा सके और इसका लाभ आम जनता तक पहुंचे।