Maa Durga Visarjan 2025: डोली पर सवार होकर विदा होंगी मां दुर्गा, जानिए विजयादशमी पर मूर्ति विसर्जन का खास महत्व

Maa Durga Visarjan 2025: डोली पर सवार होकर विदा होंगी मां दुर्गा, जानिए विजयादशमी पर मूर्ति विसर्जन का खास महत्व

NavratriImage Credit source: AI

Maa Durga Visarjan Puja Vidhi: नौ दिनों तक शक्ति और भक्ति की अलौकिक यात्रा पूरी करने के बाद, अब समय है मां दुर्गा को विदा करने का. यह विदाई समारोह विजयादशमी यानी 2 अक्टूबर 2025 को होगा. जिस तरह मां के नौ रूपों की आराधना के विशेष विधान हैं, उसी तरह उन्हें भावभीनी विदाई देने के भी खास नियम और महत्व हैं. इस साल, विजयादशमी गुरुवार को पड़ रही है, इसलिए धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां दुर्गा का प्रस्थान डोली या पालकी पर होगा. मां का डोली पर प्रस्थान सुख और शांति का प्रतीक माना जाता है. आइए जानते हैं इस दिन के खास महत्व और मूर्ति विसर्जन के विधि-विधान के बारे में, जिससे आपकी पूजा का फल पूर्ण हो सके.

दुर्गा विसर्जन (शुभ मुहूर्त)

पंचांग के अनुसार, विसर्जन के लिए सबसे उत्तम समय 2 अक्टूबर 2025 को सुबह 6:32 बजे से 8:54 बजे तक और फिर अपराह्न पूजा का समय दोपहर 1:21 बजे से 3:44 बजे तक रहेगा.

मां दुर्गा की डोली पर विदाई का महत्व

विजयादशमी के दिन के वार के अनुसार, माता के आगमन और प्रस्थान का वाहन तय होता है. इस साल, विजयादशमी गुरुवार को है, इसलिए मां दुर्गा डोली (नर वाहन) पर प्रस्थान करेंगी.

धार्मिक मान्यता: हर वाहन का अपना विशेष फल होता है. मां दुर्गा का डोली पर प्रस्थान सुख-शांति और सौहार्द का सूचक माना जाता है. यह विदाई संकेत देती है कि मां अपने भक्तों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देकर अगले वर्ष पुनः आगमन का वादा करती हैं.

सिंदूर खेला: विसर्जन से ठीक पहले बंगाल और पूर्वी भारत में सिंदूर खेला की रस्म निभाई जाती है. इसमें सुहागिन महिलाएं मां दुर्गा के चरणों में सिंदूर चढ़ाती हैं और फिर एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं. यह परंपरा वैवाहिक सुख, सौभाग्य और नारी शक्ति का प्रतीक है.

मूर्ति और कलश विसर्जन का विधि-विधान

अंतिम पूजन और विसर्जन से पहले मां दुर्गा की प्रतिमा का षोडशोपचार पूजन करें. मां को रोली, अक्षत, फूल, मिठाई, वस्त्र आदि अर्पित करें और श्रद्धापूर्वक आरती करें. मां को सिंदूर अर्पित करें और परिवार के सदस्यों को भी सिंदूर लगाएं.मां से प्रार्थना करें: नमस्तेऽस्तु महादेवि महा मायि सुरेश्वरि. पूजाराधनकाले च पुनरागमनाय च. अर्थात: हे महादेवी, हे महामाया, हे सुरेश्वरी! आपको नमस्कार है. हम पूजा और आराधना के लिए आपके दोबारा आने की प्रार्थना करते हैं.

विसर्जन यात्रा

ढोल-नगाड़ों और जयकारों के साथ माता रानी का जयघोष करते हुए मूर्ति को उठाएं. प्रतिमा को सम्मानपूर्वक किसी पवित्र नदी, तालाब या कृत्रिम विसर्जन कुंड तक ले जाएं.प्रतिमा को जल में धीरे-धीरे प्रवाहित करें. पूजा के दौरान देवी को अर्पित की गई सभी सामग्री को भी प्रतिमा के साथ ही विसर्जित करें. कलश पर रखे नारियल को निकालकर परिवार की विवाहित महिला को दें या प्रसाद के रूप में बांट दें. कलश के जल को आम के पत्तों से पूरे घर में छिड़कें.

यह जल नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर शुभता लाता है. बचा हुआ जल पीपल या किसी पवित्र पौधे की जड़ में डाल दें. कलश में रखा सिक्का निकालकर लाल कपड़े में बांधकर तिजोरी या धन के स्थान पर रखें. यदि नदी या तालाब पास में न हो तो घर में एक बड़े पात्र में प्रतिमा को विसर्जित करके, उस मिट्टी और जल को बाद में पीपल या किसी पवित्र वृक्ष की जड़ में डाल देना चाहिए.

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और सामान्य जानकारियों पर आधारित है. टीवी9 भारतवर्ष इसकी पुष्टि नहीं करता है.

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