High Court –हाईकोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप को मान्यता देते हुए एक महत्वपूर्ण फैसला लिया है। कोर्ट ने बालिग जोड़ों को बिना किसी रोक टोक के साथ रहने की अनुमति दी है, चाहे वे अलग जाति या धर्म के हों। कोर्ट के फैसले पर अधिक जानकारी के लिए इस खबर को पूरा पढ़ें-

High Court – इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है जो लिव इन रिलेशनशिप को मान्यता देता है। कोर्ट ने कहा कि किशोरों को उनके माता-पिता या अन्य किसी भी व्यक्ति को उनके खुशहाल जीवन में बाधा डालने का अधिकार नहीं है। यह निर्णय व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बचाता है और लिव इन रिलेशनशिप को सामाजिक मान्यता मिलती है। युवा जोड़ों को इससे स्वतंत्रता मिलेगी।
हाईकोर्ट ने कहा कि बालिग जोड़े जो अलग जाति या धर्म के हैं, बिना किसी रोक के टोक के साथ रह सकते हैं। लिव इन रिलेशनशिप में रहने वालों को कुछ अधिकार भी दिए गए हैं। High Court ने कहा कि बालिग जोड़े को लिव इन रिलेशनशिप में रहते समय धमकी या परेशान करने पर पुलिस कमिश्नर या अन्य अधिकारी संरक्षण देंगे।
प्रेमी जोड़ों को अधिकार प्राप्त हुआ—
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि युवा जोड़ों को अपनी पसंद से शादी करने और साथ रहने का पूरा अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि किसी को इन अधिकारों में बाधा डालने का अधिकार नहीं है। अनुच्छेद 19 और 21 का उल्लंघन होगा अगर कोई बाहरी व्यक्ति बालिग जोड़ों (वयस्क जोड़ों) के रिलेशनशिप को तोड़ने की कोशिश करता है या उन्हें परेशान करता है। इस अधिकार को बचाने का आदेश कोर्ट ने दिया।
जस्टिस सुरेंद्र सिंह की एकमात्र बेंच ने निर्णय दिया-
हाईकोर्ट के जस्टिस सुरेंद्र सिंह की एकमात्र बेंच ने गौतमबुद्धनगर की रजिया और अन्य की याचिका को खारिज कर दिया है। याची रजिया ने बताया कि वे दोनों बालिग हैं और अपनी मर्जी से लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं और शादी करना चाहते हैं। इसलिए वह अपने परिवार को नाखुश होने पर उन्हें लगातार धमकाता है। इसके अलावा, रजिया ने आनर किलिंग की संभावना भी व्यक्त की थी।
याची ने कार्रवाई नहीं होने पर हाईकोर्ट की शरण ली-
एक महिला ने पुलिस कमिश्नर को शिकायत दी कि उनके पति ने उनको जान से मारने की धमकी दी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई तो उन्होंने हाईकोर्ट में शिकायत दर्ज की। इस मामले में अपर शासकीय अधिवक्ता ने कहा कि दोनों अलग धर्म के हैं और मुस्लिम कानून के अनुसार लिव इन रिलेशनशिप में रहना दंडनीय है।
हाईकोर्ट ने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि किसी भी बालिग जोड़े को अपनी मर्जी से साथ रहने का अधिकार है।