सूतक और पातक: जानिए क्या है अंतर, कब तक रहता है इनका समय?

सूतक और पातक: जानिए क्या है अंतर, कब तक रहता है इनका समय?

क्या होता है सूतक और पातक?

हिंदू धर्म में हर शुभ और अशुभ कार्य के लिए नियम तय किए गए हैं. इन्हीं नियमों में सूतक और पातक की अवधारणा आती है. यह दोनों ही जीवन और मृत्यु से जुड़ी घटनाओं से संबंध रखते हैं और इनका प्रभाव सीधे घर-परिवार के धार्मिक कार्यों और शुद्धता पर पड़ता है. शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि जब तक सूतक या पातक चलता है तब तक पूजा-पाठ, यज्ञ, हवन, शादी या अन्य मंगल कार्य वर्जित माने जाते हैं. लेकिन दोनों में अंतर है और उनकी अवधि भी अलग-अलग बताई गई है.

क्या होता है सूतक?

सूतक को जन्म दोष भी कहा जाता है. जब किसी घर में शिशु का जन्म होता है तो पूरे परिवार पर सूतक लगता है. इसका कारण यह है कि जन्म के समय मां और शिशु दोनों ही अशुद्ध माने जाते हैं. वहीं ग्रहण से पहले के काल को भी सूतक काल कहा जाता है.

कितने दिन का होता है?

मनुस्मृति और धर्मशास्त्रों के अनुसार, ब्राह्मणों में 10 दिन, क्षत्रियों में 12 दिन, वैश्य में 15 दिन और शूद्रों में 30 दिन तक सूतक माना जाता है. आधुनिक समय में सामान्यत 11 दिन तक सूतक रखा जाता है. इस अवधि में परिवार के सदस्य मंदिर नहीं जाते, पूजा-पाठ और मांगलिक कार्यों से दूर रहते हैं.

क्या होता है पातक?

पातक को मृत्यु दोष कहा जाता है. जब किसी परिवार या गोत्र में किसी की मृत्यु होती है तो पातक लगता है. मृत्यु के बाद पूरा वातावरण शोकमय और अशुद्ध माना जाता है, इसलिए इस अवधि में धार्मिक और सामाजिक शुभ कार्य पूरी तरह निषिद्ध रहते हैं.

कितने दिन का होता है?

शास्त्रों के अनुसार, मृत्यु के बाद 10 दिन तक पातक चलता है. इस दौरान घर के लोग पूजा नहीं करते, किसी भी प्रकार का मंगल कार्य पूरी तरह वर्जित होता है. ग्यारहवें दिन शुद्धि संस्कार और स्नान करने के बाद पातक समाप्त होता है।

सूतक और पातक में मुख्य अंतर

सूतक जन्म पर लगता है, जबकि पातक मृत्यु पर. सूतक की अवधि जाति और परंपरा के अनुसार बदल सकती है, लेकिन पातक प्राय: 10 दिन का होता है. सूतक में नवजीवन की शुद्धि होती है, जबकि पातक में मृत्यु से उपजी अशुद्धि.

क्यों मानते हैं सूतक और पातक?

शास्त्रों का मत है कि जन्म और मृत्यु दोनों ही स्थितियों में वातावरण में विशेष प्रकार के जीवाणु और अशुद्धियां फैलती हैं इसीलिए परिवार को कुछ दिनों तक धार्मिक कार्यों से दूर रखकर शुद्धिकरण की प्रक्रिया अपनाई जाती है. यही कारण है कि हिंदू धर्म में विवाह, गृह प्रवेश, हवन या कोई भी शुभ कार्य सूतक और पातक की अवधि में नहीं किए जाते. इन्हें केवल अशुद्धि नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के गहरे रहस्यों को समझने का माध्यम भी माना गया है.

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है. टीवी9 भारतवर्ष इसकी पुष्टि नहीं करता है.