
माँ दंतेश्वरी हर्बल ग्रुप के मालिक राजाराम त्रिपाठी
कल्पना कीजिए, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) में एक मैनेजर की आरामदायक नौकरी, पक्की तनख्वाह, पेंशन का सहारा और समाज में ऊxचा रुतबा. क्या कोई व्यक्ति यह सब कुछ छोड़कर बंजर जमीन पर खेती करने का जोखिम उठा सकता है? साल 1996 में जब राजाराम त्रिपाठी ने ठीक यही किया, तो उनके जानने वालों और रिश्तेदारों ने उन्हें ‘पढ़ा-लिखा पागल’ करार दे दिया. लोगों के लिए यह यकीन करना मुश्किल था कि कोई इतनी सुरक्षित जिंदगी छोड़कर उस रास्ते पर जा रहा है, जहां सिर्फ अनिश्चितता है.
लेकिन आज, लगभग तीन दशक बाद, वही राजाराम त्रिपाठी पूरे देश में ‘हेलीकॉप्टर वाले किसान’ के नाम से जाने जाते हैं. वे 7 करोड़ रुपये के एक शानदार हेलीकॉप्टर के मालिक हैं और इसका इस्तेमाल वे किसी रईसी शौक के लिए नहीं, बल्कि अपनी 1000 एकड़ की विशाल खेती की निगरानी और उसमें दवा छिड़काव के लिए करते हैं.
बैंक के केबिन से 1000 एकड़ के साम्राज्य तक
राजाराम त्रिपाठी का सफर किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं है. जब उन्होंने एसबीआई की नौकरी छोड़ी, तब उनके पास विरासत में मिली सिर्फ 5 एकड़ जमीन थी. शुरुआत बेहद मामूली रही. उन्होंने टमाटर की खेती से अपना हाथ आजमाया, लेकिन जल्द ही उन्हें इस बात का एहसास हो गया कि पारंपरिक फसलों की खेती से मुनाफा कमाना और बड़ा साम्राज्य खड़ा करना मुमकिन नहीं है. यहीं पर उनके भीतर के मैनेजर और इनोवेटर ने काम किया. उन्होंने बाजार का अध्ययन किया और अपना रुख औषधीय खेती (Herbal Farming) की ओर मोड़ा. उन्होंने उस फसल को चुना, जिसे बाजार में ‘सफेद सोना’ कहा जाता है – यानी सफेद मूसली.
यह फैसला एक मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ. सफेद मूसली के साथ-साथ उन्होंने अश्वगंधा, काली मिर्च और दर्जनों अन्य हर्बल पौधों की वैज्ञानिक तरीके से खेती शुरू की. आज उनकी कंपनी ‘मां दंतेश्वरी हर्बल ग्रुप’ 25 करोड़ रुपये के सालाना टर्नओवर वाला एक विशाल कृषि साम्राज्य बन चुकी है. उनका उगाया ‘सफेद सोना’ और अन्य जड़ी-बूटियां भारत तक सीमित नहीं हैं. वे अमेरिका, जर्मनी, इंग्लैंड और फ्रांस समेत 10 से ज्यादा पश्चिमी देशों में निर्यात होती हैं.
क्यों पड़ी 7 करोड़ के ‘हेलीकॉप्टर’ की जरूरत?
जब कारोबार 1000 एकड़ तक फैल गया, तब राजाराम के सामने एक नई चुनौती आई. इतने बड़े रकबे में फसल की निगरानी करना, किस हिस्से में कीट लगे हैं यह पता लगाना और समय पर दवा का छिड़काव करना पारंपरिक तरीकों से लगभग असंभव था. राजाराम बताते हैं कि उन्होंने विदेशों में किसानों को हेलीकॉप्टर से ये काम करते देखा था. उन्होंने सोचा कि अगर वे कर सकते हैं, तो हम भारतीय किसान क्यों पीछे रहें? इसी सोच के साथ उन्होंने करीब 7 करोड़ रुपये की लागत से एक रॉबिन्सन R-44, 4-सीटर हेलीकॉप्टर खरीद लिया.
यह कोई शौकिया खरीद नहीं थी, बल्कि खेती को आधुनिक बनाने की एक सोची-समझी रणनीति थी. इस हेलीकॉप्टर को पेशेवर तरीके से उड़ाया जा सके, इसके लिए राजाराम, उनके बेटे और उनके भाई, तीनों उज्जैन की एक एविएशन अकादमी से पायलट बनने की बाकायदा ट्रेनिंग ले रहे हैं. यह हेलीकॉप्टर मिनटों में कई एकड़ फसल पर दवा का छिड़काव कर देता है, जिससे समय, मेहनत और लागत तीनों की भारी बचत होती है.
विकास का मतलब सबका साथ
राजाराम त्रिपाठी की सफलता सिर्फ उनके 25 करोड़ के टर्नओवर या 9 शानदार फार्महाउस तक सीमित नहीं है. उनकी सोच सिर्फ मुनाफा कमाने से कहीं आगे है. उन्होंने अपनी इस यात्रा में 400 से ज्यादा आदिवासी परिवारों को न सिर्फ रोजगार दिया, बल्कि उन्हें आधुनिक खेती की ट्रेनिंग देकर आत्मनिर्भर भी बनाया है. वे अपनी सफलता का लाभ अपने तक ही सीमित नहीं रखते. राजाराम कहते हैं, “असली विकास तभी है, जब सबका फायदा हो.” वे अपने 7 करोड़ी हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल सिर्फ अपने खेतों के लिए नहीं करते, बल्कि आस-पास के अन्य किसानों के खेतों में भी दवा छिड़काव के लिए उसकी मदद देते हैं, ताकि पूरी कम्युनिटी एक साथ आगे बढ़ सके. बताते चलें कि खेती में इस क्रांति के लिए राजाराम त्रिपाठी को तीन बार राष्ट्रीय स्तर पर ‘बेस्ट फार्मर अवॉर्ड’ से सम्मानित किया जा चुका है.




