
कांतारा चैप्टर 1 में ऋषभ शेट्टी और रुक्मिणी वसंत
एक्टर ऋषभ शेट्टी की कांतारा चैप्टर 1 ने एक बार फिर चर्चा बटोर ली है. ऋषभ शेट्टी मूलत: कन्नड़ फिल्मों के अभिनेता हैं लेकिन साल 2022 में जब कांतारा प्रदर्शित हुई तो उन्हें भी साउथ के दूसरे अभिनेताओं की तरह देशभर में प्रसिद्धि मिली. कांतारा ने ऋषभ को पैन इंडिया एक्टर बना दिया. अब कांतारा चैप्टर 1 की लोकप्रियता ने फिर से कन्नड़ सिनेमा की पहचान बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है. यों तमिल और तेगुलु फिल्मों का बाजार पहले से ही हिंदी भाषी राज्यों के अलावा वर्ल्डवाइड भी रहा है. वहीं पिछले कुछ सालों में कन्नड़ और मलयालम सिनेमा ने भी अहम छाप छोड़ी है. इसमें यश, ऋषभ शेट्टी या ममूटी और मोहनलाल जैसे कलाकारों का खास योगदान रेखांकित किया जा सकता है.
कांतारा चैप्टर 1 देखने के दौरान कई बातें दिमाग में एक साथ कौंधती हैं. कोई कहानी कल्पना से भी परे कैसे पर्दे पर रची जा सकती है- उसे ऋषभ शेट्टी ने कर दिखाया है. ऋषभ इस फिल्म के एक्टर होने के साथ-साथ डायरेक्टर और राइटर भी हैं. आम तौर पर इन तीनों ही विभागों पर किसी एक व्यक्ति का अधिकार बहुत कम ही देखने को मिलता है. लेकिन ऋषभ ने इसे कामयाबी के साथ बखूबी अंजाम दिया है. वैसे भी इन दिनों कहानी को अनप्रिडिक्टेबल बनाने के प्रयास खूब हो रहे हैं. दर्शक फिल्म देखने के दौरान जरा भी यह अनुमान न लगा सके कि अगले सीन में क्या होने वाला है. जो सोचेंगे, हो सकता है, उसके उलट हो जाए.
पर्दे पर सबकुछ जादू की तरह घटता है
कांतारा चैप्टर 1 में भी ऐसी ही कल्पनाशीलता देखने को मिलती है. अनप्रिडिक्टेबल सीन बहुत हैं, जिसे देखकर चौंक सकते हैं. पर्दे पर सबकुछ जादू की तरह घटता है. एक जंगल की इतनी विकराल और डरावनी दुनिया बसाना आसान नहीं. कांतारा एक अलग ही कायनात नजर आता है. इसे ‘ईश्वर का मधुवन’ नाम दिया गया है. फिल्म का मुख्य नायक यानी बर्मे (ऋषभ शेट्टी) इसी जंगल के अंदर रहता है. जंगल के संसाधन पर उसके लोगों का कब्जा है. बाहरी प्रभावशाली ताकतों से प्रकृति की इस सुंदरता की रक्षा करने के मिशन में जुटा है. इस प्रकार बर्मे एक ऐसा आदिवासी नेता के रूप में उभरा है जो जंल, जंगल और जमीन का रक्षक है. फिल्म की कहानी इस संसाधन की जमकर वकालत की गई है. ऋषभ के इसी रूप की अलग तरीके से व्याख्या की जा रही है.
इस फिल्म की कहानी 2022 की फिल्म से कई साल पहले की है. इसे दंतकथा भी कहा गया है. राजा विजयेंद्र (जयराम) ने कुलशेखर (गुलशन देवैया) को नया शासक बना देता है. लेकिन कुलशेखर इसके योग्य नहीं दिखता. जबकि उसकी बहन कनकवती (रुक्मिणी वसंत) उससे अधिक समझदार नजर आती हैं. कांतारा एक ऐसा क्षेत्र है, जहां स्थानीय जनजातियों के अलावा किसी और को घूमने की अनुमति नहीं है. राजा भी नहीं जा सकते. बर्मे कंतारा का ऐसा नेता है जो कनकवती को प्रभावित कर लेता है. यहां से फिल्म की कहानी अलग मोड़ लेने लग जाती है. बर्मे कैसे सबका दिल जीतता है और अपना प्रभाव जमा पाता है, इसे देखना बहुत ही दिलचस्प है.
सीक्वल से बदले प्रीक्वल का रोमांच
कांतारा चैप्टर 1 की दूसरी अहम बात इसका प्रीक्वल होने में है. आमतौर किसी भी फिल्म की फ्रेंचाइजी में सीक्वल या अलग कहानी दिखाने की परंपरा रही है. प्रीक्वल के उदाहरण बहुत कम ही देखने को मिले हैं. बाहुबली 2 की तरह कांतारा चैप्टर 1 को भी कांतारा का प्रीक्वल नाम देकर बेचा गया है. जाहिर है सीक्वल सीरीज के बीच प्रीक्वल का तमगा एक अलग किस्म की जिज्ञासा जगा रहा है. ऋषभ शेट्टी ने जिस दुनिया का निर्माण किया है, उसकी भव्यता देखते ही बनती है. प्रीक्वल में 2022 की फिल्म की घटनाओं से सालों पहले की घटनाएं दिखाई गई हैं. कांतारा चैप्टर 1 बताती है शिवा के पिता जिस स्थान पर लुप्त हुए थे, उसका संबंध एक दिव्य स्थल से है.
कांतारा वास्तव में एक घना और रहस्यमय जंगल का नाम है. इसे ईश्वर का मधुवन नाम दिया गया है. यहां आदिवासी समुदाय रहता है और प्रकृति के साथ साथ अपने आराध्य के प्रति आस्था रखता है. यह समुदाय अपनी जड़ों से गहरे जुड़ा है. खुद को यहां मूल निवासी बताता है. प्रकृति का उपासक भी कहता है. हालांकि इस फिल्म में कुछ कमियां भी हैं. मसलन इमोशन के बदले एक्शन पर ज्यादा जोर दिया गया है. कलाकारों के अभिनय के बदले उनके गेटअप और जंगल की भयावता दिखाने पर ज्यादा जोर है. साथ ही कुछेक जगहों पर हास्य प्रसंग और संवाद भी फिल्म के प्रभाव को कम करते हैं. ये हास्य प्रसंग फिल्म की चुस्ती को बिगाड़ते हैं. थोड़े हल्के बनाते हैं.
कहानी को किंवदंती बनाने की कोशिश
फिल्म में कांतारा जंगल और इसके अंदर की रहस्यमयी दुनिया के घटनाक्रमों को किंवदंती से जोड़ने की कोशिश की गई है. संभवत: ऐसा इसलिए ताकि दर्शक इस कहानी में रम सके. अनोखा और अभूतपूर्व मान सके. वैसे इस प्रयास में फिल्म सफल भी होती दिखती है. ऋषभ शेट्टी के भावनात्मक आवेग में तीव्रता जबरदस्त है. दिलों को छूने में कामयाब दिखते हैं. ऋषभ जितने बेहतर अभिनेता और निर्देशक दिखते हैं, उतने ही अच्छे राइटर भी. कहानी को पौराणिक बना देने की अदभुत कला नजर आती है. अरविंद एस. कश्यप की सिनेमैटोग्राफी और प्रगति शेट्टी की कॉस्ट्यूम डिज़ाइन ने सदियों पुरानी कहानी के माहौल बनाने में सफलता हासिल की है. ये सारी खूबियां मिलकर फिल्म को एक नायाब स्वरूप प्रदान करती है. दर्शक अनोखा संसार देख पाने का सुख प्राप्त कर पाते हैं.
यह भी पढ़ें ;जब सिनेमा में लगी शाखा, याद करें सलमान खान की बजरंगी भाईजान और वो गेरूआ सीन!