
रिलीज हो चुकी है कांतारा चैप्टर 1Image Credit source: सोशल मीडिया
Kantara Chapter 1 Challenges: ‘कांतारा चैप्टर 1’ थिएटर में रिलीज हो चुकी है, फिर एक बार कन्नड़ स्टार ऋषभ शेट्टी तुलुनाडू की मिट्टी और आस्था की कहानी लेकर लौटे हैं. साल 2022 में ‘कांतारा’ ने जो तूफान मचाया था, उसने पैन-इंडिया सिनेमा के भी कई रिकॉर्ड तोड़ दिए थे. अब फिल्म का प्रीक्वल, ‘दैव’ की स्थापना और उससे जुड़ी रहस्यमयी किस्से-कहानियों के बारे में बात करता है. इस बार बजट भी बड़ा है और फिल्म पर लगा हुआ दांव भी. तो ये है कि क्या हिंदी पट्टी के दर्शक इस कहानी को आसानी से समझ पाएंगे?
‘कांतारा चैप्टर 1’ कन्नड़ सिनेमा के साथ-साथ वेस्ट और साउथ में तो मजबूती से खड़ी है, लेकिन क्या नॉर्थ में भी ये फिल्म अपना कमाल दिखा पाएगी? क्योंकि जहां एक तरफ फिल्म को बेमिसाल विजुअल्स और ऋषभ शेट्टी के रोंगटे खड़े कर देने वाले प्रदर्शन के लिए सराहा जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ सच्चाई ये भी है कि फिल्म में कुछ ‘कमियां’ ऐसी हैं जो इस फिल्म के पैन-इंडिया सफर को खतरे में डाल सकती हैं.
1. बिना किसी समझौते के बताई गई बेबाक कहानी
‘कांतारा चैप्टर 1’ की सबसे बड़ी ताकत और शायद सबसे बड़ी चुनौती, इसकी प्रामाणिकता (ऑथेंटिसिटी) है. ये कहानी कोस्टल कर्नाटक (Coastal Karnataka) के आदिवासियों और उनके विश्वास की है. पूरी फिल्म में कहीं पर भी ऋषभ शेट्टी फिल्म को पैन-इंडिया दर्शकों के ‘टेस्ट’ के हिसाब से बदलने की कोशिश नहीं करते. फिल्म को उसी अंदाज में परोसा गया है, जैसा कन्नड़ ऑडियंस को पसंद आता है. यही वजह है कि जहां एक तरफ ये फिल्म कन्नड़ दर्शकों को अपनापन महसूस कराती है, वहीं हिंदी बेल्ट के दर्शक, जो इस क्षेत्र की लोककथाओं से परिचित नहीं हैं, वो इस कहानी से जुड़ने में मुश्किल महसूस कर सकते हैं.
2. दैव की अलग दुनिया
तुलुनाडु की संस्कृति में भगवान के साथ-साथ ‘दैव’ यानी भगवान के दूतों को भी माना जाता है, जिन्हें पत्थरों या शिलाओं के रूप में पूजा जाता है, उनकी कोई मूर्ति नहीं होती. ‘कांतारा’ में पंजुरली दैव की झलक नजर आई थी. लेकिन अब पंजुरली के साथ- घुलिगा दैव की कहानी ‘कांतारा चैप्टर 1’ में बताई गई है. अब सिर्फ कोस्टल कर्नाटक ही नहीं, बल्कि मुंबई-महाराष्ट्र से लेकर गोवा-केरल तक के समुद्री किनारों पर ऐसे लोक देवताओं की पूजा होती है, लेकिन उत्तर भारत या अन्य क्षेत्रों की ऑडियंस के लिए लिए ये कॉन्सेप्ट नया और कॉम्प्लेक्स हो सकता है. जिन्हें रीजनल फिल्मों में दिलचस्पी नहीं है, उन्हें इन किरदारों और मान्यताओं को समझने और उनसे जुड़ने में चुनौती आ सकती है. क्योंकि, ये कोई रामायण-महाभारत जैसी सदियों से चली आ रही आसान पौराणिक कथा नहीं है, जिसे हर कोई जानता है.
3. कन्नड़ में बोले गए ‘गुलिगा दैव’ के संवाद
फिल्म के कुछ अहम सीन में, खासकर घुलिगा दैव के संवादों को कन्नड़ भाषा में ही रखा गया है और साथ में हिंदी सबटाइटल्स दिए गए हैं. घुलिगा दैव के गुस्से में ‘सुपरस्पीड’ में बोले गए डायलॉग्स को पढ़कर उनका भाव समझना कई बार दर्शकों के लिए मुश्किल हो जाता है. ऐसे में कई बार क्लाइमेक्स की इंटेंसिटी और दैव का रौद्र रूप केवल विजुअल बनकर रह जाता है, और संवादों की गहराई कहीं खो जाती है.
4. किरदारों की डिटेलिंग है मिसिंग
फिल्म लंबी होने के बावजूद, उन दर्शकों के लिए कोर किरदारों और पंजुरली दैव-गुलिगा दैव के बीच के रिश्ते को समझना कठिन हो सकता है जो ‘कांतारा’ की कहानी और बैकग्राउंड से परिचित नहीं हैं. कांतारा की कहानी स्त्री, मुंज्या जैसी सीधी-सादी हॉरर-थ्रिलर नहीं है. ये माइथोलॉजी और लोककथाओं को मिलकर बताई गई कहानी है. इसमें नजर आने वाले दैवों की उत्पत्ति, उनकी शक्ति और उनके नियम क्या हैं, ये सब बिना डिटेलिंग के समझने में कठिनाई होती है और फिल्म खत्म होने के बाद भी कई सवाल दिमाग में घूमते रहते हैं.
5. फिल्म की लंबाई
‘कांतारा चैप्टर 1’ एक सामान्य हिंदी फिल्म की तुलना में ज्यादा लंबी है. फिल्म की भव्यता और कहानी के फैलाव को दिखाने के लिए मेकर्स ने कुछ सीक्वेंस को लंबा खींचा है. कुछ दर्शकों को फिल्म का शुरुआती हिस्सा धीमा लग सकता है, और कुछ एक्शन सीक्वेंस या व्यापार से जुड़े दृश्यों को बेवजह लंबा खींचा गया महसूस हो सकता है. इससे फिल्म कुछ जगहों पर उबाऊ भी लग सकती है.
इन तमाम चुनौतियों के बावजूद, ‘कांतारा चैप्टर 1’ को मिल रहे शुरुआती रिव्यूज बता रहे हैं कि फिल्म का विजुअल स्केल, ऋषभ शेट्टी की एक्टिंग और फिल्म का रोंगटे खड़े कर देने वाला क्लाइमेक्स इन कमियों पर भारी पड़ सकता है.