Kantara Chapter 1 Review: ऋषभ शेट्टी की मास्टरपीस, रोंगटे खड़े कर देगी ये फिल्म, जानें क्यों है पैसा वसूल?

Kantara Chapter 1 Review: ऋषभ शेट्टी की मास्टरपीस, रोंगटे खड़े कर देगी ये फिल्म, जानें क्यों है पैसा वसूल?

कांतारा चैप्टर 1 फिल्म का रिव्यू

Rishab Shetty Kantara Chapter 1 Review: ऋषभ शेट्टी की ‘कंतारा: चैप्टर 1’ थिएटर में रिलीज हो चुकी है. कुछ फिल्में होती हैं, जो आपका खूब मनोरंजन करती हैं, कुछ फिल्में ऐसी होती हैं, जो हमें गहरी सोच में भी डाल देती हैं, उनकी तारीफ करते हुए जुबान नहीं थकती, और कुछ ऐसी भी होती हैं, जिन्हें देखकर आप तालियां बजाने पर मजबूर हो जाते हैं. लेकिन जब एक ही फिल्म में ये सब कुछ होता है, तो उस फिल्म को मास्टरपीस कहते हैं और ऋषभ शेट्टी की ये फिल्म वही मास्टरपीस है. दरअसल जब पहली बार इस प्रीक्वल का ट्रेलर आया, तो दिल में थोड़ी निराशा हुई थी. डर था कि पैन इंडिया की होड़ और बड़े बजट के प्रेशर में वो इस कहानी की रूह को न खो दें. लेकिन फिल्म देखने के बाद ये डर गलत साबित हो गया.

3 साल पहले ऋषभ शेट्टी ने भारत के मिट्टी की एक ऐसी लोककथा बताने की हिम्मत की थी, जिसपर महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक के समंदर तट पर बसने वाले लाखों लोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी विश्वास करते आए हैं. अब इस फिल्म के प्रीक्वेल में आखिर क्या खास बात है, ये जानने के लिए आपको पूरा रिव्यू पढ़ना होगा.

Kantara Chapter 1 Movie

कहानी

फिल्म की शुरुआत होती है कदंब सल्तनत के उस जालिम बादशाह से, जिसके दिल में लालच का शैतान बैठा था! उसको बस एक ही धुन सवार थीहर नदी, नाला, खेत और पहाड़ उसका हो जाए! आदमी हो या औरत, बच्चा हो या बूढ़ाउस राजा को कोई फर्क नहीं पड़ता था, वो सबको मारता था और उनकी जगह को हथियाकर आगे बढ़ता था.

एक दिन उसकी नजर समुंदर किनारे मछली पकड़ते एक बुज़ुर्ग पर पड़ जाती है. तुरंत राजा उसे पकड़ने का हुक्म दे देता है. जब उस बुजुर्ग को घसीटकर लाया जाता है, तो उसकी धोती की जेब से अनोखी चीजें जमीन पर गिर जाती हैं. राजा जब उन चीज़ों को क्या देखा, तब उसकी आँखें चकाचौंध हो जाती हैं! बस, फिर क्या था! राजा ठान लेता है कि इस खजाने की जड़ तक पहुंचना है! और यही लालच उसे खींच लाता है कंतारा की पवित्र धरती पर, जहां के लोग प्रकृति के साथ ताल से ताल मिलाकर जीते है. मगर जब राजा उस इलाके पर अपनी बुरी नजर डालता है, तब अनजाने में वो सीधे वहां बंसने वाले दैव को ललकार देता है!

कई दशक बाद, कहानी आती है भंगरा रियासत पर! अब उस राजा के बेटा विजयेंद्र (जयराम) बुजुर्ग हो गया है और उसने राजपाट अपने बेटे कुलशेखरा (गुलशन देवैया) को सौंप दिया है. तो उसकी बेटी कनकवथी (रुक्मिणी वसंत) ने राजकोष की बागडोर संभाल रखी है. उधर, दूसरी तरफ कंतारा में बर्मे (ऋषभ शेट्टी) लीडर बनकर गाँव की शान बढ़ाने और लोगों की तकदीर बदलने में जुटा है.

अब जब कंतारा के लोग अपनी बात लेकर भंगरा की दरबार में आते हैं, तो सब कुछ उल्टा-पुल्टा हो जाता है! आखिरकार कांतारा की जमीन किसकी है? कौन इसकी हिफाजत करेगा? और कौन इसे बर्बाद करने की साज़िश कर रहा है? बस इसी बात पर जोरदार महाभारत छिड़ जाती है! अब ये जंग सिर्फ इंसानों की नहीं, बल्कि आस्था और अधिकार की है, जिसका नतीजा रूह कंपा देने वाला है! और ये ड्रामा अगर आपको देखना है, तो थिएटर में जाकर ऋषभ शेट्टी की कांतारा चैप्टर 1 देखनी होगी.

जानें कैसी है फिल्म?

अगर 2022 वाली कांतारा देखकर आपकी साँसें अटक गई थीं, तो समझ लो कि ये प्रीक्वल तो उस वाली फिल्म से दस गुना आगे निकल गया है! दरअसल समंदर किनारे बंसे कोंकण, कर्नाटक, गोवा इलाकों के गांव में भगवान के साथ-साथ उनके गणों की भी पूजा की जाती हैं और उन गणों को तुलूनाडू (ये कहानी जिस गांव की है) दैव भी कहते हैं. ये गण अक्सर शिला रूप में पूजे जाते हैं. कांतारा में हमने उनके बारे में जाना था और इस फिल्म के चैप्टर 1 में उनकी शुरुआत की कहानी बहुत ही दिलचस्प तरीके से बताई गई है. शुरुआत से होंगे कहानी इतनी एंगेजिंग है कि आप पलक झपकाए बिना सीधे इस दुनिया में खो जाते हैं.

Kantara Chapter 1 Film (1)

फिल्म के हर सीन को भी इतनी बारीकी से गढ़ा गया है कि दिमाग घूम जाएगा. फिल्म सिर्फ मनोरंजन नहीं करती या सिर्फ कथा नहीं सुनाती. ये सदियों से चल रहे गरीबों के शोषण पर बात करती है, बराबरी की बात करती है. फिल्म में हम देखते हैं कि कैसे राजा के घोड़ों को छूने की अनुमति किसी को भी नहीं होती, इन्हें गुलाम का हाथ लगते ही मार दिया जाता है. लेकिन ऋषभ शेट्टी का बागी किरदार उस घोड़े पर संवारी भी करता है, राजा की बेटी से इश्क भी लड़ाता है और राजा के लिए बना रथ भी दौड़ाता है. सामाज की बंदिशें तोड़ने वाले ये सीन कहानी में इस तरह से पिरोए गए हैं कि उन्हें देखकर लगता ही नहीं कि ये जबरदस्ती डाले गए हैं. पहला हाफ पावर-पैक है और दूसरा ट्विस्ट और टर्न के साथ झटके देने वाला. इससे यही साबित होता है ऋषभ ने इस फिल्म को पूरी जान लगाकर बनाया है और हमें उसे देखना चाहिए.

निर्देशन

ऋषभ शेट्टी ने इस फिल्म में सिर्फ एक्टिंग नहीं की, बल्कि डायरेक्शन की कुर्सी पर बैठकर बवाल काटा है. ड्रामा और मनोरंजन के साथ उन्होंने आदिवासी कबीलों के संघर्ष, उनकी आपसी लड़ाई जैसे कई सारे पहलू हमारे सामने रखने की कोशिश की है, जिससे हम अनजान है. डायरेक्टर के तौर पर ऋषभ ने बड़ी बाज़ी खेली है. पिछली कांतारा में जो गुलिगा की चीख सुनकर हमारे रोंगटे खड़े हुए थे, वो तो इस प्रीक्वल के सामने महज एक ट्रेलर लगती है! बर्मे (ऋषभ) की चीख में कई बदलाव हैं और ये चीखें हर समय अलग-अलग दर्द बयान करती है. फिल्म में रूह कंपा देने वाले पल रुकते ही नहीं हैं, वो एक के बाद एक आते जाते हैं. तकनीकी तौर पर कहें तो अरविंद कश्यप की सिनेमैटोग्राफी और अजनीश लोकनाथ का संगीत जबरदस्त है. विजुअल इफेक्ट्स भी कमाल के हैं, लेकिन सेकेंड हाफ में कुछ ग्राफिक्स थोड़े कमजोर लगे हैं, पर ये छोटी सी कमी से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता.

एक्टिंग

अगर ऋषभ शेट्टी इस फिल्म की रीढ़ हैं, तो रुक्मिणी वसंत (कनकवथी) इसकी जान. रुक्मिणी को इस फिल्म में दमदार रोल मिला है, और उन्होंने पूरी ताकत से उसे निभाया है. उनकी एक्टिंग पॉवरफुल है. जयराम ने भी अपनी एक्सपीरियंस एक्टिंग से रंग जमाया है. और गुलशन देवैया की बात करें, तो उन्होंने निकम्मे राजा कुलशेखरा का रोल इतनी खूबसूरती से निभाया है कि आपको परदे पर उन्हें देखकर सही में गुस्सा आ जाएगा और यही उनकी जीत है! लेकिन असली बाजीगर तो हैं ऋषभ शेट्टी! क्लाइमेक्स और गुलिगा के सीन्स में वो सिर्फ एक्टर नहीं लगते, हमें लगता है कि दैव ही न्याय कर रहे हैं.

देखें या न देखें

अगर मेरी तरह आपको भी लगा था कि कांतारा में हमने अब कुछ देख लिया था, तो ये प्रीक्वल हमें बताता है कि जड़ों में कितनी ताकत होती है! दमदार विजुअल्स हैं और दिल को छूने वाली कहानी के साथ इस फिल्म की सबसे बड़ी बात इसकी ईमानदारी है. आप पत्थर की पूजा क्यों करते हो? इस सवाल का कांतारा मुंहतोड़ जवाब है. ये फिल्म सिर्फ पैसा वसूल फिल्म नहीं है, बल्कि ये एक ऐसा सिनेमैटिक अनुभव है जो आपको लंबे समय तक याद रहेगा. तो अपनी सीट की पेटी बांध लीजिए और कांतारा की दुनिया में खो जाइए, क्योंकि ये साल की बेहतरीन फिल्म है. हमारी तरफ से इस फिल्म को 4 स्टार्स.

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