
ब्याज दरों में होगी कटौती
भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल ही में हुई मॉनेटरी पॉलिसी की बैठक में रेपो रेट में कटौती से इनकार कर दिया. जीएसटी में कटौती के बाद देशवासियों में ब्याज दरों में छूट मिलने की उम्मीद थी. मगर ऐसा नहीं हुआ. आरबीआई ने अक्टूबर की अपनी बैठक में अपनी नीतिगत बैठक में रेपो दर को 5.5% पर अपरिवर्तित रखा और लगातार दूसरी बार उसमें कोई बदलाव नहीं किया. इस पर अमेरिकी फर्म मॉर्गन स्टेनली ने कहा कि RBI दिसंबर में होने वाली अगली MPC बैठक और फिर फरवरी 2026 में नीतिगत दर में कटौती कर सकता है, जिससे रेपो दर 5% तक कम हो सकती है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि हम दिसंबर की नीति में 25 आधार अंकों की कटौती की संभावना देखते हैं, जो घरेलू विकास-इंफ्लेशन के रुझान के अनुरूप है. आरबीआई ने वित्त वर्ष 26 के लिए अपने जीडीपी अनुमान को पहले के 6.5% से बढ़ाकर 6.8% कर दिया है। साथ ही, व्यापार और टैरिफ से जुड़ी समस्याओं के कारण वित्त वर्ष 26 की पहली छमाही में आर्थिक विकास में कमी की आशंका जताई है.
महंगाई का अनुमान घटाया
आरबीआई ने वित्त वर्ष 26 के लिए मुख्य उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मुद्रास्फीति अनुमान को भी पहले के 3.1% से घटाकर 2.6% कर दिया है. रिपोर्ट में बताया गया है कि आरबीआई को अगले साल मुद्रास्फीति लगभग 4.5% रहने की उम्मीद है. हालांकि, मॉर्गन स्टेनली का अनुमान है कि वित्त वर्ष 26 और 27 में मुद्रास्फीति औसतन 4% से कम रहेगी, जबकि समग्र आर्थिक विकास कमजोर रह सकता है.
इससे ब्याज दरों में कटौती की संभावना बनती है. मॉर्गन स्टेनली ने कहा कि आरबीआई को इस बैठक में ही ब्याज दरों में कटौती कर देनी चाहिए थी, क्योंकि मौद्रिक नीति का असर दिखने में समय लगता है. रिपोर्ट में कहा गया है. अब ब्याज दरों में कटौती का सही समय था, क्योंकि नीतिगत असर में देरी हो रही है. इसके प्रमुख कारण ये हैं.
- मुख्य उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में कीमतों के कम होने की प्रवृत्ति
- कमजोर आर्थिक वृद्धि की स्थिति
- अनुकूल वैश्विक आर्थिक माहौल