नौकरी बचानी है तो…महिला कर्मचारी को साढ़े 4 साल तक करता रहा टॉर्चर “चुप्पी के साये में दबा दर्द और न्याय की आहट”(a story)

एक छोटी सी दफ्तर की दुनिया में काम करने वाली एक महिला कर्मचारी की कहानी है, जो कई वर्षों तक छुपे दर्द और निंदनीय अत्याचार सहती रही। वह रोजमर्रा की जिम्मेदारियों में मग्न थी, लेकिन कुछ गलतियां निकालने वाला सहकर्मी उसकी जिंदगी में अंधेरा फेंकने लगा।

समय के साथ वह सहकर्मी, जो अपनी शक्ति का दुरुपयोग करता था, महिला को अनजाने दबाव में डालने लगा। उसकी मांगें बढ़ीं, और जब वह उनसे विरोध करती, तो जवाब में धमकियां मिलतीं — नौकरी से निकालने तक की चेतावनी। महिला को लगता था कि कहीं उसका सशक्त होना उसकी कीमत न बन जाए।

धीरे-धीरे यह दबाव खतरनाक रूप ले गया। एक दिन, उस सहकर्मी ने उसे अकेले बुलाकर उससे गलत व्यवहार किया। विरोध करने पर भी वह नहीं रुका, बल्कि कई बार उसका शोषण करता रहा। इस सन्नाटा, चुप्पी और डर के बीच महिला गर्भवती हो गई, पर वह अपने दर्द को छुपाती रही, अपने परिवार में साझा नहीं कर पाई।

नौकरी बचानी है तो…महिला कर्मचारी को साढ़े 4 साल तक करता रहा टॉर्चर “चुप्पी के साये में दबा दर्द और न्याय की आहट”(a story)

जब सारी हिम्मत टूटने लगी और न्याय की आस धुंधली नजर आने लगी, तब वह महिला थाने पहुंची। उसने अपने भीतर छुपाए जख्मों को शब्दों में बांधा, भरोसा जताया कि अब वह डरकर नहीं छुपेगी। जांच शुरू हुई, और न्याय पाने की राह खुलने लगी।

कहानी का संदेश:
यह कहानी है हिम्मत की, जो अंधेरे में भी रोशनी बनकर उभरती है। समाज की जिम्मेदारी है कि हम ऐसी आवाज़ों को सुने, समझें और न्याय दिलाएं। हर व्यक्ति को सम्मान और सुरक्षा मिले, यही असली मानवता है। किसी भी रूप में शोषण को सहना नहीं चाहिए, बल्कि उसके खिलाफ समानता और साहस से लड़ाई लड़नी चाहिए।

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