चीन, नेपाल और बांग्लादेश से खटपट… भारत की सुरक्षा के लिए कैसे अहम हुआ चिकन्स नेक?

चीन, नेपाल और बांग्लादेश से खटपट... भारत की सुरक्षा के लिए कैसे अहम हुआ चिकन्स नेक?

चिकन्स नेक से बढ़ी चिंता.

चीन से पहले से ही भारत की तकरार थी और बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार के पतन और मोहम्मद युनूस के भारत विरोधी रवैया के बाद भारत की चिंता बढ़ गयी है. वहीं, नेपाल में GEN-G के हिंसक आंदोलन से वहां की स्थिति डांवाडोल हैं. ऐस में उत्तर बंगाल में स्थित “चिकन्स नेक”, जिसे संकरा सिलीगुड़ी कॉरिडोर भी कहा जाता है, एक बार फिर से भारत की चिंता बढ़ा दी है.

कुछ समय पहले बांग्लादेश के अंतरिम नेता मुहम्मद यूनुस की हालिया चीन यात्रा के दौरान की गई टिप्पणी से यह मामला पहले से गरमाया हुआ था.

यूनुस ने भारत के पूर्वोत्तर को “भूमि से घिरा” बताया, जिसका अर्थ था बांग्लादेश से होकर गुजरने वाले पारगमन मार्गों पर उसकी निर्भरता है. इन टिप्पणियों पर नई दिल्ली की ओर से त्वरित कूटनीतिक और आर्थिक प्रतिक्रियाएं आईं और यूनुस को भारत सरकार ने जवाब दिया.

चिकन्स नेक क्या है?

चिकन्स नेक या सिलीगुड़ी कॉरिडोर पश्चिम बंगाल में भूमि का एक संकरा विस्तार है, जो भारत की मुख्य भूमि को उसके पूर्वोत्तर राज्यों – असम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा और मेघालय – जिन्हें सामूहिक रूप से सेवन सिस्टर्स के नाम से जाना जाता है – से जोड़ता है. यह भूमि पुल, जो अपने सबसे संकरे बिंदु पर लगभग 22 किलोमीटर चौड़ा है, उत्तर में नेपाल और दक्षिण में बांग्लादेश के बीच स्थित है.

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इसकी भौगोलिक स्थिति और गंभीरता के कारण इसे रणनीतिक और सैन्य हलकों में “चिकन्स नेक” उपनाम दिया गया है. इस गलियारे में कोई भी व्यवधान – चाहे वह सैन्य संघर्ष, प्राकृतिक आपदा या आंतरिक अशांति के कारण हो – भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को देश के बाकी हिस्सों से अलग कर देगा.

फिर से चर्चा में क्यों है चिकन्स नेक?

हाल ही में यह तनाव तब पैदा हुआ जब बांग्लादेश के अंतरिम मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस ने बीजिंग में भारत के “भूमि से घिरे” पूर्वोत्तर का जिक्र किया, हालांकि यह टिप्पणी सूक्ष्म थी, लेकिन इसका आशय भारत की अपनी सीमा में आने-जाने के लिए बांग्लादेशी क्षेत्र पर निर्भरता से था – एक ऐसा मुद्दा जिसे लेकर भारत बेहद संवेदनशील है.

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इसके जवाब में, नई दिल्ली ने तुरंत अपने प्रवेश बिंदुओं से कुछ बांग्लादेशी निर्यातों पर प्रतिबंध लगा दिया, जिससे स्थल-आबद्ध नेपाल और भूटान को छूट मिल गई और बांग्लादेश को बायपास करने वाली वैकल्पिक संपर्क परियोजनाओं पर काम तेज हो गया. इनमें मुख्य रूप से लंबे समय से चर्चित कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट परियोजना शामिल है, जिसका उद्देश्य म्यांमार के रास्ते कोलकाता को मिजोरम से जोड़ना है, जिससे बांग्लादेशी पारगमन मार्गों पर निर्भरता कम होगी.

यह प्रतिक्रिया केवल बुनियादी ढांचे को लेकर नहीं है. यह भू-राजनीतिक संकेत है – ढाका के लिए एक चेतावनी कि इस क्षेत्र में भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को कमजोर करने के आर्थिक और राजनीतिक परिणाम होंगे.

यूनुस के आने के बाद बदली स्थिति

अगस्त 2024 में शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद से भारत की चिंताएं बढ़ गई हैं. हसीना शासन ने नई दिल्ली के साथ मैत्रीपूर्ण, समझदारी भरे और मधुर संबंध बनाए रखे, लेकिन यूनुस के नेतृत्व वाले अंतरिम प्रशासन ने एक बिल्कुल अलग रुख अपनाया है. भारत विरोधी बयानबांग्लादेश के राजनीतिक विमर्श में मुख्यधारा की जगह हासिल कर ली है, साथ ही हिंदू अल्पसंख्यकों पर राजनीति से प्रेरित हमले भी किये गये.

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बीजिंग के साथ ढाका की बढ़ती नजदीकी को भारतीय नीतिगत हलकों में चिंता की दृष्टि से देखा जा रहा है. हाल के दो घटनाक्रमों ने भारतीय चिंताओं को विशेष रूप से बढ़ा दिया है. इनमें ढाका की 1 अरब डॉलर की तीस्ता नदी परियोजना को भारत से चीन स्थानांतरित करने की योजना; और चीनी सहायता से उत्तरी बांग्लादेश में लालमोनिरहाट एयरबेस को पुनर्जीवित करना शामिल है.

जानें क्या हैं सुरक्षा चुनौतियां

इस गलियारे का संकीर्ण भूगोल इसे असाधारण रूप से असुरक्षित बनाता है. फांसिदेवा (बांग्लादेश सीमा के पास) और पानीटंकी (भारत-नेपाल सीमा पर) के बीच अपने सबसे संकरे हिस्से में, यह सैन्य घुसपैठ और आंतरिक अशांति दोनों के लिए अतिसंवेदनशील है. चुंबी घाटी त्रि-जंक्शन-जहां भारत, भूटान और चीन मिलते हैं- से निकटता जटिलता को और भी बढ़ा रही है.

चुंबी घाटी में चीनी बुनियादी ढांचे के निर्माण ने 2017 के डोकलाम संकट सहित सीमा गतिरोधों को जन्म दिया है. विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि उत्तर से कोई भी शत्रुतापूर्ण गतिविधि — दक्षिण (बांग्लादेश) से अस्थिरता या दबाव के साथ — इस गलियारे को अवरुद्ध कर सकती है, जिससे पूर्वोत्तर भारत का संपर्क टूट सकता है.

इस गलियारे को भविष्य में चीन से जुड़े किसी भी सैन्य संघर्ष में एक रुकावट के रूप में भी देखा जाता है. अगर चीन बांग्लादेश के साथ और अधिक सीधे गठबंधन करता है या लालमोनिरहाट जैसे ठिकानों तक पहुंच सुरक्षित करता है, तो इससे बीजिंग को इस क्षेत्र में नई बढ़त मिलेगी.

बांग्लादेश-चीन की नजदीकी से बढ़ी चिंता

मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में, बांग्लादेश के चीन के साथ सैन्य और आर्थिक संबंध और भी गहरे हुए हैं. बीजिंग ढाका का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता बना हुआ है – लड़ाकू विमान, तोपखाने और नौसैनिक जहाजों की आपूर्ति करता है. यह बांग्लादेश में सड़कों, रेलमार्गों, पुलों और हवाई अड्डों के निर्माण में शामिल एक प्रमुख बुनियादी ढांचा साझेदार भी है.

दोनों देश अक्सर संयुक्त सैन्य अभ्यास करते हैं, और चीनी कंपनियों ने रणनीतिक बुनियादी ढांचे पर प्रभाव बढ़ाया है, जिससे भारतीय रणनीतिक हलकों में चिंताएं बढ़ गई हैं. बांग्लादेश में चीन की बढ़ती भूमिका ने सिलीगुड़ी कॉरिडोर को एक सैन्य संपत्ति से एक भू-रणनीतिक स्थल में बदल दिया है.

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