FIIs ने तीन महीने बाद किया जोरदार कमबैक, मार्केट में डाले 1.6 बिलियन डॉलर

FIIs ने तीन महीने बाद किया जोरदार कमबैक, मार्केट में डाले 1.6 बिलियन डॉलर

विदेशी निवेशक

भारतीय शेयर बाजार के लिए एक अच्छा संकेत यह है कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने अक्टूबर में फिर से खरीदारी शुरू की. तीन महीने तक लगातार बिकवाली करने के बाद एफपीआई ने 1.65 अरब डॉलर की भारतीय शेयरों की शुद्ध खरीदारी की. भारतीय शेयर बाजारों में आई नरमी के बाद कीमतों में सुधार और कंपनियों की कमाई में बेहतरी के साथ-साथ देश की विकास की कहानी ने इस महीने एफपीआई की खरीदारी को बढ़ावा दिया है. इसका नतीजा यह हुआ कि भारतीय शेयर बाजार का प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स अक्टूबर में 4.57 फीसदी की तेजी के साथ बंद हुआ.

इक्विनॉमिक्स रिसर्च के संस्थापक जी चोकालिंगम ने कहा कि हाल ही में जीएसटी की दरों को कम करना भारत की विकास कहानी को आगे बढ़ाने वाला एक बड़ा कारण रहा है. इसका असर ऑटो बिक्री के आंकड़ों में पहले से ही दिख रहा है. टाटा मोटर्स पैसेंजर व्हीकल्स (TMPV) ने अक्टूबर में 74,705 गाड़ियां बेचीं, M&M ने 66,800 गाड़ियां और हुंडई ने 65,045 गाड़ियां बेचीं. यह सितंबर के मुकाबले काफी ज्यादा है, जब टाटा मोटर्स ने 41,151, M&M ने 37,659 और हुंडई ने 35,812 गाड़ियां बेची थीं.

इसके अलावा, अमेरिका द्वारा भारत पर टैरिफ लगाने के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए भारत की जीडीपी बढ़ोतरी का अनुमान 6.4% से बढ़ाकर 6.6% कर दिया है. विश्लेषकों का मानना है कि मजबूत अर्थव्यवस्था का असर वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में भारतीय कंपनियों की कमाई में दिखेगा, जिसने एफपीआई को भारत की ओर खींचा है. चोकालिंगम ने कहा कि जीएसटी दरों में हालिया कटौती और कुल बिक्री में बढ़ोतरी से कंपनियों की कमाई में सुधार की उम्मीद है.

अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में इसका अच्छा असर दिखना शुरू हो जाएगा. इस सुधार को तेल की कीमतों में गिरावट से भी मदद मिलेगी, जो अपने 52-सप्ताह के सबसे ऊंचे स्तर से करीब 21-22% नीचे आ चुकी हैं. व्यापार समझौता अभी भी बड़ा मुद्दा हैबाजारों के लिए एक बड़ी चिंता अमेरिका की ओर से भारत पर लगाया गया 50% टैरिफ—दोनों देशों के बीच व्यापार समझौते की तैयारी के साथ कम हो सकता है. रेलिगेयर ब्रोकिंग के वरिष्ठ उपाध्यक्ष (शोध) अजीत मिश्रा ने कहा कि बाजार के लोग उम्मीद कर रहे हैं कि टैरिफ का तनाव कम हो सकता है.

अमेरिका-चीन और अमेरिका-भारत के बीच होने वाले व्यापार समझौतों के अच्छे संकेत इसे और मजबूती दे सकते हैं, जो एक और बड़ा कारण है. लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बदलते स्वभाव को देखते हुए, अंतिम नतीजा अभी अनिश्चित है. विश्लेषकों का कहना है कि अगर यह समझौता नहीं हुआ, तो भारत के निर्यात को नुकसान हो सकता है और कुछ विदेशी पैसा फिर बाहर जा सकता है. भारत में फोर्विस मजार्स के पार्टनर स्वतंत्र भाटिया ने कहा कि एफपीआई की लगातार रुचि इस बात पर निर्भर करेगी कि व्यापार वार्ता कैसे आगे बढ़ती है, साथ ही स्थिर महंगाई और मददगार वैश्विक ब्याज दरें भी इसमें भूमिका निभाएंगी.

विदेशी निवेशकों का आगे का रुख कैसा रहेगा?

एफपीआई की खरीदारी ने बाजार में फिर से तेजी का माहौल बना दिया है, लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि वे अभी भी कुल मिलाकर बिकवाल हैं और उन्होंने 15.97 अरब डॉलर यानी करीब 1,39,910 करोड़ रुपये की बड़ी रकम बेच दी है. यह मान लेना कि अक्टूबर की खरीदारी नवंबर तक जारी रहेगी, जल्दबाजी होगी. भाटिया ने कहा कि अक्टूबर का निवेश एक अच्छा संकेत है, लेकिन यह मजबूत रुझान से ज्यादा सतर्क वापसी जैसा लगता है. उन्होंने कहा कि खरीदारी जारी रखने के लिए, स्थिर कमाई वृद्धि, बड़ी अर्थव्यवस्था की स्थिरता और अच्छा वैश्विक माहौल जैसे कारण जरूरी होंगे. एफपीआई बड़े निवेश करने से पहले वैश्विक जोखिमों, ब्याज दरों के रुझान और भारत की नीतियों पर नजर रखेंगे. गुप्ता को भी उम्मीद है कि खरीदारी भारत से जुड़े कारणों पर निर्भर करेगी, जैसे साल भर में आरबीआई द्वारा ब्याज दरों में संभावित कटौती, सरकार की पीएलआई नीतियां, एफडीआई और घरेलू निजी निवेश को लुभाने के अन्य प्रोत्साहन, उपभोक्ताओं के लिए बजट फायदे और बुनियादी ढांचे पर सरकार की पूंजी खर्च योजनाएं.

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