
- यदि हम चाहते हैं कि हमारा नाम जप सफल हो, मन भगवान में लगे और आत्मा शुद्ध हो, तो हमें भोजन को दोषरहित बनाना ही होगा।
- भोजन के दोष लगने के कई कारण हैं, जैसे कि भोजन किसके हाथ से बना है और किसके लिए बनाया गया है।
- यदि भोजन भगवान को अर्पित किया जाता है, तो वह प्रसाद बन जाता है और दोष मुक्त होता है, जिससे नाम जप और भक्ति का प्रभाव बढ़ता है।
- सात्विक भोजन करने, भगवान को अर्पण करके खाने, और रसोई में भजन चलाने से भोजन की शुद्धता बढ़ती है, जो नाम स्मरण पर सकारात्मक असर डालती है।
शास्त्रों में कहा गया है कि जैसा अन्न, वैसा मन क्योंकि भोजन को केवल शरीर के पोषण से ही नहीं, बल्कि मन और आत्मा की शुद्धता से भी जोड़ा गया है। यही कारण है कि नाम जप, साधना, भक्ति और भगवान के सच्चे अनुभव के लिए शुद्ध भोजन (सात्विक अन्न) को अनिवार्य माना गया है। प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु प्रेमानंद महाराज का कहना है कि भोजन का केवल सात्विक होना ही जरूरी नहीं है, बल्कि अगर आप नाम जप करते हैं, तो ये आवश्यक है कि भोजन से जुड़े कई अन्य नियमों का भी पालन आवश्यक है क्योंकि भोजन को भी दोष लगता है। प्रेमानंद महाराज जी के अनुसार, यदि हम चाहते हैं कि हमारा नाम जप सफल हो, मन भगवान में लगे और आत्मा शुद्ध हो, तो हमें भोजन को दोषरहित बनाना ही होगा। तो, ये दोष किस प्रकार के होते हैं और किस प्रकार लगता है, चलिए जानते हैं…भोजन दोष लगने के कारण
भोजन किसके हाथ से बना है
भोजन को दोष लगने का पहला कारण ये है कि भोजन आखिर किसके हाथ से बना है क्योंकि भोजन का पकना भोजन पकाने वाले के प्रकृति से भी जुड़ा होता है। यदि रसोइया कामी, क्रोधी, नास्तिक, या अशुद्ध विचारों वाला हो, तो उस भोजन में उसकी चेतना का प्रभाव पड़ता है।
कैसे भाव से बना है
भोजन दोष लगने का दूसरा कारण है कि भोजन किस भाव से बनाया गया है क्योंकि व्यक्ति के मन की ऊर्जा भी भोजन को प्रभावित करती है। अगर खाना क्रोध, अशुद्धता या जल्दबाज़ी में बना हो, तो उसमें ‘दोष’ लग जाता है।
किसके लिए बनाया गया है
भोजन को दोष लगने का तीसरा कारण है कि भोजन किसे खिलाया या अर्पित किया जा रहा है। अगर भोजन भगवान् को भोग के लिए अर्पित किया जा रहा, तो उसकी प्रकृति और ऊर्जा अलग होगी, जबकि अगर वो बोग-विलास के लिए बनाई जा रही, तो उसकी प्रकृति अलग होगी।
किसके साथ खाया गया है
साधु–संतों के संग में खाया भोजन पुण्यदायी होता है, लेकिन दुष्ट, दोषयुक्त, अपवित्र संग में खाया भोजन मानसिक व आत्मिक अशुद्धि लाता है।
प्रेमानंद महाराज के अनुसार भोजन और भक्ति का संबंध
प्रेमानंद महाराज के अनुसार, जिस अन्न से शरीर बना है, वही अन्न मन को भी प्रभावित करता है। यदि अन्न अशुद्ध है, तो मन चंचल, वासनाग्रस्त और असंयमी हो जाएगा। ऐसे मन से नाम जप में एकाग्रता नहीं आ सकती। उनका कहना है कि जप का असर तब बढ़ता है जब भोजन सात्विक, भगवान को अर्पित और निर्मल हो। अन्न भोग बनाकर, यानी पहले भगवान को अर्पण कर खाने से वह प्रसाद बन जाता है और दोष मुक्त होता है। महाराज जी यह भी कहते हैं कि रसोई में यदि भजन चलता रहे, नाम चलता रहे, तो भोजन शुद्ध और दोष रहित होगा। इससे अन्न में सात्त्विकता आती है और उसका असर नाम स्मरण पर भी पड़ता है।
नाम जप के प्रभाव को बढ़ाने के लिए भोजन के नियम
- सात्विक भोजन करें और बासी, प्याज, लहसुन, मांस, शराब, अधिक मिर्च–मसाले से परहेज़ करें।
- भोजन को भगवान को अर्पण करके खाएँ। नैवेद्य या प्रसाद बनाकर भोजन करें।
- भोजन बनाते समय शरीर, मन और वचन से शुद्ध रहें। रसोईघर को भी साफ रखें।
- भोजन के समय चित्त शांति में रखें। भोजन करते समय टीवी, मोबाइल, विवाद या चिंता से दूर रहें।
- साधुजन या गुरु से मिला भोजन श्रेष्ठ होता है।