
महान अर्थशास्त्री और कूटनीतिज्ञ आचार्य चाणक्य ने अपनी चाणक्य नीति में चार प्रकार के लोगों से दोस्ती न करने की सलाह दी है। चाणक्य के अनुसार, ऐसे लोगों से दोस्ती करने वाला व्यक्ति बर्बाद हो जाता है और उसका जीवन तबाह होने की कगार पर पहुँच जाता है। आइए जानते हैं चाणक्य की इस महत्वपूर्ण नीति के बारे में।
चाणक्य का श्लोक और उसका अर्थ
आचार्य चाणक्य ने कहा है:
दुराचारी दुर्दृष्टिर्दुरावासी च दुर्जनः। यन्मैत्री क्रियते पुम्भिर्नरः शीघ्रं विनश्यति।।
इस श्लोक का अर्थ है: “बुरे चरित्र वाले, अकारण दूसरे को हानि पहुँचाने वाले तथा गंदे स्थान पर रहने वाले व्यक्ति के साथ जो पुरुष मित्रता करता है, वह जल्दी ही नष्ट हो जाता है।”
चाणक्य के अनुसार, इन 4 लोगों से दूर रहें:
- बुरे चरित्र वाला व्यक्ति (दुराचारी): जिस व्यक्ति का चरित्र अच्छा न हो, जो अनैतिक कार्य करता हो, या जिसकी आदतें बुरी हों, उससे कभी दोस्ती नहीं करनी चाहिए। ऐसे व्यक्ति की संगत आपको भी गलत राह पर ले जा सकती है और आपके मान-सम्मान को भी हानि पहुँचा सकती है।
- अकारण दूसरों को हानि पहुँचाने वाला व्यक्ति (दुर्दृष्टि): जो व्यक्ति बिना किसी कारण के दूसरों को नुकसान पहुँचाने की सोच रखता हो या किसी का बुरा चाहता हो, उससे दूर रहना ही बेहतर है। ऐसे लोग ईर्ष्या और नकारात्मकता से भरे होते हैं और आपकी भलाई नहीं सोच सकते। उनकी बुरी सोच और कर्म आपको भी अपनी चपेट में ले सकते हैं।
- गंदे स्थान पर रहने वाला व्यक्ति (दुरावासी): यहाँ ‘गंदे स्थान’ का अर्थ केवल भौतिक स्थान से नहीं, बल्कि गंदी सोच, बुरी आदतों और नकारात्मक माहौल से भी है। जो व्यक्ति ऐसे वातावरण में रहता हो या जिसकी मानसिकता दूषित हो, उससे दोस्ती करने से आपके विचारों पर भी बुरा प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे लोगों से दूर रहकर ही आप अपनी मानसिक शांति और सकारात्मकता बनाए रख सकते हैं।
- दुर्जन व्यक्ति (सामान्य रूप से दुष्ट व्यक्ति): चाणक्य ने ‘दुर्जन’ शब्द का प्रयोग उन सभी लोगों के लिए किया है जो स्वभाव से दुष्ट होते हैं। सभी साधु-संतों और ऋषि-मुनियों का भी यही कहना है कि दुर्जन की संगत नरक में वास करने के समान होती है। इसलिए, मनुष्य की भलाई इसी में है कि वह जितनी जल्दी हो सके, दुष्ट व्यक्ति का साथ छोड़ दे।
मित्रता करते समय रखें ये सावधानी
आचार्य चाणक्य ने यहाँ यह भी संकेत किया है कि मित्रता करते समय यह भली प्रकार से जाँच-परख लेना चाहिए कि जिससे मित्रता की जा रही है, उसमें ये दोष तो नहीं हैं। यदि ऐसा है, तो उससे होने वाली हानि से बच पाना संभव नहीं होगा। इसलिए, ज़्यादा अच्छा है कि ऐसे व्यक्तियों से दूर ही रहा जाए।
सच्ची मित्रता जीवन का आधार होती है, लेकिन गलत लोगों से की गई दोस्ती पूरे जीवन को तबाह कर सकती है। क्या आप चाणक्य की इस सीख से सहमत हैं?