
सीमांचल के गांधी कहे जाने वाले तस्लीमुद्दीन.
सीमांचल में एक जमाने में अगर किसी की तूती बोलती थी तो वो थे तस्लीमुद्दीन साहेब. यहां की राजनीति में उन्हें सीमांचल का गांधी बोला जाता है. अपनी विरासत छोड़ गए तस्लीमुद्दीन के बेटों में असली वारिस कौन है, इसे लेकर परिवार से लेकर सियासी दलों में दावे और वादों का सिलसिला चल रहा है. जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर अररिया जिले के जोकीहाट विधानसभा क्षेत्र में उदाहाट इलाके में आते हैं और मंच से यह दावा करते हैं कि तस्लीमुद्दीन के असली वारिस उनके बेटे सरफराज हैं.
इस सीट से शुरू से लेकर अभी तक जितने भी विधायक बने, वो सभी मुस्लिम रहे हैं. उसी जोकीहाट में राष्ट्रीय जनता दल के लिए तेजस्वी यादव चुनाव प्रचार के लिए आते हैं और कहते हैं कि यह चुन्ने-मुन्ने की लड़ाई नहीं है बल्कि सरकार बनाने की लड़ाई है. अब सवाल यह उठता है कि आखिरकार तस्लीमुद्दीन का असली वारिस कौन!
बेटे मेरी बात नहीं मानते
अपने घर के बरामदे में बैठीं तस्लीमुद्दीन की पत्नी हजातुल ने टीवी9 भारतवर्ष से खास बातचीत में बताया, मैंने दोनों बेटों को समझाने की कोशिश की लेकिन जमाना बदल गया है. आजकल मां-बाप का कहना कौन मानता है. मैंने सरफराज से बोला कि वह अररिया से चुनाव लड़ लें यहां शहनवाज के लिए सीट छोड़ दें लेकिन किसी ने भी मेरी बात नहीं मानी. मैंने अपनी तरफ से सुलह कराने की कोशिश की लेकिन अगर कोई ना माने तो मैं क्या करूं. तस्लीमुद्दीन के सेवक दरूजुआ ने कहा, यदि इलाके में कोई मामला होता था तो साहेब बैठै-बैठे सुलझा लेते थे. अब लोकतंत्र है, सबको चुनाव लड़ने का हक है, क्या बोला जाए!
तस्लीमुद्दीन के सपनों को पूरा करना है जरूरी
सरफराज ने टीवी9 भारतवर्ष से बातचीत में कहा, तस्लीमुद्दीन ने इस इलाके को लेकर जो सपना देखा था वह अबतक पूरा नहीं हुआ है. उनके सपनों को अमली-जामा पहनाने के लिए वह चुनाव लड़ रहे हैं और यह काम उनका वारिस ही पूरा कर सकता है.
मैंने भी काम किया है – शहनवाज
जोकीहाट से स्थानीय विधायक और तस्लीमुद्दीन के छोटे बेटे शहनवाज ने टीवी9 भारतवर्ष से खास बातचीत में कहा, विकास एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है. मैंने इस इलाके में सड़कों से लेकर हर तरह का काम किया है. जहां तक अपने बड़े भाई की बात है मैं अपने भाई को कुछ भी नहीं कहना चाहता. वैसे पूरा जोकिहाट ही मेरा भाई है.
जनता में उहापोह
जोकिहाट के हवड़ा चौक पर मोहम्मद शमशाद ने कहा, हमें तसलीमुद्दीन का दौर याद है. हमारी परेशानी यह है कि दोनों हमारे ही बेटे हैं. ऐसे में किसको चुनें यह प्रश्न बड़ा कठिन है. असगर आलम ने कहा कि सरफराज और शहनवाज दोनों का दौर हमने देखा है. हमारे लिए तो दोनों एक हैं. हमें यह समझ में ही नहीं आ रहा है कि करें तो क्या करें!
जोकिहाट क्यों है महत्वपूर्ण
अररिया जिले के जोकिहाट में लगभग 65 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है. तस्लीमुद्दीन की राजनीतिक विरासत की, जिसे लेकर उनके बेटे सरफराज आलम और शाहनवाज आलम आमने-सामने हैं वहां शाहनवाज अभी राजद से विधायक हैं. वहीं सरफराज ने जन सुराज का दामन थामा है. ऐसे में यह मुकाबला दिलचस्प है.
भाई-भाई की लड़ाई
तस्लीमुद्दीन के घर में पारिवारिक टकराव 2020 के विधानसभा चुनाव से ही शुरू हो गया था. उस चुनाव में शाहनवाज आलम ने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के टिकट पर अपने ही बड़े भाई सरफराज आलम को 7,383 वोटों से हरा दिया था, जो उस समय RJD के उम्मीदवार थे. हालांकि उनके बड़े भाई सरफराज आलम, जो 2010 और 2015 में JDU के टिकट पर इसी सीट से जीत चुके हैं.
अररिया जिले की जोकीहाट विधानसभा सीट की बात करें तो ये 1967 में अस्तित्व में आई थी. तब से लेकर अभी तक कुल 16 बार विधानसभा चुनाव इस सीट पर हो चुके हैं. इनमें 1996 और 2008 में उपचुनाव भी हुए थे. इस सीट पर तस्लीमुद्दीन और उनके बेटों का कब्जा रहा है. इसे इनका गढ़ माना जाता है. अभी तक के कुल 16 चुनावों में से इस सीट से इनकी (तस्लीमुद्दीन और उनके बेटों) कुल 11 बार जीत हुई है.




