
गोरखुपर के पक्की बाग में स्थापित हुआ था देश का पहला सरस्वती शिशु मंदिर Image Credit source: Social Media
RSS Centenary Year: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने 100 साल पूरे कर लिए हैं. इस बार 2 अक्टूबर को विजयादशमी है और 1925 को विजयादशमी के दिन ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना नागपुर में की गई थी. तब से लेकर अब तक आरएसएस का सफर बेहद ही उतार-चढ़ाव भरा रहा है. हालांकि शताब्दी वर्ष से पूर्व ही RSS का वैभव अपने शीर्ष पर है. इसके पीछे एक वजह RSS के राजनीतिक संगठन माने जाने वाले बीजेपी की सफल यात्रा भी है.
बीजेपी मौजूदा वक्त में केंद्र सरकार का नेतृत्व कर रही है. तो वहीं कई राज्यों में बीजेपी के सरकारें हैं. बेशक आरएसएस और बीजेपी के बीच बड़ा फर्क है, लेकिन बीजेपी की इस सफल शिखर यात्रा में आरएसएस की अहम भूमिका है. या यूं कहें कि आरएसएस के संगठनों की अहम भूमिका है. आइए इसी कड़ी में बीजेपी की इस सफल शिखर यात्रा में आरएसएस के शैक्षणिक संगठन सरस्वती शिशु मंदिर यानी विद्या भारती की भूमिका को रेखांकित करने की कोशिश करते हैं. समझते हैं बीजेपी की ये सफल शिखर यात्रा आरएसएस के सरस्वती शिशु मंदिर जैसे फांउडेशन पर कितनी टिकी हुई है?
1952 में शुरू हुआ था पहला सरस्वती शिशु मंदिर
RSS शताब्दी वर्ष के अवसर पर बीजेपी की इस शिखर यात्रा में सरस्वती शिशु मंदिर की भूमिका को रेखांकित करने से पूर्व सरस्वती शिशु मंदिर की यात्रा पर एक नजर डालते हैं. असल में देश का पहला सरस्वती शिशु मंदिर में 1952 में शुरू हुआ था. गोरखपुर में भाऊराव देवरस, कृष्णचन्द्र गांधी और नानाजी देशमुख ने सर संघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर के निर्देश पर पहले सरस्वती शिशु मंदिर की नींव रखी थी. सरस्वती शिशु मंदिर की विकास यात्रा को लेकर विद्या भारती के अखिल भारतीय प्रचार संयोजक रामकुमार भावसार बताते हैं कि उस दौरान नानाजी देशमुख गोरखपुर में पूर्णकालिक के तौर पर काम कर रहे थे.
वह कहते हैं कि इसके बाद देश के कई राज्यों में सरस्वती शिशु मंदिर की स्थापना होने लगी. इसी कड़ी में 1958 में राज्य स्तरीय शिशु शिक्षा प्रबंधन समिति का गठन किया गया तो वहीं देशभर में खुल चुके सरस्वती शिशु मंदिर की अखिल भारतीय नेटवर्किंग के लिए विद्या भारती की शुरुआत की गई.
RSS का शिक्षा विचार अब बरगद बन गया
RSS मातृ संगठन के तौर पर काम करता है और इसके कई संगठन अलग-अलग क्षेत्र में सक्रिय हैं. शिक्षा के क्षेत्र में सरस्वती शिशु मंदिर के नाम से एक बीज बोया गया था, जिसने 1977 में विद्या भारती के तौर पर एक पौधे का रूप लिया और मौजूदा वक्त में ये एक विशाल बरगद बन गया है. इसको लेकर विद्या भारती के अखिल भारतीय महामंत्री देशराज शर्मा कहते हैं कि RSS एक विचार है, RSS कुछ नहीं करता है, RSS का स्वयंसेवक काम करता है. इसी कड़ी में शिक्षा के क्षेत्र में काम करने लिए सरस्वती शिशु मंदिर की स्थापना की गई थी. वह आगे जोड़ते हैं कि शिक्षा किसी भी विचार को पोषित करती है और आगे बढ़ाती है.

सरस्वती शिशु मंदिर
वह कहते हैं कि 1977 तक देशभर में लगभग 1400 से अधिक शिशु मंदिर की स्थापना हो चुकी थी. तब अखिल भारतीय स्तर पर विद्या भारती का विचार किया गया. 1990 से 2000 के बीच देशभर में 10 हजार से अधिक स्कूल विद्या भारती के अधीन संचालित होने लगे तो वहीं मौजूदा वक्त में औपचारिक और अनौपचारिक तौर पर 24 हजार से अधिक विद्यालय देशभर में संचालित हो रहे हैं. तो वहीं दुनिया का सबसे बड़ा पूर्व छात्र नेटवर्क विद्या भारती का ही है, जिसमें 10 लाख छात्र रजिस्टर्ड हैं.
विद्या भारती के पूर्व छात्र भी क्या RSS का अनौपचारिक काडर है?
सरस्वती शिशु मंदिर से शुरू हुई यात्रा मौजूदा वक्त में विद्या भारती के नेतृत्व में आगे बढ़ रही है. मसलन, आपतकाल के बाद ही विद्या भारती का विचार धरातल पर उतरा गया था और ये दौर है, जब केंद्र समेत कई राज्यों में RSS के राजनीतिक संगठन बीजेपी की सरकारें हैं. ऐसे में बीजेपी के इस उभार में RSS के शैक्षणिक संगठन सरस्वती शिशु मंदिर या विद्या भारती की भूमिका को रेखांकित करने की कोशिश करें तो सवाल आता है कि क्या विद्या भारती के पूर्व छात्र भी RSS का अनौपचारिक काडर हैं?
इसको लेकर विद्या भारती के राष्ट्रीय महामंत्री देशराज शर्मा कहते हैं कि RSS व्यक्ति निर्माण के लिए काम करता है. इसी कड़ी में सरस्वती शिशु मंदिर में राष्ट्रवाद, नैतिकता, संस्कृतिक संरक्षण के साथ ही भारतीय दर्शन के बारे में पढ़ाया जाता है. इसके तहत स्कूलों में मूल्य बोध वाले छात्र तैयार किए जाते हैं.
वहीं इस सवाल के जवाब में लंबे समय से संघ और बीजेपी को कवर कर रहे वरिष्ठ पत्रकार विनोद शुक्ल कहते हैं कि सरस्वती शिशु मंदिर समेत विद्या भारती के अन्य स्कूलों में प्राथमिक कक्षाओं से ही बच्चों के चरित्र निर्माण काम शुरू हो जाता है. उन्हें भारतीय संस्कृति के साथ ही राष्ट्रवाद के बारे में बताया जाता है. भारतीय संवेदना से जुड़ी कहानियां पढ़ाई जाती हैं, जो नजरिया विकसित करने से विचार बनने तक की यात्रा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इससे उनके व्यवहार में बदलाव आता है. बच्चों के विकास में उनकी भूमिका होती है. ये बच्चे, जब समाज का हिस्सा बनते हैं तो इन्हीं विचार के साथ अभिव्यक्त होते हैं. ऐसे में विद्या भारती के पूर्व छात्रों को RSS का अनौपचारिक काडर कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगा.
इसे एक उदाहरण से समझाते हुए वह कहते हैं कि मौजूदा वक्त में समाज में प्रतिष्ठित कई व्यक्ति ऐसे हैं, जो RSS की विचारधारा समेत बीजेपी की मुखालफत करते हैं, लेकिन वह साथ में ये दावा भी करते हैं कि उनकी शिक्षा सरस्वती शिशु मंदिर में हुई है. इस तरह से ऐसे लोग अपनी सांस्कृतिक समझ को स्थापित करने के लिए वैधानिकता तलाशते हैं.
वहीं इस पर विद्या भारती के राष्ट्रीय महामंत्री देशराज शर्मा कहते हैं कि RSS की ये ही विशेषता है, वह विचारों की स्वतंत्रता देता है. कई मामले ऐसे सामने आए हैं कि कई विचारकों ने बाहर संगठन बनाए, बाद में वह संगठन RSS से ही मिल गए है.
RSS, सरस्वती शिशु मंदिर, राजनीति और बीजेपी
RSS के सरस्वती शिशु मंदिर की बीजेपी को शिखर पर पहुंचाने की भूमिका क्या है? इसे अगर समझने की कोशिश करें तो स्पष्ट रूप ये दिखाई पड़ता है कि जनसंघ और बीजेपी के मजबूत होने से पूर्व ही सरस्वती शिशु मंदिर यानी विद्या भारती देशभर में अपना मजबूत नेटवर्क स्थापित कर चुका था. ऐसे में राजनीतिक दृष्टिकोण से देखें तो सरस्वती शिशु मंदिर और विद्या भारती के अन्य स्कूलों के बच्चों के माध्यम से बीजेपी के राजनीतिक प्रसार को महत्वपूर्ण मदद मिली.
वहीं इसको लेकर लंबे समय से संघ और बीजेपी को कवर कर रहे वरिष्ठ पत्रकार विनोद शुक्ल कहते हैं कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि सरस्वती शिशु मंदिर के बच्चों और उनके परिजनों में विकसित हुई वैचारिकाता का फायदा बीजेपी को हुआ है. वह कहते हैं कि इन स्कूलों से निकले बच्चे बीजेपी से अपने पॉलिटिकल विचार को जोड़ पाते हैं. रास्ता एक जैसा दिखता है. बेशक वह शाखा नहीं गए हैं, लेकिन राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक का विचार पोषित हो चुका है.
इसको लेकर विद्या भारती के राष्ट्रीय मंत्री देशराज शर्मा कहते हैं कि कोई भी सरस्वती शिशु मंदिर, विद्या मंदिर के किसी भी स्कूल में बीजेपी के बारे में नहीं बताया जाता है. तो वहीं कोई भी बीजेपी के लिए काम नहीं करता है, लेकिन बीजेपी का राजनीतिक एजेंडा, सरस्वती शिशु मंदिर के विचार से मिलते हैं. इसका फायदा बीजेपी को भी होता है.
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