
राहुल, तेजस्वी, मुकेश सहनी और दीपंकर भट्टाचार्य.
बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान में अब कुछ ही दिन बाकी हैं, लेकिन चाहे एनडीए और या फिर इंडिया गठबंधन सीटों के बंटवारे का फैसला अभी तक नहीं हो पाया है. सीटों को लेकर कांग्रेस और आरजेडी में पहले से ही खींचतान चल रही है. मुकेश सहनी डिप्टी सीएम और 60 सीटों की मांग पर अड़े हैं, तो अब भाकपा और माकपा की मांग और राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख पशुपति कुमार पारस की मांग ने तेजस्वी यादव की मुश्किलें बढ़ा दी हैं.
लेफ्ट पार्टी माकपा और भाकपा के नेताओं ने जल्द से सीट शेयरिंग की मांग की और कहा कि यदि सीट बंटवारे में देरी हुई तो इससे महागठबंधन को नुकसान का सामना करना पड़ सकता है. भाकपा ने 24 सीटें और माकपा ने 11 सीटों की मांग रखी है. इस तरह से दोनों पार्टियों ने 35 सीटों की मांग रखी है.
चुनावी रूप से सबसे सफल वामपंथी दल, भाकपा-माले-लिबरेशन, ने पहले ही आधिकारिक तौर पर 40 सीटों के लिए अपना दावा पेश कर दिया है. पार्टी ने कथित तौर पर गठबंधन समन्वयक और राजद नेता तेजस्वी प्रसाद यादव को 40 सीटों की सूची सौंप दी है.
लेफ्ट की मांग से बढ़ीं तेजस्वी की मुश्किलें
भाकपा-माले-लिबरेशन के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने हाल में कहा है कि शायद कुछ 40 सीटें ऐसी हैं, जहां हमें लगता है कि हम चुनाव लड़ सकते हैं. हम अपना दायरा बढ़ाना चाहेंगे. शायद दक्षिण बिहार और यहां तक कि उत्तर बिहार में भी. पार्टी ने 2020 के चुनावों में 19 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 12 सीटें जीती थीं. इसका वोट शेयर 3.16 प्रतिशत था.
इस तरह से माकपा-भाकपा और भाकपा (माले) की सीटों की मांग देखी जाए तो यह आंकड़ा 75 तक पहुंच गया है. राजद, कांग्रेस और अन्य वामपंथी दलों वाला महागठबंधन पिछले चुनाव में 243 में से 110 सीटों के साथ बहुमत से बस थोड़ा ही दूर रह गया था. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भाकपा को छह और माकपा को 4 सीटें मिली थीं.
मुकेश सहनी की मांग ने बढ़ाई टेंशन
इस तरह से राजद-कांग्रेस गठबंधन के नेतृत्व वाले महागठबंधन को अपने घटक दल, मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) से सीटों के बंटवारे को लेकर कड़ी मशक्कत का सामना करना पड़ रहा है. 2020 के विधानसभा चुनाव में सीट कम मिलने पर मुकेश सहनी ने महागठबंधन से नाता तोड़ लिया था और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजद) के घटक दल के रूप में 11 सीटों पर चुनाव लड़ा था. अब, महागठबंधन का हिस्सा होने के नाते, सहनी अपने चुनावी क्षेत्र का विस्तार करने के लिए और सीटों की मांग कर रहे हैं और डिप्टी सीएम के पद पर दावेदारी कर रहे हैं.
सूत्रों के अनुसार, वीआईपी नेतृत्व टालमटोल कर रहा है और गठबंधन के साथ आम सहमति नहीं बना पा रहा है, जिसके कारण सीटों के बंटवारे की आधिकारिक घोषणा में देरी हो रही है. पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस और राजद, दोनों दलों ने वीआईपी को समायोजित करने के लिए लगभग एक दर्जन या उससे अधिक सीटें छोड़ने का फैसला किया है.
सीटों के बंटवारे पर क्यों मचा है घमासान?
कांग्रेस और आरजेडी के नेता मानते हैं कि अभी तक इस बारे में कोई फैसला नहीं हुआ है कि दोनों दल कितनी सीटें छोड़ेंगे, लेकिन वे पिछली बार की तुलना में कम सीटों पर चुनाव लड़ेंगे. राजद, जिसने पिछली बार 144 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लगभग 130 सीटों पर चुनाव लड़ सकता है और कांग्रेस, जिसने 70 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, 60 से भी कम सीटों पर चुनाव लड़ सकती है.
महागठबंधन बिहार में सीटों के बंटवारे को लेकर सावधानी बरत रहा है, गठबंधन के सहयोगी लंबी चर्चा कर रहे हैं और यह आकलन किया जा रहा है कि कौन सी पार्टी अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने में सबसे बेहतर है. जिन निर्वाचन क्षेत्रों में गठबंधन पिछली बार हारा था, उनकी बारीकी से जांच की जा रही है, जिसमें हार के अंतर और जातिगत समीकरणों दोनों को ध्यान में रखा जा रहा है.
उदाहरण के लिए, 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में, राजद ने 75 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस ने 19 सीटें हासिल कीं, और गठबंधन ने कई सीटें कांटे की टक्कर में गंवा दीं, जिससे वह सरकार बनाने से चूक गया. इस बार, 2020 के विधानसभा चुनावों में गठबंधन द्वारा जीती गई लगभग 115 सीटों पर कम विचार-विमर्श होगा, जबकि जिन सीटों पर गठबंधन नहीं जीत पाया, उन पर गहन बातचीत होगी.
महागठबंधन में बढ़ीं पार्टियां, बढ़ें डिमांड
गठबंधन उम्मीदवारों के चयन पर काम कर रहा है और ऐसे उम्मीदवारों को मैदान में उतारने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है जो जमीनी हकीकत से बेहतर ढंग से निपट सकें. जमीनी स्तर पर मंथन चल रहा है.
इसके अलावा, कांग्रेस ओबीसी का प्रतिनिधित्व भी बढ़ाएगी. उदाहरण के लिए, पिछले चुनाव में, 70 में से जिन ओबीसी को पहले केवल लगभग पांच टिकट मिले थे, उन्हें आगामी दौर की सीटों में लगभग एक दर्जन मिल सकते हैं. इसी तरह, 12 टिकट मुस्लिम उम्मीदवारों को दिए गए थे, लेकिन इस बार यह संख्या बढ़ने की उम्मीद है.
सभी समुदायों में आनुपातिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है, जिसके बारे में नेताओं का तर्क है कि यह पहले की तुलना में एक सुधार होगा. राजद और कांग्रेस ने भले ही ज्यादातर मतभेद सुलझा लिए हों, लेकिन जिस तरह से महागठंबधन में पार्टियां जुट रही हैं. उससे सीटों के बंटवारे पर मुश्किलें भी पैदा हो रही हैं.