
बैकुंठ चतुर्दशी 2025
Baikunth Chaturdashi Kab Hai 2025: बैकुंठ चतुर्दशी का पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है. यह दिन बहुत खास माना जाता है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की एक साथ पूजा की जाती है. हिंदू धर्म में भगवान विष्णु को सृष्टि का पालन करने वाले और दया के देवता कहा गया है, जबकि भगवान शिव को विनाश और बदलाव का देवता माना जाता है. बैकुंठ चतुर्दशी का असली अर्थ यही है कि जब सृष्टि की दो अलग शक्तियां एक जो पालन करती है और दूसरी जो परिवर्तन लाती है एक साथ पूजी जाती हैं, तब जीवन में संतुलन आता है. इस दिन की पूजा से व्यक्ति को भक्ति, ज्ञान और मोक्ष इन तीनों का आशीर्वाद मिलता है.
इस बार बैकुंठ चतुर्दशी की शुरुआत 4 नवंबर को दोपहर 2 बजे से शुरू हो रही है और रात उसी दिन 10 बजकर 36 मिनट पर समाप्त हो रही है.
पौराणिक कथा और महत्व
पौराणिक मान्यता के अनुसार, बैकुंठ चतुर्दशी के दिन स्वयं भगवान विष्णु वाराणसी (काशी) में जाकर भगवान शिव की आराधना करते हैं. कथा के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु ने सहस्र कमलों से शिवलिंग का अभिषेक करने का संकल्प लिया था. जब एक कमल कम पड़ गया, तो उन्होंने अपने कमलनयन (नेत्र) को अर्पित कर दिया. इस अद्भुत भक्ति और समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने विष्णु को बैकुंठ लोक का अधिपति बनने का आशीर्वाद दिया. इसलिए इस दिन को बैकुंठ चतुर्दशी कहा गया क्योंकि इस दिन बैकुंठ का द्वार भक्तों के लिए खुला माना जाता है.
पूजा विधि और धार्मिक मान्यता
धार्मिक दृष्टि से यह दिन अत्यंत पुण्यदायी माना गया है. इस दिन भक्त प्रातःकाल स्नान कर शिवालय में जाकर भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं और बिल्वपत्र अर्पित करते हैं. साथ ही, भगवान विष्णु की पूजा तुलसी और शालिग्राम से की जाती है. कहा गया है कि इस दिन जो व्यक्ति विष्णु और शिव दोनों की आराधना करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति मिलती है. वाराणसी में इस दिन विशेष रूप से गंगा स्नान, दीपदान और शिव-विष्णु संयुक्त आरती का आयोजन होता है.
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और सामान्य जानकारियों पर आधारित है. टीवी9 भारतवर्ष इसकी पुष्टि नहीं करता है. किसी भी प्रकार के सुझाव के लिए hello@astropatri.com पर संपर्क कर सकते हैं.




