
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर से भारत और चीन जैसे देशों से आयात होने वाली दवाओं पर भारी टैरिफ (टैक्स) लगाने की चेतावनी दी है। ट्रंप चाहते हैं कि अमेरिका अपनी ज़रूरत की दवाएँ ख़ुद बनाए, ताकि दवाओं के लिए दूसरों पर निर्भर न रहना पड़े और राष्ट्रीय सुरक्षा मज़बूत हो। हालांकि, एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत को परेशान करने की इस कोशिश में अमेरिका ख़ुद मुश्किल में फँसता दिख रहा है।
आत्मनिर्भरता की चुनौती
विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका के लिए दवा क्षेत्र में पूरी तरह से आत्मनिर्भर बनना आसान नहीं है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि दवा बनाने में इस्तेमाल होने वाला ज़्यादातर कच्चा माल (Active Pharmaceutical Ingredients) आज भी भारत और चीन जैसे देशों से आता है। अगर अमेरिका अपनी फ़ैक्टरियों में दवाएँ बनाए भी, तो उसे कच्चे माल के लिए इन्हीं देशों पर निर्भर रहना पड़ेगा।
इसके अलावा, अमेरिका में दवा उत्पादन की लागत (मज़दूरी, बिजली, मशीनरी) बहुत ज़्यादा है। अगर दवाएँ अमेरिका में बनेंगी, तो वे और महंगी हो जाएँगी, जिसका सीधा असर आम लोगों की जेब पर पड़ेगा।
जेनरिक दवा और निवेश की समस्या
अमेरिका में बिकने वाली लगभग 90% दवाएँ जेनरिक होती हैं, जिनका ज़्यादातर हिस्सा विदेशों से आता है। अमेरिकी कंपनियाँ जेनरिक दवाएँ नहीं बनाना चाहतीं, क्योंकि इसमें मुनाफ़ा कम होता है। हालाँकि, ट्रंप की चेतावनी के बाद कई बड़ी दवा कंपनियों ने अमेरिका में निवेश करने का ऐलान किया है, लेकिन इन फ़ैक्टरियों को बनने और चालू होने में 3 से 5 साल तक का समय लग सकता है।
जानकारों का मानना है कि अगर ट्रंप 200% तक टैरिफ लगाते हैं, तो इससे दवाइयाँ सस्ती होने के बजाय और महंगी हो जाएँगी। इसका असर न सिर्फ़ आम लोगों पर पड़ेगा, बल्कि कुछ छोटी दवा कंपनियों के लिए बाज़ार में टिकना भी मुश्किल हो जाएगा। यह नीति कागज़ पर भले ही आकर्षक लगे, लेकिन ज़मीन पर इसे लागू करना बेहद चुनौतीपूर्ण है।