सुप्रीम कोर्ट से मध्यप्रदेश सरकार को तगड़ा झटका, दो हफ्ते में ‘पुलिस कांस्टेबल भर्ती! “ > • ˌ

सुप्रीम कोर्ट से मध्यप्रदेश सरकार को तगड़ा झटका, दो हफ्ते में ‘पुलिस कांस्टेबल भर्ती! “ > • ˌ
Madhya Pradesh government gets a big blow from the Supreme Court, ‘Police constable recruitment’ in two weeks!

भोपाल: Police Constable Bharti Case: मध्य प्रदेश पुलिस कांस्टेबल भर्ती मामले में मध्य प्रदेश सरकार को तगड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश सरकार की विशेष अनुमित याचिका खारिज कर दी है। बता दें कि ये वही याचिका है जिसके जरिए राज्य सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने परीक्षा में सफल रहने वाले अभ्यर्थियों के पक्ष में फैसला सुनाया।

यहां जानें क्या है मामला
दरअसल मध्यप्रदेश पुलिस कांस्टेबल भर्ती से में कुछ अभ्यर्थियों की चयन प्रक्रिया को लेकर विवाद हुआ था। अभ्यर्थियों ने हाई कोर्ट में अपनी याचिका लगाई। इसमें दावा किया था कि वे भर्ती प्रक्रिया में सफल रहे लेकिन, ‘लाइव रोजगार पंजीकरण प्रमाणपत्र’ न होने के कारण उन्हें चयन सूची से बाहर कर दिया गया। इस याचिका पर हाई कोर्ट ने इन अभ्यर्थियों के पक्ष में फैसला देते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह उनके मामलों पर पुनर्विचार करे। हाई कोर्ट के फैसले के बाद सरकार ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन शीर्ष अदालत ने इस मामले में किसी भी दखल अंदाजी से इनकार कर दिया और राज्य सरकार की याचिका खारिज कर दी।

सुप्रीम कोर्ट ने माना हाई कोर्ट का फैसला सही
मध्य प्रदेश सरकार की इस याचिका पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट की बेंच में जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता शामिल थे। इनका कहना था हाई कोर्ट का फैसला सही है और इसमें किसी तरह के हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है।

अभ्यर्थियों को राहत
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से उन अभ्यर्थियों को राहत मिली, जिन्हें रोजगार पंजीकरण प्रमाणपत्र के अभाव में चयन से वंचित कर दिया गया था। हाई कोर्ट के फैसले पर ना सही लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अब राज्य सरकार को इन अभ्यर्थियों के मामलों पर पुनर्विचार करना होगा और नियुक्ति प्रक्रिया को आगे बढ़ाना होगा।

वकील की दलील- ‘एम्प्लॉयमेंट रजिस्ट्रेशन’ संवैधानिक अधिकारों का हनन
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में पुलिस अभ्यर्थियों की तरफ से पैरवी कर रहे अधिवक्ता दिनेश सिंह चौहान ने माननीय उच्च न्यायालय को बताया था कि सरकारी भर्तियों में रोजगार पंजीयन की वैधता अनिवार्य नहीं होती। यह एक तरह से संवैधानिक अधिकारों को हनन करता है। साथ ही माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने पिछले कई सारे जजमेंट में भी कहा था कि पब्लिक अपॉइंटमेंट के लिए रोजगार पंजीयन जरूरत नहीं है।

दो हफ्ते में जॉइनिंग के आदेश पर ही लगी मुहर
बता दें कि दिनेश सिंह चौहान की बातों और तर्कों से सहमत माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर द्वारा चीफ जस्टिस की बेंच ने दो हफ्ते में पुलिस कांस्टेबल रिक्रूटमेंट में भारतीयों को ज्वाइनिंग देने के लिए कहा था। लेकिन सरकार जॉइनिंग देने की जगह सुप्रीम कोर्ट चली गई। सुप्रीम कोर्ट में सरकार को और पुलिस विभाग को निराशा हाथ लगी। सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस मुख्यालय और सरकार की तरफ से लगाई गई याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट के आदेश पर ही मुहर लगा दी। जिसके बाद उम्मीद जागी है कि हाइकोर्ट का आदेश ही माना जाएगा और दो हफ्ते में सभी चयनित अभ्यर्थियों की जॉइनिंग की जानी चाहिए।

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