जब मुझे पहली बार पीरियड्स हुए थे तब मेरी उम्र 11 साल थी और मैं 5 क्लास में पढ़ती थी, उस दिन मैंने एक फ्रॉक पहनी हुई थी. खेल कर जब घर लौटी तो अजीब सा लग रहा था. फिर पैर पर खून सा देखा, तो घबरा गई, लगा शायद कोई चोट लग गई है. सीधे मां के पास गई. मां ने देखा और हर बार की तरह चोट लगने पर जैसे वो घबरा जाती हैं, घबराई नहीं. मां को ऐसे रिएक्ट करते देख मैं चौंक गई, मां ने बताया पीरियड्स शुरू हो गए हैं. अब तुम बड़ी हो गई हो. लाखों लड़कियों की तरह मुझे भी जब पीरियड्स आए तब पीरियड्स, मेन्स्ट्रुएशन साइकिल (Mensuration Cycle) क्या होती है इस बात का पता लगा.
मुझे आज भी याद है, उस दिन साल 2012 में पहली बार जब मुझे पीरियड्स शुरू हुए थे, मेरी मां ने मुझे कपड़ा इस्तेमाल करने के लिए दिया था, उसको इस्तेमाल कैसे करते हैं, मुझे यह भी नहीं आता था. न इतनी जानकारी थी कि मां से सवाल करती कि मुझे कपड़ा नहीं पैड दीजिए. यह स्वास्थ्य के लिए खराब है. उस दिन पूरी रात मुझे नींद नहीं आई थी, लग रहा था, यह क्या हो रहा है? क्यों हो रहा है, लेकिन जैसे ही समझ में चीजें आई, कपड़ा छोड़ हम पैड पर शिफ्ट हो गए और आज कपड़ा सोचते ही बीमारी और कई परेशानियां दिखाई देती हैं.
देश तभी मजबूत होगा जब महिलाएं, औरतें मजबूत होंगी…
साल 2018 में आई पैडमैन फिल्म का यह डायलॉग तो आपको याद होगा. इस फिल्म को जब देखा तो मेरी उम्र 17 साल थी. फिल्म के आखिर तक मैं यह सोचती रही कि यह दिखाया जाएगा कि पूरे भारत में सभी लोगों ने पैड का इस्तेमाल करना शुरू किया. पीरियड्स क्या होते हैं, इन दिनों में काम किया जा सकता है और इन दिनों के बारे में “इन दिनों” शब्द कहें बिना पीरियड्स कह कर बात की जा सकती है, इस चीज को दिखाया जाएगा, लेकिन डायरेक्टर वो अंत कैसे लिख देता जिसकी तस्वीर देखना शायद आज भी मुश्किल है.
क्या सुधर गए हालात?
आज साल 2025 चल रहा है, लेकिन जब आपके घर के आस-पास कभी कंस्ट्रक्शन का काम होता होगा तो आपने अक्सर उस में महिलाओं को भी देखा होगा. कभी आपने सोचा है कि यह महिलाएं पीरियड्स होने पर किस चीज का इस्तेमाल करती होंगी? क्या यह महिलाएं अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रख कर पैड का इस्तेमाल करती होंगी? क्या इन के पास पैड होता होगा और उससे भी बड़ा सवाल क्या यह जानती होंगी की पैड क्या होता है? इसका इस्तेमाल करना क्यों जरूरी है, क्या इनके पास उसको खरीदने के पैसे है. इन सब सवालों के बीच हम फिर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर एक बार सोचने को मजबूर हो जाते हैं क्या हालात सुधर गए हैं.
8 मार्च 2025 को पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रही है. हर तरफ महिलाओं के सशक्तिकरण, उनकी हौसले, कामयाबी की मिसाल आज हमारे सामने एक बार फिर पेश की जाएगी, लेकिन आज भी छोटे स्तर पर ऐसे कई बड़े मसले बाकी बचे हैं, जिनसे निपटना अभी भी बाकी है. साल 2022 की राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) की रिपोर्ट के मुताबिक, 15-24 वर्ष की आयु की लगभग 50 प्रतिशत महिलाएं अभी भी पीरियड्स में कपड़े का इस्तेमाल करती हैं.
50 % महिलाएं कपड़ा इस्तेमाल करती हैं
इससे पहले आप यह सोचे कि आज के समय में सभी महिलाएं लगभग पैड का इस्तेमाल करती हैं, तो आपके लिए इन आंकड़ों को जान लेना जरूरी है. भारत के उन गांव और उन महिलाओं के बारे में सोचना जरूरी है जो आज भी पैड को जानती तक नहीं हैं और बेकार का खर्च मानती हैं. एनएफएचएस की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक, रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 64 प्रतिशत लोग सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करते हैं, 50 प्रतिशत महिलाएं कपड़े का इस्तेमाल करते हैं और 15 प्रतिशत लोग लोकल नैपकिन को ही यूज करते हैं. कुल मिलाकर, इस आयु वर्ग की 78 प्रतिशत महिलाएं पीरियड्स के दिनों में स्वच्छ पैड का इस्तेमाल करती हैं.
एक स्टडी के मुताबिक, भारत की 355 मिलियन महिलाएं पीरियड का सामना करती हैं. इन 355 मिलियन महिलाओं में से सिर्फ 36% ही सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं, जबकि बाकी पुराना कपड़ा, भूसी, राख, पत्तियां, मिट्टी और इस तरह की चीजों का इस्तेमाल करती हैं. एनएफएचएस की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार (59 प्रतिशत), मध्य प्रदेश (61 प्रतिशत) और मेघालय (65 प्रतिशत) महिलाएं पीरियड्स में पैड का इस्तेमाल करती हैं.
प्लान इंटरनेशनल यूके, एक अंतर्राष्ट्रीय विकास दान के अनुसार, 21 साल से कम उम्र की 10 वंचित लड़कियों में से एक सैनिटरी पैड नहीं खरीद सकती और अखबार, टॉयलेट पेपर और मोजे जैसी चीजों का इस्तेमाल करती हैं.
औरत के लिए शर्म से बड़ी कोई बीमारी नहीं होती…
फिल्म का यह एक डायलॉग सैनिटरी पैड को लेकर एक बड़ी कहानी बयान करता है. जिस पीरियड्स के बारे में हम बात कर रहे हैं, आज भी कई लोग अपने परिवार के साथ बैठ कर इस बारे में बात नहीं करते हैं. महिलाएं खुद इस बारे में बात करने में शर्म महसूस करती हैं. UN India: Managing Menstrual Hygiene की साल 2014 की एक वीडियो है जिसमें, बताया गया है कि महिलाएं शर्म की वजह से जो कपड़ा इन दिनों में इस्तेमाल करती हैं, उसको जला देती हैं.
असल में आज भी कई महिलाएं ऐसी होंगी जिनको पीरियड्स होने बंद हो गए होंगे लेकिन वो यह नहीं जानती होंगी कि पीरियड्स होते क्यों हैं, कपड़ा लगाने से क्या नुकसान हो सकते हैं. इसका सीधा कनेक्शन महिलाओं को शिक्षा देने से है. महिलाओं को शिक्षा दी जाएगी तो चीजें अपने आप बदलने लगेंगी.
कपड़ा लगाने से क्या नुकसान होता है?
जहां हम यह बात कर चुके हैं कि कितनी महिलाएं आज भी कपड़ा ही इस्तेमाल करती हैं, चलिए बात करते हैं कि कपड़ा इस्तेमाल करके होता क्या है-
कपड़ा इस्तेमाल करना काफी मुश्किल होता है. जिन दिनों में साफ-सफाई की सबसे ज्यादा जरूरत होती है उस समय फटा पुराना कपड़ा इस्तेमाल करना काफी ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है. कपड़ा और बाकी अस्वस्थ चीजें इस्तेमाल करने पर इंफेक्शन का खतरा बना रहता है. कई स्टडी से पता चला है कि बैक्टीरियल वेजिनोसिस (यूटीआई) जैसी चीजें कपड़ा इस्तेमाल करने से हो सकती है जो बाद में पैल्विक संक्रमण बन जाता है.
साथ ही इन इंफेक्शन के चलते महिलाओं को प्रेग्नेंट होने में भी मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है. साथ ही डिलीवरी में भी परेशानियां हो सकती हैं. इसके अलावा, खराब स्वच्छता लंबे समय में सर्वाइकल कैंसर के खतरे को बढ़ा सकती है.
मुझे तो पता भी नहीं था.. मां ने कहा- कपड़ा लगाने को …
जब मैंने पहली बार कपड़े का इस्तेमाल किया था तो उसकी सबसे बड़ी वजह थी, मुझे तो पता ही नहीं था और यह ही वजह आज भी वैसे की वैसी ही है. भारत में आज भी कई लड़कियां हैं जिनको अपने पहले पीरियड्स के बाद पता लगता है कि पीरियड्स होते क्या हैं.
इस लेख की राइटर भी उन्हीं में से एक हैं, मैं आपको अपना किस्सा ऊपर ही सुना चुकी हूं. जब पहली बार देखा कि यह खून कैसा है तो लगा कहीं चोट तो नहीं लग गई, मैं डर गई थी. मां ने सिर्फ इतना समझाया कि बड़ी हो गई हो, लेकिन पूरी रात नींद नहीं आई. ऐसा लगा कि यह हुआ क्या है, क्यों हुआ है, बड़े होने का मतलब क्या है, शरीर में से खून क्यों बह रहा है, लेकिन इन सवालों के जवाब ढूंढने के लिए काफी समय लगा.
यह सब सिर्फ मेरे ही साथ नहीं हुआ बल्कि भारत की कई लड़कियों के साथ हुआ है. आप अपने दोस्तों से कभी पूछना जब पहली बार पीरियड्स आए थे तो क्या अनुभव हुआ था, क्या तुम्हें मालूम था यह क्या हो रहा है. कई लोगों के जवाब सुन कर आप हैरान हो जाएंगे. जिस बच्ची को यह नहीं मालूम कि पीरियड्स क्या होते हैं वो यह कैसे जान सकती है कि इन दिनों में कपड़ा लगाना है या फिर पैड, दोनों में क्या फर्क होता है, कौन सा बेहतर होता है. इसी दिन पहली बार एक बच्ची कपड़ा लगाती है और फिर कपड़े से पैड तक का सफर तय करना उसके लिए लंबी लड़ाई बन जाता है.
लड़कियां स्कूल तक छोड़ देती हैं
एक स्टडी के मुताबिक, भारत में 71% किशोर लड़कियों को पीरियड्स के बारे में तब तक पता नहीं चलता, जब तक कि उन्हें खुद पहली बार पीरियड्स न हो जाए. इसी के साथ पेट में दर्द होने, स्कूल में साफ-सूथरे टॉयलेट न होने की वजह से कई लड़कियां इस समय में स्कूल नहीं जाती हैं. वो स्कूल की छुट्टी करती हैं.
सोचिए हर महीने में 7 दिन की छुट्टी करने से साल भर में बच्चियों का कितना नुकसान होगा. अगर हम मान लें कि पूरे साल भर में गर्मियों की, त्योहारों की छुट्टी हटा कर अगर हफ्ते में 6 दिन का स्कूल होता है तो बच्चा पूरे साल में 200 से 220 दिन स्कूल जाता है. इन 200 दिनों में अगर लड़कियां हर महीने 7 दिन की छुट्टी करेंगी तो लगभग 84 दिन की छुट्टी वो पूरे साल में करेंगी. जिससे वो 200 में से सिर्फ 116 दिन ही स्कूल जा सकेंगी.
इसी के चलते कई बच्चियां जो स्पोर्ट्स में अच्छी होती हैं वो खेलकूद में शामिल होना छोड़ देती हैं. साथ ही स्टडी के मुताबिक, पीरियड्स कई लड़कियों के लिए इतनी बड़ी मुसीबत बन जाते हैं कि वो स्कूल छोड़ने पर मजबूर हो जाती हैं. किशोर स्वास्थ्य के मुद्दों पर काम करने वाली संस्था दासरा के 2014 की एक स्टडी के मुताबिक, लगभग 23 मिलियन लड़कियां पीरियड्स शुरू होने के बाद स्कूल छोड़ देती हैं.
किचन से दूर रहो.. मसाले, आचार मत छूना..
भारत में आज भी कुछ जगह पर यह चीजें चल रही हैं, जहां महिलाओं को इस समय में किचन से दूर रखा जाता है. उन से मसाले, आचार और खाने-पीने की और भी चीजें छूने के लिए मना किया जाता है. इस तरह की चीजों से भी महिलाओं को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
क्यों नहीं खरीदती पैड?
एक सवाल जो अब तक की खबर पढ़ कर आपके मन में बार-बार आया होगा कि क्यों महिलाएं पैड नहीं खरीदती, यह तो स्वास्थ्य के लिए जरूरी है. जहां आज के समय में लोग Mensuration Cup, Tampon की बात कर रहे हैं वहां कपड़े से पैड तक का सफर कुछ के लिए तय कर पाना मुश्किल हो रहा है.
इसकी वजह है दाम. एक मजदूर महिला जो दिन के 500 रुपये कमाती है, वो महीने के 40-50 रुपये का पैड का पैकेट खरीदने में हिचकिचाएगी ही. मजदूर महिला की बात न भी करें तो मेरे घर में जो काम करने वाली आती हैं, जब मैंने उन से यह सवाल पूछा तो पहले वो हंसने लगी, उन्हें लगा यह कैसा सवाल है, पैड दिखाने पर उन्होंने कहा, यह मैंने देखा है और मेरी बेटी यह इस्तेमाल करने की जिद्द करती है, लेकिन हमारे पास इतने पैसे नहीं है कि हर महीने 100-200 रुपये मैं इसी पर खर्च कर दूं.
यूएन के मुताबिक, किसी भी दिन, दुनिया भर में 300 मिलियन से अधिक महिलाएं पीरियड्स से गुजर रही होती हैं. कुल मिलाकर, अनुमानित 500 मिलियन लोगों के पास पीरियड्स प्रोडक्ट्स खरीदने के लिए पर्याप्त सुविधाएं तक नहीं है.
देश में चल रहीं कई पहल
इन चीजों का सामना कर रही महिलाओं की मदद करने के लिए और जागरूकता फैलाने के लिए कई तरह के संगठन काम कर रहे हैं. सरकारी लेवल पर भी कई कदम उठाए जा रहे हैं. प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना (पीएमबीजेपी) चलाई जा रही है. जिसके तहत देश भर के केंद्रों में सैनिटरी नैपकिन न्यूनतम 1 रुपये प्रति पैड की कीमत पर उपलब्ध कराए जाते हैं, लेकिन अभी भी इस स्कीम के तहत घर-घर तक सैनिटरी पैड पहुंचाना मुमकिन नहीं है.
इन सब चीजों का जानने के बाद जिस चीज की हमें सबसे ज्यादा जरूरत है वो है शिक्षा, जागरूकता और महत्व. अगर महिलाएं इस बात को समझ जाए कि जिस तरह से उन के लिए खाना खाने की जरूरत है, उसी तरह से उन्हें पैड की जरूरत है और वो अगर कुछ पैसे बचा कर पूरे महीने में 1 बार पैड का पैकेट खरीदें तो वो खुद को कई बीमारियों से बचा सकते हैं.
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