वो खत में रखकर भेजता था बम… पार्सल बम से अमेरिका को दहलाने वाले हार्वर्ड के जीनियस का खौफनाक – ˌ

वो खत में रखकर भेजता था बम… पार्सल बम से अमेरिका को दहलाने वाले हार्वर्ड के जीनियस का खौफनाक – ˌ
He used to send the bomb by placing it in the letter… The dreadful end of the Harvard genius who shook America with the parcel bomb

उसे नफरत थी मॉडर्न जिंदगी से, उसे नफरत थी टेक्नॉलजी से, उसे नफरत थी इंडस्ट्रीज से और इस सबके लिए वो अमेरिका को जिम्मेदार मानता था। बस वो इसी का बदला लेना चाहता था। बदला लोगों को मौत देकर और इसके उसने चुना बमबाजी को। हार्वर्ड के एक प्रोफेसर की कहानी जो कई सालों तक अमेरिका के लिए मुसीबत का सबब बन गया था। जिसने अपने बमों से लोगों की नींद उड़ा ली। ऐसे बम जो पार्सल में आते थे और लोगों की जान ले लेते थे।

पार्सल बम से अमेरिका को हिलाने वाले टेड काजिंस्की की कहानी

थियोडोर काजिंस्की या टेड काजिंस्की का जन्म अमेरिका में साल 1942 में हुआ। शुरू से ही वो पढ़ाई में काफी तेज था। उसका दिमाग कंप्यूटर से भी तेज चलता था। कांजिस्की ने महज 16 साल की उम्र में हार्वर्ड पढ़ाई करने पहुंच चुका था। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में वो सबसे होनहार छात्रों में से एक था। गणित के सवालों को ऐसे हल करता जैसे दिमाग नहीं कंप्यूटर हो। काजिंस्की का आईक्यू स्कोर 167 था। उस दौर में इतनी छोटी उम्र में ही कांजिस्की को इतनी पहचान मिल चुकी थी कि बड़े-बड़े गणितज्ञ उसका लोहा मानने लगे थे। यहां तक की उसके नोट्स फेमस मैथ्स जर्नल्स में छपने लगे।

मॉडर्न लाइफ से थी काजिंस्की को नफरत

महज 25 साल की उम्र में काजिंस्की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर बन चुका था, लेकिन यही से इस मैथमेटिशियन की जिंदगी के बदलने की शुरुआत हुई। कुछ समय यहां नौकरी करने के बाद काजिंस्की ने खुद को दुनिया अलग कर लिया। उन्होंने नौकरी छोड़ दी और विद्रोह का रास्ता अपना लिया। इस प्रोफेसर की पहली नफरत शुरू हुई कंप्यूटर का इस्तेमाल करने वाले लोगों से। काजिंस्की ने यूनिवर्सिटी के लोगों को ही अपना निशाना बनाना शुरू किया।

यूनिवर्सिटी के लोगों को निशाना बनाना शुरू किया

टेड काजिंस्की छिपकर रहने लगा। शहर से कहीं दूर ऐसे मकान में जहां न बिजली थी न पानी। सारी सुविधाओं का त्याग करने के बाद अपनी झोपड़ी में काजिंस्की ने बम बनाने शुरू किए। दिमाग तो काफी तेज था ही, बस थोड़े ही समय में उसने इन बमों का इस्तेमाल यूनिवर्सिटी के लोगों के ऊपर शुरू कर दिया। काजिंस्की का तरीका भी बेहद खतरनाक था। वो लेटर या फिर पार्सल के अंदर बम फिट कर देता था और जिसके पास भेजना होता था वहां पोस्ट कर देता था। जैसे ही वो शख्स लेटर या फिर पार्सल खोलता बम फट जाता।

पार्सल बम से अमेरिका में फैलाई दहशत

17 सालों तक ऐसे ही कई लोगों को काजिंस्की ने लेटर बम और पार्सल बम भेजे। उस दौर में लोग पार्सल खोलने में डरने लगे थे। एफबीआई को भी समझ नहीं आ रहा था कि कैसे काजिंस्की तक पहुचे। हारवर्ड के पड़े इस विद्रोही का आतंक बढ़ता जा रहा था। काजिंस्की ने 1978 से 1995 के बीच देसी बमों से शिक्षकों, व्यापारियों और आम जनता को भी निशाना बनाना शुरू कर दिया था। एफबीआई ने टेड काजिंस्की को यूनिवर्सिटी को निशाना बनाने की वजह से यूनाबॉम्बर का नाम दिया। अब लोगों में यूनाबॉम्बर का खौफ था।

अमेरिका में जारी किया अपना मैनिफेस्टो

सितंबर 1995 में काजिंस्की का खौफ अपने चरम पर था। इसी दौरान काजिंस्की ने अपना एक मैनिफेस्टो बनाया। इसने वाशिंगटन पोस्ट और द न्यूयॉर्क टाइम्स को मजबूर किया कि उसका 35 हजार पेज का मेनिफेस्टो पब्लिश किया जाए। इस मैनिफेस्टो का नाम था, ‘इंडस्ट्रियल सोसायटी एंड इट्स फ्यूचर’। इसके जरिए उसका मकसद लोगों को ये बताना था कि टेक्नॉलजी और मॉडर्न लाइफ की वजह से आम जनता की जिंदगी मुश्किल होती जा रही है। वो उद्योगपतियों के गुलाम बन रहे हैं।

अप्रैल 1996 में मोंटाना से हुई गिरफ्तारी

खैर ये मैनिफेस्टो छपवाने के लिए जब काजिंस्की ने संपर्क किया उसके भाई और भाभी ने पहचान लिया कि ये काम काजिंस्की का है। ये पहली बार हुआ था जब एफबीआई को इस गणितज्ञ का कोई सुराग हाथ लगा था। सालों तक गुमनाम अंधेरे में जी रहे काजिंस्की की तलाश शुरू हुई और फिर अप्रैल 1996 में अमेरिकी जांच अधिकारियों ने मोंटाना के आउटर इलाके से काजिंस्की को गिरफ्तार किया। वह प्लाईवुड से बने 3 बाई 4 मीटर के केबिन में था। वहां कई पत्रिकाओं का ढेर लगा था। बम बनाने वाला सामान और दो तैयार बम भी वहां मौजूद थे।

दो दिन पहले जेल के अंदर किया सुसाइड

काजिंस्की को टेरर कैंपेन चलाने के लिए चार बार उम्रकैद की सजा मिली। हर उम्र कैद की सजा 30 साल से ज्यादा थी। उसने अपने सारे गुनाह कबूल किए। उसने पुलिस को बताया कि अपने देसी बमों से 16 बार उसने लोगों को निशाना बनाया। उसके बम की वजह से 3 लोगों की जान गई जबकि 23 लोग घायल हुए। तब से काजिंस्की जेल में ही बंद था, लेकिन 10 जून के दिन काजिंस्की जेल में बेहोश हालात में मिला। काजिंस्की को तुरंत अस्पताल ले जाया गया, लेकिन तब तक इस विद्रोही की मौत हो चुकी थी। अमेरिका का ये जीनियस जिसने गलत राह चुनी उसने 81 साल की उम्र में खुद ही अपना अंत कर लिया