भारत में कैंसर की दवाइयां इतनी महंगी क्यों होती हैं? मिडिल क्लास के लिए इलाज कराना हो जाता है मुश्किल “ • ˌ

Why are cancer medicines so expensive in India? It becomes difficult for the middle class to get treatmentWhy are cancer medicines so expensive in India? It becomes difficult for the middle class to get treatment
Why are cancer medicines so expensive in India? It becomes difficult for the middle class to get treatment

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भारत में कैंसर एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या बन चुका है, जहां लाखों लोग हर साल इस बीमारी से प्रभावित होते हैं. लेकिन कैंसर का इलाज करना न सिर्फ जटिल, बल्कि बेहद महंगा भी होता है. खासकर कैंसर की दवाइयों की कीमत इतनी ज्यादा होती है कि आम आदमी के लिए उनका खर्च उठाना मुश्किल हो जाता है. आइए समझते हैं कि भारत में कैंसर की मेडिसिन इतनी महंगी क्यों होती हैं और इसके पीछे क्या कारण हैं.

कैंसर की दवा महंगी होने की वजह

1. रिसर्च और डेवलपमेंट पर होने वाला खर्च
कैंसर की दवाइयां बनाने में लंबी रिसर्च और भारी निवेश की जरूरत होती है. एक नई दवा विकसित करने में आमतौर पर 10-15 साल का वक्त लगता है और इसमें करोड़ों का खर्च आता, इस रिसर्च और डेवलपमेंट (R&D) की लागत को निकालने के लिए फार्मा कंपनियां दवाइयों की कीमतें अधिक रखती हैं.

2. पेटेंट और मोनोपॉली का असर
कई कैंसर की दवाइयां पेटेंट के तहत आती हैं, जिसका मतलब है कि इन्हें सिर्फ वही कंपनियां बना और बेच सकती हैं जिन्होंने इनका आविष्कार किया है. जब तक पेटेंट का ड्यूटी खत्म नहीं होती, दूसरी कंपनियां इन्हें नहीं बना सकतीं। इस मोनोपॉली के कारण कंपनियां मनचाही कीमत पर दवाइयां बेचती हैं, जिससे वे महंगी हो जाती हैं.

3. आयात पर निर्भरता
कई कैंसर की दवाइयां और उनके कच्चे माल (Active Pharmaceutical Ingredients – API) भारत में नहीं बनते, बल्कि अमेरिका, यूरोप और चीन से आयात किए जाते हैं। आयात शुल्क, शिपिंग लागत और विदेशी विनिमय दरों के कारण ये दवाइयां महंगी हो जाती हैं।

4. जटिल उत्पादन प्रक्रिया
कैंसर की दवाइयां बनाने की प्रक्रिया बेहद जटिल होती है और इसमें उन्नत टेक्नोलॉजी की जरूरत होती है. इसके अलावा, इन्हें सुरक्षित और असरदार बनाने के लिए स्ट्रिक्ट क्वालिटी स्टैंडर्ड को फॉलो करना पड़ता है, जिससे प्रोडक्शन कॉस्ट बढ़ जाती है.

5. मार्केटिंग और डिस्ट्रिब्यूशन कॉस्ट
कैंसर की दवाइयों को बाजार में लाने, डॉक्टरों तक पहुंचाने और अस्पतालों में डिस्ट्रिब्यूट करने में भी काफी खर्च होता है. इसके अलावा, अस्पताल और केमिस्ट भी अपने मार्जिन जोड़ते हैं, जिससे दवा की कीमत और बढ़ जाती है.