OMG! 2015 में Zomato पर इतने का मिलता था पनीर मलाई टिक्का! इंटरनेट पर वायरल हुआ बिल – Khabar Monkey

OMG! 2015 में Zomato पर इतने का मिलता था पनीर मलाई टिक्का! इंटरनेट पर वायरल हुआ बिल

2015 में इतने का मिलता खाना

हर दिन हजारों लोग Zomato ऐप से खाना मंगवाते हैं. हालांकि, अक्सर लोगों की शिकायत होती है कि ऑर्डर की असली कीमत से कहीं ज्यादा भुगतान करना पड़ता है. वजह है डिलीवरी चार्ज, प्लेटफॉर्म फीस और टैक्स, जो मिलकर बिल को भारी बना देते हैं.

कई बार तो ऐसा भी होता है कि जो खाना पहले किफायती लगता था, वही अब बजट से बाहर चला जाता है. इन दिनों सोशल मीडिया पर Zomato का एक पुराना बिल वायरल हो रहा है, जिसने लोगों को पुराने दिनों की याद दिला दी. यह बिल साल 2019 का है, जब न तो डिलीवरी चार्ज लिया जाता था और न ही कोई प्लेटफॉर्म फी. उस वक्त ऑनलाइन खाना मंगवाना सच में सस्ता और सुविधाजनक माना जाता था.

कितने का आया बिल

वायरल बिल के मुताबिक, एक यूजर ने करीब 9.6 किलोमीटर दूर स्थित रेस्टोरेंट से खाना ऑर्डर किया था. हैरानी की बात यह है कि इतनी दूरी के बावजूद उससे न तो डिलीवरी चार्ज लिया गया और न ही कोई अतिरिक्त फीस. इसके साथ यूजर ने एक डिस्काउंट कूपन भी लगाया था, जिससे कुल कीमत और घट गई. रेडिट पर शेयर किए गए इस पोस्ट में बताया गया कि यूजर ने 160 रुपये का पनीर मलाई टिक्का ऑर्डर किया था, लेकिन कूपन कोड लगाने के बाद उसका बिल सिर्फ 92 रुपये आया.

पोस्ट में यूजर ने लिखा कि आज अगर यही ऑर्डर किया जाए, तो कम से कम 300 रुपये का पड़ेगा, क्योंकि पिछले कुछ सालों में खाने की कीमतें लगभग दोगुनी हो चुकी हैं. यूजर ने nostalgia में लिखा कि वो वक्त सच में अलग था, जब Zomato का नाम सुनकर सस्ता और आसान खाना दिमाग में आता था. उस समय कूपन कोड का मतलब असली छूट होता था,

यहां देखिए पोस्ट

Zomato order from 7 years ago
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आज की तरह सिर्फ दिखावा नहीं. यह पोस्ट वायरल होते ही लोगों ने सोशल मीडिया पर चर्चा शुरू कर दी कि कैसे फूड डिलीवरी ऐप्स ने समय के साथ अपना तरीका और मॉडल बदल दिया है. पहले जहां ये ऐप्स ग्राहकों को लुभाने के लिए कम दाम और भारी छूट देते थे, वहीं अब डिलीवरी चार्ज, सर्विस फी और डायनामिक प्राइसिंग की वजह से ऑनलाइन खाना मंगवाना महंगा हो गया है.

दरअसल, Zomato ने पिछले कुछ सालों में कई बदलाव किए हैं. जैसे-जैसे उसका नेटवर्क और डिलीवरी सिस्टम बड़ा हुआ, वैसे-वैसे खर्च भी बढ़ते गए. डिलीवरी एजेंट्स की सैलरी, पेट्रोल के दाम, रेस्तरां पार्टनरशिप और तकनीकी सुधार जैसी चीजों पर भारी लागत आती है. इन्हीं खर्चों को कवर करने के लिए कंपनी ने प्लेटफॉर्म फी और डिलीवरी चार्ज लगाना शुरू किया.

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