Meerabai Jayanti 2025: राजमहल की रानी की ऐसी दीवानगी, कृष्ण को क्यों मान बैठी थीं अपना दूल्हा?

Meerabai Jayanti 2025: राजमहल की रानी की ऐसी दीवानगी, कृष्ण को क्यों मान बैठी थीं अपना दूल्हा?

कृष्ण भक्त मीराबाई की जयंती 2025

Krishna Bhakt Meerabai: देश में भक्ति की अद्भुत साधिका और कवयित्री मीराबाई की जयंती 7 अक्टूबर को मनाई जा रही है. वह भगवान श्रीकृष्ण कन्हैया की भक्त थीं. कृष्णभक्ति में डूबकर उन्होंने समाज की सीमाओं को लांघा और प्रेम, समर्पण और आध्यात्मिकता की मिसाल कायम कर दी. उनके बारे में कहा जाता है कि मीराबाई की भक्ति किसी बंधन में नहीं बंधी, वह आत्मा और ईश्वर के प्रेम का अटूट संबंध दर्शाती रहीं. उन्होंने उस दौर में भी स्त्री स्वतंत्रता और आध्यात्मिक समानता का मार्ग दिखाया.

मान्यताओं के अनुसार, मीराबाई का जन्म 1448 में जोधपुर में हुआ था. वे राठौड़ रतन सिंह की इकलौती पुत्री थीं. उनका विवाह मेवाड़ के सिसोदिया राज परिवार में किया गया था, उनके पति चित्तौड़गढ़ के महाराजा भोजराज थे. भोजराज महाराणा सांगा के पुत्र थे. विवाह से पहले ही मीराबाई कृष्ण भक्ति में डूब गई थीं. उनकी भक्ति उस समय शुरू हुई जब पड़ोस में एक बारात आई.

मीराबाई ने मां से पूछा, मेरा दूल्हा कौन है?

मीराबाई के बारे में कहा जाता है कि एक दिन पड़ोस में बारात आई थी. वे बारात को देखने के लिए सहेलियों सहित छत पर चढ़ गईं और दूल्हे को देखने लगीं. इसी दौरान उनके मन में जानने की जिज्ञासा हुई कि उनका दूल्हा कौन है. उन्होंने तुरंत अपनी मां से पूछा कि मेरा दूल्हा कौन है तो उनकी मां ने श्री कृष्ण की मूर्ति की ओर इशारा कर दिया और कहा कि यही हैं. मीराबाई के हृदय में उसी क्षण भगवान बस गए और उन्हें पति मान लिया और उनकी भक्ति में लीन हो गईं.

जब ससुराल पहुंचीं मीराबाई

मीराबाई की जिस समय विवाह की उम्र हुई तो उनका मन उस समय सिर्फ भगवान में लगा हुआ था. मीराबाई की इच्छा के विरुद्ध जाकर उनका विवाह मेवाड़ के राजकुमार भोजराज से करा दिया गया. हालांकि विवाह के बाद बी उन्होंने कृष्ण की भक्ति नहीं छोड़ी और रोज मंदिरों में जाकर भगवान कृष्ण की भक्ति, सुंदर संगीत और भक्तिमय नृत्य करती थीं, जो उनके ससुराल के लोगों को पसंद नहीं आता था. कुछ समय बाद पति भोजराज का निधन हो गया. इसके बाद मीराबाई पूरी तरह से कृष्णभक्ति में डूब गईं. एक दिन ऐसा आया कि राजमहल की रानी यानी मीराबाई सबकुछ छोड़कर कृष्ण कन्हैया के लिए 1524 ईस्वी में वृंदावन पहुंच गईं, जहां उन्होंने अपना सारी जीवन कृष्ण भक्ति के नाम कर दिया.

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और सामान्य जानकारियों पर आधारित है. टीवी9 भारतवर्ष इसकी पुष्टि नहीं करता है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *