
करवा चौथ 2025
Karwa Chauth Ka Chand: हर वर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन करवा चौथ का व्रत रखा जाता है और इस वर्ष करवा चौथ 10 अक्टूबर को मनाया जाएगा. भारतीय संस्कृति में करवा चौथ सिर्फ एक व्रत नहीं, बल्कि प्रेम, विश्वास और समर्पण का सुंदर प्रतीक है. इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करते हुए पूरा दिन बिना पानी पिए व्रत रखती हैं.
रात को जब चांद निकलता और चांद निकलने के बाद पहले छलनी से चांद को देखती हैं और फिर पति का चेहरा देखती हैं और यह पल हर सुहागिन महिला के लिए प्रेम और अटूट रिश्ते का पवित्र संकेत होता है. इस परंपरा के पीछे आस्था के साथ एक वैज्ञानिक कारण भी छिपा है. यह व्रत जहां पति-पत्नी के बीच प्यार और गहराई को बढ़ाता है, वहीं मन और शरीर को भी शांति और संतुलन देता है. आइए समझते हैं कि करवा चौथ की इस सुंदर परंपरा के धार्मिक और वैज्ञानिक पहलू क्या हैं, जो इसे और भी खास बनाते हैं.
करवा चौथ व्रत का वैज्ञानिक दृष्टिकोण (Karva Chauth Vrat)
करवा चौथ की इस सुंदर परंपरा में आस्था के साथ विज्ञान का भी संगम है. जब महिलाएं छलनी से चांद या दीपक की लौ को देखती हैं, तो छलनी की जाली तेज रोशनी को हल्का कर देती है. इससे आंखों पर सीधी किरणें नहीं पड़तीं और आंखों पर दबाव कम होता है. इस तरह छलनी एक प्राकृतिक फिल्टर की तरह काम करती है, जो आंखों की सुरक्षा करती है और देखने के अनुभव को कोमल बनाती है.
करवा चौथ का समय भी मौसम परिवर्तन का होता है जब दिन छोटे और रातें लंबी होने लगती हैं. ऐसे में व्रत, ध्यान और चंद्र दर्शन शरीर और मन दोनों को स्थिरता देते हैं. यह प्रक्रिया मन को शांति, संयम और सकारात्मक ऊर्जा से भर देती है, जिससे सुहागिन महिलाएं पूरे दिन की साधना के बाद एक गहरा आध्यात्मिक सुकून महसूस करती हैं.
करवा चौथ व्रत की धार्मिक मान्यता (Karva Chauth Fast)
करवा चौथ का व्रत चंद्रदेव को साक्षी मानकर किया जाता है. चंद्रमा को सौंदर्य, शीतलता और दीर्घायु का प्रतीक माना गया है, इसलिए महिलाएं मानती हैं कि जैसे चांद अपनी कोमल रोशनी से जगत में उजाला और शांति फैलाता है, वैसे ही उनके पति का जीवन भी लंबा, उज्ज्वल और सुख-समृद्धि से भरा रहे. चांद को देखने के बाद जब वे छलनी से पति का चेहरा देखती हैं, तो यह उनके प्रेम और आस्था का प्रतीक बन जाता है.
यह परंपरा बताती है कि छलनी केवल एक साधन नहीं, बल्कि जीवन की कठिनाइयों और नकारात्मकता को छानकर दूर करने का संदेश देती है. स्त्री जब अपने पति का मुख छलनी से देखती है, तो वह मन से यही कामना करती है कि उनके रिश्ते में सदा प्रेम, एकता और खुशियों की रोशनी बनी रहे. यह पल उनके रिश्ते को आध्यात्मिक पवित्रता और सच्चे समर्पण से जोड़ देता है.
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं और सामान्य जानकारियों पर आधारित है. टीवी9 भारतवर्ष इसकी पुष्टि नहीं करता है. किसी भी प्रकार के सुझाव के लिए hello@astropatri.com पर संपर्क कर सकते हैं.